बड़ौत – जैन दिगम्बर आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार मे आयोजित धर्म सभा में प्रवचन देते हुए कहा कि- ” जो जगत् के प्रपंचों में संलग्न है, दुनिया भर के संकल्प- विकल्पों में अपने चित्त को लिप्त किए है, वह क्षण मात्र भी चित्त शांतता, परिणाम विशुद्धि, शुद्धोपयोग को प्राप्त नहीं होता है। चित्त शुद्धि के लिए वैराग्य, निसंगता, समता, धैर्य का होना आवश्यक है। चिंता करने वाला, व्यापार बुद्धि वाला, अशुद्ध चित्त वाला शुद्ध-भावों को प्राप्त नहीं कर पाता है । कंठ की विद्या, अंटी का पैसा हमेशा काम में आता है। ज्ञान ही प्रकाश है। ज्ञानाभ्यास से परिणाम विशुद्ध होते हैं। ज्ञानी सुख और आनन्द का अधिकारी होता है। जो आगम का ज्ञाता होता है वह अपनी प्रज्ञा से लोक में यश-कीर्ति और सम्मान को प्राप्त होता है। साधु के पास ज्ञान होना चाहिए और श्रावक के पास धन होना चाहिए। धन-सम्पत्ति के बिना श्रावक का जीवन कष्ट पूर्ण होता है, वैसे ही ज्ञानाराधना के बिना संयमी का जीवन क्लेशपूर्ण हो जाएगा।
संसार में ज्ञान के समान अन्य कोई उपकारी नहीं। अज्ञान के समान शत्रु नहीं। ज्ञान सम्पत्ति ही सर्वश्रेष्ठ होती है। ज्ञान ही वैराग्य की ओर ले जाता है। ज्ञान हिताहित का बोध कराता है। ज्ञान ही सुख का कारण है। सच्चा-ज्ञान ही आत्म-शांति और मुक्ति का साधन है ।संकल्प-विकल्पों से अशांति होती है। यह भी विचारिक हिंसा है। पल-भर का विशुद्ध- परिणाम बहुत बहुमूल्य होता है। विशुद्ध- परिणामों को संभालो। परिणाम संभल गए, तो पर्याय संभल जाएगी। परिणामों को सँभालो। भावों का परिवर्तन ही जीवन को प्रभावी बनाता है। भाव बदलते ही जीवन बदल जाता है। भावों के अनुसार ही जीवन की धारा आगे बढ़ती है। भाव बिगड़ते ही भविष्य बिगड़ जाता है। वर्तमान के भाव ही भविष्य में कार्य के रूप में अवतरित होते हैं। भूतकाल का भाव वर्तमान का कार्य, वर्तमान का भाव भविष्य का जीवन बनता है । जगत् में आनन्द का जीवन जीना चाहते हो तो अनेकान्त दृष्टि से देखो। एकान्त दृष्टि में ही दुःख है, अनेकान्त में आनन्द है। दृष्टि बदलो, सृष्टि बदली-बदली नजर आएगी । सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे प्रवीण जैन, अतुल जैन,सुनील जैन, संदीप जैन,राकेश सभासद, वरदान जैन, दिनेश जैन, वकील चंद जैन, राजेश जैन, मनोज जैन आदि थे