रायपुर – उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि कर्म और बन्ध की 11 अवस्था हैं। हम दो को जानते हैं, कर्म बन्ध और कर्म फल। कर्म सत्ता में पड़ा रहता है, सुप्त अवस्था में रहता है। वह है कि नहीं, इसका हमें पता नहीं चलता है। जो पता नहीं चलता है, उसे पता चलने से पहले ठीक कर दो तो आगे समस्या नहीं आएगी। पूरा धर्म, पूरी साधना एक बिंदु पर छिपी हुई है। इस बिंदु को नहीं छूने के कारण धर्म का हम करते हुए भी आनंद नहीं उठा पाते हैं। कर्म दो चीजों से बना है, एक प्रकट है, एक अदृश्य है। एक व्यक्त है, एक अव्यक्त है। ऐसे ही जीवन के बैर, कर्म के बन्ध छिपे रहते हैं। और इस समय उनको समाप्त करना आसान होता है। चिकित्सा विज्ञान परमात्मा के इस सिद्धांत का अनजाने में ही पालन कर रहा है। जीव गर्भ में है, उसी समय उसके जेनेटिक कोड को पढ़ा जाए और पता चल जाए कि उसे कौन कौन सी बीमारी होने वाली है, तो उसी समय उसके जेनेटिक कोड में बदलाव किया जाए। यह बहुत आसान है, क्योंकि यह बहुत छोटी से बात है। वो बीज के रूप में है। एक पेड़ को जलना हो तो बहुत ताकत लगती है, लेकिन एक बीज को जलना हो तो कम ताकत लगती है। ऐसे ही वैर के बीज है, इन्हे बढ़ने से पहले ही समाप्त कर देना चाहिए। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी । उपाध्याय प्रवीण ऋषि शैलेन्द्र नगर स्थित लालगंगा पटवा भवन में चल रही महावीर गाथा के 47वें दिन शुक्रवार को धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि दो शब्द है, इन्हे पकड़ें : एक सत्ता है और एक सत्य है। सत्ता प्रकट जो गई तो वह जीवन का सत्य बन जाती है, वो सत्ता सत्य नहीं बने, उसके पहले उसे समाप्त कर दो। कर्म के बीज समाप्त करो, फल से लड़ोगे तो काम नहीं चलेगा। जैसे विश्वभूति मुनि तपस्या का फल देखा रहा है। उसकी तप साधना बढ़ गई है। लेकिन वह उलझा हुआ है, उपयोग नहीं कर रहा है। विश्वभूति मुनि मासखमण का एकान्तर कर रहा है। उसे विशाख नंदी की याद भी नहीं आ रही है। लेकिन वह उसको प्यार भी नहीं करता है। क्षमा का मतलब है प्यार, अगर प्यार नहीं करोगे तो उसकी आज नहीं तो कल उसके दुश्मन बनने की संभावना है। आज नहीं तो कल उसपर गुस्सा करेगा।
विश्वभूति मुनि गोचरी के लिए नगर में घूम रहा है। विशाख नंदी भी उसी नगर में है। उसके कर्मचारी बाजार में घूम रहे हैं। उन्होंने सामने से आते विश्वभूति मुनि को देखा, दुबली पतली काया, तेजोमय चेहरा, वे आँखें, उसे ललाट पर राजतिलक जो उसके जन्म से था। उस तिलक को देखा तो कर्मचारियों के मन में विश्वभूति के प्रति भक्ति उमड़ पड़ी। उन्होंने सोचा एक समय में यह हमारा राजा था, आज योगी राजा है। उन्होंने मुनि का भावपूर्वक वंदन किया, नमन किया। कर्मचारियों ने सोचा कि राजा विशाख नंदी को बता दें कि उनका भाई, जिसे