- मायावी व्यक्ति सुख शांति का अनुभव नहीं कर सकता – अभिषेक जी
भाटापारा – श्री 1008 आदिनाथ नवग्रह पंच बालयती दिगंबर जैन मंदिर भाटापारा छत्तीसगढ़ में पर्यूषण पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है । आज पर्यूषण पर्व का तीसरा दिन उत्तम आर्जव धर्म है। प्रातः काल 7:00 बजे मंगलाष्टक प्रारंभ किया गया, 7:30 पर अभिषेक प्रारंभ हुआ ,आज की शांति धारा का सौभाग्य अनिल मोदी एवं अभिषेक मोदी को प्राप्त हुआ। शांति धारा के पश्चात भगवान की मंगल आरती संपन्न हुई ।मंगल आरती के पश्चात सभी ने मिलकर पर्व पर धूमधाम से पूजा प्रारंभ की सर्वप्रथम देव शास्त्र गुरु पूजा ,सोलहकारण पूजा, पंचमेरू पूजा, दसलक्षण पूजा सम्पन्न हुई। धर्म सभा को संबोधित करते हुए प्रवचनकार अभिषेक मोदी ने बतलाया कि – धर्म का तीसरा लक्षण है, उत्तम आर्जव ,जैसे मृदु शब्द से मार्दव बना है। उसी प्रकार रिजु शब्द से आर्जव बनता है ।जिसमें किसी प्रकार का छल नहीं ,कपट नहीं, किसी प्रकार के धोखा देने की भावना नहीं ,ऐसी जो आत्मा की शुद्धि परिणीति है उसका नाम आर्जव है। सरलता के मायने हैं, मन वचन काय की एकता ,मन में जो विचार आया हो उसे वचन से कहा जाए और जो वचन से कहा जाए उसी के अनुसार काय से प्रवृत्ति की जाए। जब इन तीनों युगों की प्रवृत्ति में विषमता आ जाती है, तब माया कहलाने लगती है। मायाचारी व्यक्ति का व्यवहार सहज एवं सरल नहीं होता ।वह सोचता कुछ है बोलता कुछ है ,और करता कुछ है, उसके मन वचन कार्य में एकरूपता नहीं होती ,मायावी व्यक्ति सुख शांति का अनुभव नहीं कर सकता। जिनके विचार कथनी व करनी में एकरूपता होती है वह सदाचारी कहलाता है ।इसी से जीवन ऊंचा उठता है। हमें मायाचार को छोड़कर सदाचार को अपनाना चाहिए। मन में कुछ ,वचन में कुछ, और क्रिया में कुछ यही तो पतन व दुर्गति का कारण है। अतः मुंह में राम और बगल में छुरी की कुटिलता को छोड़ दो ,हमारा जैसा पवित्र जीवन मंदिर के अंदर है ,वैसा ही निश्चल ,निसकपट, सरल जीवन मंदिर के बाहर भी होना चाहिए। कौरवों की मायाचारी के कारण ही गीता का उपदेश देना पड़ा ,दुष्ट कौरवों ने लाक्षागृह बनाकर अपने ही भाइयों को जलाकर भस्म करने का मायाजाल रचाया था। मायाचारी व्यक्ति दोहरा जीवन जीता है ,एक जगह महाभारत की कथा हुई कथा में एक सेठ जी थे बड़ी तल्लीनता से कथा सुन रहे थे ,उनकी तल्लीनता से कथा सुनते देख कथावाचक ने सेठ जी से पूछा आपने इस भागवत की पूरी कथा को सुना है ,आपने क्या निष्कर्ष निकाला, आपको क्या अच्छा लगा, सेठ जी बोले इस पूरी कथा में मुझे दुर्योधन के चरित्र ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया ,श्री कृष्ण जी के कहने पर भी दुर्योधन ने पांच गांव की जगह क्या ,एक सुई की नोक के बराबर भी जगह देने से इनकार कर दिया। अब मैंने तय किया है कि आज के बाद में किसी को कुछ नहीं दूंगा। कथावाचक ने अपना सिर पकड़ लिया ।ऐसी कथा सुनने तथा सुनाने से क्या फायदा, यह अपने जीवन के साथ छलावा और भुलावा है ,और कुछ नहीं। अनेक उदाहरण भरे हुए हैं एक उदाहरण यह भी आता है की लंका के अत्यंत शक्तिशाली राजा रावण ने मायाचारी से नकली साधु का भेष बनाकर सीता का हरण कर लिया ,रावण अत्यंत मायाचारी था, रावण की मायाचारी के कारण ही उसका पतन हुआ है ।