Home धर्म - ज्योतिष सुर दुर्लभ : नर-तन पाना – आचार्य विशुद्ध सागर

सुर दुर्लभ : नर-तन पाना – आचार्य विशुद्ध सागर

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बड़ौत (उ.प्र.) – दिगम्बर जैनाचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने दिगंबर जैन समाज समिति द्वारा आयोजित धर्मसभा में मंगल प्रवचन करते हुए कहा कि – ” अनुशासन प्रिय, विनय, जिज्ञासु लग्नशील, उत्साही, सहज-सरल जीवन जीने वाला ही विद्यार्थी श्रेष्ठ होता है।” अनुशासन प्रिय ही शासन कर सकता है। जो स्वयं ही अनुशासित नहीं है, वह दूसरों को अनुशासन नहीं सिखा सकता है। जो स्वयं अनुशासित जीवन जीता है, वही अनुशासन की शिक्षा दे सकता है। नैतिक व्यक्ति ही धार्मिक जीवन जी सकता है । मनुष्य भव प्राप्त करना सुर-दुर्लभ है। स्वर्ग का देवता बोध प्राप्त कर सकता है, परन्तु वह बोधि, संयम और समाधि को प्राप्त नहीं कर सकता है। मनुष्य ही मुक्ति को प्राप्त कर सकता है। सर्व-श्रेष्ठ कोई पर्याय है तो वह एक मात्र मनुष्य पर्याय ही है। सर्व-सुखों का भोक्ता मनुष्य ही होता है। उत्तम श्रेष्ठ कुल, उत्तम बुद्धि, वैराग्य, वीतरागी गुरू, जिन दीक्षा, संयमाचरण, सल्लेखना, समाधि और मोक्ष ये उत्तरोत्तर दुर्लभ हैं।

निरंजन की सिद्धि चाहिए है, तो मौन पूर्वक निर्विकार साधना करना होगा। कोई कीमती वस्तु रखना है, तो पहले पात्र को स्वच्छ किया जाता है। ऐसे ही निर्माण चाहिए तो सर्व-प्रथम अपने चित्त को स्वच्छ करो। जिसका चित्त स्वस्थ होगा, वही चारित्र को स्वच्छ कर पाएगा। विकृत चित्र ही चित्त और चारित्र को च्युत करते हैं। एक बूँद जहर सम्पूर्ण भोजन को विषाक्त कर देता है, वैसे ही क्षणिक-कषाय भी शांति- पथ में अशांति उत्पन्न कर देती है । दुनिया से जितना अधिक जुड़ोगे, जितना अधिक लोगों से परिचय बढ़ाओगे उतना अधिक निज से दूर होते जाओगे। अशांत होना है तो संबंध बढ़ाओ, शांति से जीना है तो संबंध घटाओ। जीवन जीना सीखो। मनुष्य जीवन सुर-दुर्लभ है, स्वर्ग के देवों को भी मनुष्य तन पाना कठिन है। मनुष्य ही संयम धारण कर सकता है।आत्मशुद्धि के पहले चित्तशुद्धि आवश्यक है। चित्त का निरोध, आत्मा का शोध करो। आत्म विशुद्धि के अभाव में परम-शांति संभव नहीं है । सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे प्रवीण जैन, सुनील जैन, अतुल जैन, दिनेश जैन, वरदान जैन, राकेश सभासद, विनोद जैन,मनोज जैन, पुनीत जैन, सतीश जैन, विवेक जैन, धनेंद्र जैन आदि थे ।