उदयपुर – मन ,वचन , काय की कुटिलता का त्याग करके चित मन में सरल निष्कपट भाव धारण करना आर्जव धर्म है । आर्जव आत्मा का स्वभाव है महापर्व के अंतर्गत 10 लक्षण धर्म की पूजा करते हैं किसी भी उच्च स्थान लक्ष्य को पाने के लिए वहां पहुंचने के लिए हम सीडीओ का सहारा लेते हैं एक-एक सीढ़ी चढ़कर लक्ष्य की प्राप्ति होती है बंधुओं आज तीसरी सीढी आर्जव धर्म की है कुटिलता में धर्म नहीं है धर्म सरलता में होता है हमारे पास सम्यक ज्ञान की शक्ति है हम इसे प्रकट कर सकते हैं जिनवाणी माता का सहारा ले सकते हैं अनादि काल से संसार की धूप तपन सहन करते हुए परिभ्रमण कर रहे हैं हमें भाग्य से जिनवाणी माता की छांव मिली है अनादि काल से संसार में कुटिलता के कारण परिभ्रमण हो रहा है जिनवाणी माता के मनन चिंतन से जीवन को सरल बना सकते है और उस सरल जीवन को अपनाकर के रत्नत्रय धर्म के बल पर हम भी तो सिद्धालय की यात्रा कर सकते हैं। यह मंगल देशना आचार्य शिरोमणी श्री वर्धमान सागर जी ने 1100 धार्मिक शिविरार्थियों की उदयपुर की धर्म सभा में दश लक्षण पर्व के तीसरे दिन उत्तम आर्जव धर्म की विवेचना में प्रगट की। आचार्य श्री ने आगे बताया कि सरल भाव को जो धारण करते हैं वह अत्यंत सरस है ,रस से युक्त है कटुक नहीं है, मधुर है, वह सुर और मनुष्यों के द्वारा भी पूज्यता को प्राप्त करते हैं, इसलिए कुटिलता का त्याग करें और आर्जव भाव को प्राप्त करें । आर्जव का अर्थ है अंगूर की भांति बाहर भीतर एक समान , मिश्री की तरह माधुर्य पूर्ण ,जो विचार हृदय में स्थित है वही वचनों में व्यक्त करना एवं तदनुरूप आचरण की क्रियान्विति का नाम है आर्जव ।जिसका व्यवहार जितना सहज होगा वह उतना ही महान होगा, दिखावा करने वाले कभी महान नहीं होते हैं ।यह माया अविश्वास का निवास स्थान है, जो व्यक्ति मन में कुछ अन्य भाव, वचन में कुछ अन्य भाव, तथा क्रिया में कुछ और ही करते हैं वह मायावी , मायाचारी कहलाते हैं उसके संबंध में क्या कहे ,कोई भी इंसान इस बात को नहीं जानता कि उसका अगला कदम क्या होगा ,वह अपने स्वार्थ के लिए अपने पिता को भी जेल में डाल सकते हैं जैसे कणिक ने अपने पिता श्रेणिक महाराज को राज्य के जैल में डाल दिया था। व्यवहारिक जीवन में यदि आप सरल और सच्चे होना चाहते हैं तो संत और बच्चों के बीच थोड़ी देर समय बितावे वह आपको सिखाएंगे कि कैसे सरल और सच्चे होना चाहिए वस्तुत सरलता स्वाधीनता जीव का स्वभाव है अर्थात स्वभाव आर्जव है और विभव माया है और कुटिल परिणाम त्याग करने से आर्जव प्राप्त होता है आर्जव परम यतींद्र सुख का पिटारा है , आर्जव स्वयं आत्मा को भाव समुद्र से उतारने वाला है ,जो मनुष्य आर्जव धर्म का ध्यान करता है वही अविनाशी मोक्ष पद को प्राप्त करता है इसके पूर्व आर्यिका श्री वत्सल मती जी के प्रवचन हुए आपने बताया कि 18सितंबर 1950 आर्जव धर्म के दिन आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का जन्म हुआ शांतिलाल वेलावत,डा राजेश,सुरेश पद्मावत ने बताया कि दश लक्षण पर्व में शिक्षण शिविर में 1100 से अधिक समाज जन भाग ले रहे हैं प्रातः काल ध्यान योग श्री जी के पंचामृत अभिषेक,पूजन दोपहर को तत्वार्थ सूत्र की आचार्य श्री द्वारा विवेचना शाम को क्षुल्लक श्री महोदय सागर जी तथा पंडित आनंद जी शास्त्री कोलकाता के प्रवचन पश्चात धार्मिक प्रतियोगिता होती हैं कल 22 सितंबर को आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का 74 वा अवतरण दिवस भाद्र पद सप्तमी मनाया जावेगा