बड़ौत – दिगम्बर जैन आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार मे धर्मसभा में मंगल प्रवचन करते हुए कहा कि- कितना भी पुरुषार्थ करलो पर कोई बचने वाला नहीं है। काल के प्रहार से कोई नहीं बच सकता है। कहाँ गए राम? कहाँ गए कृष्ण ? कहाँ गए हनुमान ? कहाँ गए तीर्थंकर महावीर? जिनके इस भूमि पर राज्य चलते थे। पुण्यात्मा के जाने के बाद सम्पत्ति वैभव भी विलीन हो जाती है। रावण जैसा अहंकारी भी नहीं बचा। कंस, कौरव भी नहीं बचे। जब बड़े-बड़े सम्राट नहीं बचे, तो क्या आप बचोगे ? क्या आपका नाम बचेगा? क्या आपकी सम्पत्ति बचेगी ? न तो शरीर बचेगा, न नाम बचेगा और न ही भवन बचेंगे ।
राग हटाओ, कष्ट मिटाओ राग भी भला नहीं, द्वेष भी भला नहीं। राग और द्वेष दोनों ही अनर्थकारी हैं। अपनों से राम, पर से द्वेष यही संसार भ्रमण का मुख्य कारण है। ईर्ष्या अत्यंत दुखदायी होती है। अहंकारी का सब कुछ नष्ट हो जाता है। अहंकारी अहंकार के वश होकर पूज्य पुरुषों को भी अभद्र-वचन बोलता है। अहंकारी का शीघ्र ही सर्वनाश हो जाता है । राग-द्वेष दृष्टि हटाये बिना मानव कभी भी श्रेष्ठ कार्य नहीं कर सकता है। जैसा हम स्वयं के लिए चाहते हैं, वैसा ही दूसरों के लिए भी सोचो। दूसरों के अधिकारों को मत छीनो। गुणियों की सर्वत्र विजय होती है।अन्य किसी से ईर्ष्या मत करो, आपने गुणों में वृद्धि करो। जो वास्तविकता में चर्यावान होता है, श्रेष्ठ होता है, उसे लोग स्वयं ही खोजते हैं। जो दिखावा करते हैं, उन्हें कोई देखना नहीं चाहता है। ढोंग मत करो, ढंग का जीवन जियो । आत्मज्ञान से शून्य तप मुक्ति नहीं देता। तत्त्वज्ञान शून्य ज्ञान शांति नहीं देता। बुझा हुआ दीप प्रकाश नहीं देता। जला हुआ बीज फल नहीं देता । प्लास्टिक का फूल सुगंध नहीं देता। नमक के बिना भोजन स्वाद नहीं देता। प्रेम के बिना संबंध सुख नहीं देता। पाषाण पर फसल नहीं लगती। रेत से तेल नहीं निकलता। इसी प्रकार श्रद्धा के बिना तप मुक्ति नहीं देता । सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे प्रवीण जैन, सुनील जैन, विनोद जैन, धन कुमार जैन, धनेंद्र जैन, सतीश जैन, वरदान जैन,विवेक जैन, अमित जैन आदि थे ।