रायपुर – दिगंबर जैन आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि क्रोध मान माया लोभ ये चार कशाय हैं। और इन्हीं के वशीभीत होकर मानव अनर्थ पर अनर्थ करता है। प्रत्येक जीव किसी न किसी कषाय के वश होकर पाप कार्यों में प्रवत् होता है। हिंसा झूठ चोरी कुशीलऔर परिग्रह यह पांच पाप है। इन पांच पापों को करता हुआ जीव संसार सागर में दुखद भ्रमण कर रहा है। जो जितना सहन करता है वह उतना ही ऊंचाइयों को प्राप्त करता है ,सिद्धि प्राप्त करता है। सहन करना सीखो। बड़ा बनना है, तो सहन करना सीखो ।प्रसिद्धि पाना है तो सहन करना सीखो ।जो सहन कर लेता है वही सफलता प्राप्त करता है। धैर्य, सहनशील, क्षमावान, विवेकशील मानव वैभववान बनता है ।सर्प और अजगर कभी सीधे नहीं चलते। इसी प्रकार दुर्जन कभी सम्यक विचार नहीं करता है। दुर्जन और सड़क की गति एक सी होती है ।दुर्जन बहुत उपदेशों को प्राप्त करके भी सज्जनता को स्वीकार नहीं कर पता है ।जो समझाने पर भी ना सुधरे वही हैवान होता है। और जो भूल को छोड़कर सत्य के मार्ग पर चले, वही भगवान होता है। सुधार ही सज्जनता का प्रतीक है ।
धन धरती और स्त्री के राग में इस धरती पर बड़े-बड़े संग्राम हुए हैं। भाई भाई भी लड़ते हैं तो धन धरती या फिर तीसरा कोई कारण। वह कारण है तो वह है स्त्री। धन धरती और वासना से युक्त स्त्री का राग व्यक्ति को अंधा कर देता है ।विषयों में आसक्त चित्त पांच पापो में लिप्त हो जाता है। तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने उपसर्ग के दिनों में भी समता धारण कर उत्कर्ष प्राप्त किया। सहन करना सीखो, सफलता शीघ्र प्राप्त होगी।सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया । सभा मे प्रवीण जैन, अतुल जैन, सुनील जैन,दिनेश जैन, मनोज जैन, वरदान जैन,राकेश सभासद,पुनीत जैन, आदि थे ।