बड़ौत – आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महराज ने ऋषभ सभागार मे दिगंबर जैन समाज समिति द्वारा आयोजित धर्मसभा मे मंगल प्रवचन करते हुए कहा कि जिस प्रकार जल में बुलबुले उठते हैं और शांत हो जाते हैं ।उसी प्रकार व्यक्ति जन्म लेता है और देखते ही देखते मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। खिला हुआ पुष्प, संध्या काल में मुरझा जाता है। प्रातः उदित सूर्य संध्या काल में अस्त हो जाता है। इस संसार का यही यथार्थ स्वरूप है संसार असार है निस्सार है । समय बदलते देर नहीं लगती। मित्र कब शत्रु बन जाएगा पता नहीं। दिन बदलते देर नहीं लगती ।सबके दिन एक से नहीं होते ।घड़ी का कांटा कभी एक पर होता है तो वही काटा बारह पर होता है ।परिवर्तन संसार का नियम है। प्रत्येक व्यक्ति स्व योग्यता से विकास करता है ।विवेकी मनुष्य जाति, धर्म, परिवार ,राष्ट्र एवं विश्व का विकास करता है ।जब व्यक्ति पर विपत्ति आती है ,तो एकमात्र धर्म ही सार है ।जगत में जो भी संबंध है ,वह सब टूटने वाले हैं। परस्पर एक दूसरे की मदद करना मनुष्य का कर्तव्य है। जो दुखियों का दुख दर्द दूर करें, वही सच्चा मनुष्य होता है ।मानवता से शून्य मनुष्य का जीवन व्यर्थ है।
आदर्श संस्कारित शिक्षा ही विद्यार्थियों को शिक्षित कर सकती है ।राम जैसा बेटा चाहिए तो तुमको दशरथ बनना होगा। संस्कारित संतान ही सनातन धर्म को चला सकती है। संस्कारित संतान ही देश का विकास कर सकती है। संतान को संपत्ति देने के साथ संस्कार भी प्रदान करें। जीव स्व कृत पुण्य से ही प्रशस्त पर्याय, मनुष्य भाव धारण करता है। पापों से बचो। पुण्य कार्य करो ।अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाओ ।जीवन के मूल्य को समझो ।अपना लक्ष्य बनाओ और फिर लक्ष्य के अनुसार श्रम करो ।विवेकपूर्ण किया गया पुरुषार्थ ही फलित होता है। किसी को कष्ट मत दो। जीवो की रक्षा करो ।जीव रक्षा ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है । सभा मे प्रवीण जैन, सुनील जैन, अतुल जैन,विनोद जैन, वरदान जैन,राकेशसभासद,अशोक जैन, मनोज जैन, पुनीत जैन, दिनेश जैन आदि थे ।