सागर – नशा कोई भी व्यक्ति करता है वह उसका आदी हो जाता है लेकिन जब छोड़ने की बात कहते हैं तो वह बहाने बनाता है सच बात तो यह है कि नशा मानसिक बीमारी ज्यादा है शारीरिक कम है इसे छोड़ना बहुत आसान है यह बात मुनि श्री अजितसागर महाराज ने मूक माटी महाकाव्य की स्वाध्याय कक्षा में कहीं । उन्होंने कहा कि दो मित्र थे उनमें एक नशेड़ी था और दूसरा महाराज बन गया था बहुत दिनों बाद जब वह नशेड़ी महाराज के पास गया और कहा कि आपके जाने के बाद मेरी दिशा और दशा बदल गई है। बन गया हूं महाराज जी ने कहा 8 दिन तो मुझे समय दो तुम्हें नशा की स्थिति से बाहर निकाल देंगे वह मान गया 8 दिन तक महाराज जी ने उसे एक काले रंग की गोली नशे के रूप में दी 8 दिन बाद नशेड़ी से पूछा तुम्हें कैसा लगा नशेड़ी ने कहा मुझे रोज नशा की स्थिति थी। आपने क्या दिया मुझे महाराज जी ने कहा मैंने तुम्हें कुछ नहीं काले रंग की मैल (पसीना) की गोली बनाकर दी थी उसे तुमने अफीम समझा था और तुमने 8 दिन नशा नहीं किया है यह बात नशेड़ी के दिमाग में चढ गई और उसने सारे नशे को त्यागते हुए बैरागय का मार्ग धारण कर लिया मुनिश्री ने कहा गुणों का विकास धीरे-धीरे होता जाता है इसके लिए गुस्सा त्याग करना है किसी को गाली नहीं देना है जब यह बोध (ज्ञान) हो जाए तो शोध (चरित्र) होता है ज्ञान तो प्रत्येक आत्मा के पास है जिसके पास बोध ज्ञान होता है वही सोचता है मैं कौन हूं लेकिन आज की स्थिति यह है कि व्यक्ति सपनों में अपने आपको जी रहा है हकीकत कुछ और है व्यक्ति की कल्पनाएं रात में सोते हुए शुरू होती हैं कल सुबह क्या-क्या करेंगे और उसका पूरा जीवन इन्हीं कल्पना में कट रहा है ।