मायाचारी पुरुष बिल्ली के समान होता है,अत्यंत कृतज्ञ बिल्ली जिस मालिक का दूध पीती है, इस मलिक की आंख फूटने की माला जपती है, जब वह दूध पीती है तब आंखें बंद कर लेती है ,और मन में सोचती कि मुझे कोई नहीं देख रहा, पर जब पीछे से डंडा पड़ता है तब समझ में आता है। ठीक इसी प्रकार मायावी पुरुष भी नित्य सोचता रहता है कि उसकी मायाचारी को कोई नहीं देख रहा है ,परंतु जब कर्मों की मार का डंडा पड़ता है तब वह अत्यंत दुखी हो जाता है। एक दर्जी था उसने रात में सपना देखा कि मेरी मृत्यु हो गई है और मुझे दफनाया गया है और दफनाने के बाद उस पर अनेक रंगों की विभिन्न झंडिया लगी हुई है, बस सोचने लगता है कि मेरे कब्र में झंडिया क्यों लगाई गई है ,तो एक फरिश्ता आता है वह बोलता है कि तुमने जीवन की बेईमानी का तुम्हारी जीवन के बेईमानी का हिसाब है ,क्योंकि तुमने जितने लोगों के कपड़े चुराए हैं ,जितने रंग के कपड़े चुराए हैं उन सब की झंडिया यहां लगी हुई है, कयामत के दिन अल्लाह आएगा तो तुम्हें एक-एक गुनाह का हिसाब मांगेगा। वह जागा घबडा कर बोला मुझे ऐसी बेईमानी नहीं करनी है ,आया और अपने नौकरों से कहा कि मैं कभी भी किसी कपड़े काटने लगूं तो कहना उस्ताद जी झंडी ऐसा याद दिलाना ,फिर क्या था कोई भी कपड़ा आता उसका मन जों ही कपड़े को कटने का होता है, नौकर उसे सावधान करते उस्ताद झंडी ,उस्ताद जी तुरंत सावधान हो जाते ,यह रोज का क्रम था, एक दिन बढ़िया मलमल का कपड़ा आया ,उसे कपड़े को देखते ही दर्जी के मुंह में लार टपक गई ,जैसे ही वह कपड़े को काटने लगा तो नौकर ने कहा उस्ताद जी झंडी, तो उस्ताद तो पूरे उस्ताद थे कहने लगे अरे इस रंग का कपड़ा तो वहां थोड़ी लगा था ।यही हमारे मन की दुर्बलता है, मायाचारी है ,जो हमारे स्वयं के साथ ,हमारे द्वारा ही ना इंसाफी बेईमानी का कारण बन जाती है। मनुष्य अपने पाप को छुपाने का प्रयत्न करता है ,पर वह रूई में लपेटी आग के समान स्वय प्रकट हो जाता है, किसी का जल्दी प्रकट हो जाता है, किसी का विलंब से पर यह निश्चित है कि प्रकट आवश्यक होता है ,जो दूसरों को मायाजाल में फंसने का प्रयत्न करता है ,वह स्वयं उसमें फंस जाता है ।भारतीय संस्कृति में जहां आत्मा और परमात्मा को महत्व दिया जाता है ,आज उसका स्थान पैसे ने ले लिया है, पैसा ही परमेश्वर बन गया है, अब तो व्यक्ति एक का एक ही लक्ष्य है, जैसे तैसे कैसे-कैसे भी हो बस पैसा हो ,किसी भी मार्ग से आए पर पैसा हो ,आज व्यक्ति ने पैसे को इतनी प्रतिष्ठा दे दी है कि वह परमेश्वर की तरह पूजा जाने लगा है । रात्रि में श्री जी की , आचार्य विद्यासागर जी महाराज, मुनि श्री चिन्मय सागर जी महाराज की मंगल आरती संपन्न हुई । सुरभि मोदी एवं बेबी अनायसा मोदी द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम कराए गए । आज के कार्यक्रम में प्रमुख रूप से सुमन लता मोदी, आलोक मोदी, अभिषेक मोदी ,अभिनव, अभिनंदन ,अक्षत , अरिंजय, अविरल मोदी ,नेहा, सुरभि ,रजनी मोदी ,नवीन कुमार ,नितिन कुमार, सचिन कुमार ,पंकज, अक्षत, अंजू , भावना गदिया ,संदीप सनत कुमार जैन, निशी जैन आदि उपस्थित थे।