उन्होंने कई सालों से देखा नहीं है, उस योगी राज के हमने आज दर्शन किए हैं। कर्मचारी विशाख नंदी के पास सूचना लेकर पहुंचे। लेकिन उसने मना कर दिया। प्रवीण ऋषि ने कहा कि अगर आपके आसपास में कोई ‘विशाख नंदी’ हो तो उसे खबर मत करना। एक बार जयंती श्राविका ने परमत्मा से पूछा कि जीव सोता हुआ अच्छा है कि जागा हुआ? परमात्मा ने जवाब दिया कि विशाख नंदी सोया हुआ अच्छा है, और विश्वभूति जागा हुआ अच्छा। विशाख नंदी जाग गया तो जीवन में उत्पात मचाएगा। इसे सुप्त अवस्था में रखो। विश्वभूति को सोने मत दो। यह जब तक जगा रहेगा विश्व का कल्याण करेगा।
विशाख नंदी को यह खबर नहीं मिलनी थी। विश्वभूति के अंदर बारूद भरा था, और बारूद को विस्फोट के लिए मात्र एक चिंगारी चाहिए। विशाख नंदी वह चिंगारी था। विश्वभूति ने विशाख नंदी को भुला तो दिया था, लकिन प्यार भी नहीं किया। विशाख नंदी को खबर मिली, दर्शन के लिए आग्रह किया लेकिन वह नीचे नहीं गया। ऊपर से ही देख रहा था। उसने विश्वभूती को देखा, दुबली काया देखी लेकिन उसके चेहरे का तेज नहीं देखा, उसके कपड़े देखे लेकिन उसका स्वरुप नहीं देखा। एक मुनि मासखमण के पारणे के लिए जब चलता है तो उसके साथ श्रद्धालुओं की भीड़ भी चलती है। विश्वभूती के पीछे कई लोग चल रहे थे। वहीं सामने सड़क पर एक गाय ने बछड़े को जन्म दिया था, उसे बड़े प्यार से चाट रही थी। उसने भीड़ को देखा तो वह बिदक गई, बछड़े को बचाने के लिए वह भीड़ की तरफ दौड़ पड़ी। भीड़ तीतर बितर हो गई, लेकिन विश्वभूति नहीं हटा, उसे गाय का धक्का लगा और वह गिर गया। उसे गिरता देख विशाख नंदी ने ठहाका लगाया, और बोला- क्या तेरा शौर्य ख़त्म हो गया, तेरी ताकत कहां गई? विशाख नंदी के इन वाक्यों ने चिंगारी बनकर विश्वभूति के अंदर के बारूद में विस्फोट कर दिया। विश्वभूति खड़े हुए, विशाख नंदी को देखा, आवेश में आकर बोला- तू फिर आ गया? तुझे मेरा बल देखना है? विश्वभूति का तमतमाया चेहरा देख लोग स्तब्ध रह गए। विश्वभूति मुनि ने गाय को उठाया और हवा में घुमाया और विशाख नंदी की ओर फेंक दिया। यह देख विशाख नंदी की आँखें फटी की फटी रह गई। वह वहां से भागा। गाय ऊपर गिरी, फिर खड़ी हुई, नीचे आई और विश्वभूति को प्रमाण किया फिर अपने बछड़े के पास चली गई। विशाख नंदी भाग गया, विश्वभूति ने महसूस किया मैंने आक्रोश किया, संयम तोड़ा, मेरी साधना बर्बाद हो गई। प्रभु की नजर में गुनहगार बन गया। और विश्वभूति बिन पारणा लौट गए । रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि आज शाम से पुरुषाकार ध्यान साधना शिविर का एडवांस सेशन शुरू हो रहा है। 72 घंटे के इस शिविर में कलर थेरेपी से मेडिटेशन कराया जाएगा। इसके अलावा फेरे के रिश्तों को मोक्ष मार्ग का रास्ता बनाने के लिए 2 और 3 सितंबर को ब्लिस्फुल कपल शिविर का आयोजन होगा।