हृदय शुद्धि और कषायमुक्ति का पर्व है संवत्सरी : साध्वी शुभंकरा श्रीजी
रायपुर – एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी में नवकार जपेश्वरी साध्वी शुभंकरा श्रीजी ने कहा कि संवत्सरी विशुद्ध रूप से आत्मशुद्धि का पर्व है। यह साल भर हुए पापों की आलोचना करने का पर्व है, हृदय शुद्धि और कषायमुक्ति का पर्व है। जैसे कपड़े एक बार पहनने के गंदे हो जाते है, वैसे ही इंसान से जाने-अनजाने में कई गलतियां हो जाती हैं। अपने से हुई गलतियों को याद कर पुनः माफी मांगने की प्रेरणा है, संवत्सरी। उन्होंने कहा कि क्षमा से बढ़कर कोई तप और त्याग नहीं होता। क्षमा से ही धर्म की शुरुआत होती है। संवत्सरी पर्व तभी सार्थक होता है जब इंसान अपने से हो चुके गलत कृत्यों के लिए माफी मांगता है और दूसरों से होने वाली गलतियों को माफ कर देता है। उन्होंने कहा कि जैसे गंगा में डूबकी लगाने से तन का मैल धुल जाता है वैसे ही क्षमा की गंगा में नहाने से पाप, ताप और संताप तीनों धुल जाते हैं। क्षमा धर्म को अपनाने वाला सच्चा आराधक होता है। जो व्यक्ति संवत्सरी पर्व के दिन भी भीतर में वैर-विरोध की गांठ पाले रखता है, वह इंसान कहलाने के काबिल नहीं है । साध्वीजी ने कहा कि संवत्सरी छोटों का नहीं, बड़ो के झुकने का पर्व है। 364 दिन भले ही बड़े छोटों से प्रणाम करवाएं, पर संवत्सरी का 1 दिन मानव जाति को संदेश देता है कि सास-बहू को, पिता-बेटे को अधिकारी-कर्मचारी को और बड़े छोटों को प्रणाम कर हो चुके अनुचित व्यवहार की क्षमायाचना कर ले। जो गलती करता है वह इंसान है, जो गलती पर गलती किए जाता है वह इंसान कहलाने लायक नहीं होता और जो गलती होने पर क्षमा मांग लेता है, वह भगवान तुल्य बन जाता है । उन्होंने आगे कहा कि जैसे व्यापारी साल बीतने पर खातों का लेखा-जोखा करता है, ठीक वैसे ही संवत्सरी साल भर का लेखा-जोखा करने का पर्व है। हमसे जो भी सालभर में पाप हुए हैं उन्हें स्वीकार कर स्वयं की आलोचना करने का पर्व है संवत्सरी उन्होंने कहा कि के वल तप-त्याग से आत्मा निर्मल नहीं होती है जो गलती को स्वीकार प्रायश्चित कर लेता है उसकी आत्मा अवश्य निर्मल हो जाती है । आज के समय में स्कूलों में ही बच्चों के मन में प्रतिस्पर्धा के बीज बो दिए जाते है । प्रतिस्पर्धाएं जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा जरूर देती है लेकिन इनसे आपस में द्वेष और ईर्ष्या की भावना भी बच्चों के मन में उत्पन्न हो जाते हैं। हमारी और आपकी यह जिम्मेदारी है कि बच्चों के मन इस प्रतिस्पर्धा के द्वेष और ईर्ष्या से बाहर निकालें। वैसे ही व्यापार में आज प्रतिस्पर्धाओं का दौर हैं और इनके चलते व्यापारियों के मन में भी कषायों का जन्म हो जाता है आप सभी को इससे दूर रहना है और सबको इस जहर से दूर रखना भी है।
मंदिर में सुसज्जित किया गया चांदी का तोरण
मनोहरमय चातुर्मास समिति के अध्यक्ष सुशील कोचर और महासचिव नवीन भंसाली ने बताया कि दादाबाड़ी में नूतन धर्मनाथ और प्राचीन धर्मनाथ मंदिर में अष्टमंगल और 14 स्वप्नों के प्रतीक चांदी का तोरण चढ़ाया गया। तोरण चढ़ाने के लाभार्थी श्री शांतिलाल जी, श्री अमित कुमार जी, शांतिदेवी बाघमार परिवार, डौंडी है। दूसरे तोरण के लाभार्थी श्रीमति गुलाब बाई बुरड़ और अखिलेश जी, अभिषेक जी गोलछा है।