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जिस जीव में दया भाव ना हो, उसका जीवन शून्य है-मुनि श्री अजितसागर

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सागर – दया का होना जीव विज्ञान का सम्यक परिचय है जिस जीव में दया भाव ना हो उसका जीवन शून्य है और उसके जीवन में उपकार परोपकार के भाव नहीं हो सकते हैं और जिसके पास उपकार परोपकार के भाव होते हैं वह जीव भाग्यवान होता है जय बात मुनि श्री अजीत सागर महाराज ने मुख्यमंत्री महाकाव्य के स्वाध्याय में भाग्योदय तीर्थ में कहीं। उन्होंने कहा दया को धर्म ना मानकर कर्म बंध का कारण मान रहे हैं यह अध्यात्म नहीं है स्वर्ग स्वा के साथ पर का और पर के साथ स्वा का ज्ञान होता है जैसे दुख का संवेदन किया है तो दुख से ही सुख का परिचय कराया है जब तक पर मैं बुद्धि लगी रहेगी यह मेरे हैं वे तेरे हैं तो निश्चित रूप से आप भटकते रहेंगे ने कहा परदेसी कभी स्वदेशी नहीं हो सकता है और आत्मा कभी पर नहीं हो सकती है पर तो हमेशा पर ही होगा स्व कभी नहीं हो सकता है पर की पीड़ा दया और कष्टों को देखने पर स्व की याद आती है एक बार  आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को अमरकंटक के पास पेंड्रा रोड के आसपास हरपीज नामक रोग हुआ था। वैद जी आए और उन्होंने गुरुदेव को बैठे हुए देखा तो उन्होंने कहा इस रोग की पीड़ा जबरदस्त है और कोई दवाई भी नहीं है आचार्य श्री ने हंसते हुए कहा किसका सहन करना बहुत कठिन है हंसी खेल नहीं है संयम की भूमिका में यह रोग हुआ है सहन करना है और चलना भी है तो मुनि महाराज ने कहा कि आपको डोली में लेकर अमरकंटक जाएंगे। गुरुदेव ने मना कर दिया और कुछ दिनों बाद अस्वस्थ रहते हुए भी अमरकंटक पहुंच गए। आचार्य श्री जी ने कहा गाय का शुद्ध घी लगने से जलन कम होती है पर की पीड़ा को देखकर अपनी पीड़ा का भान होता है शिवा की याद ही स्व आया है पहले अपने ऊपर दया नहीं करोगे तो दूसरों पर कैसे करोगे। वासना का विकास मोह से होता है। लेकिन दया का विकास करें तो निश्चित रूप से मोक्ष की प्राप्ति होगी घर में ही मोक्ष का प्रमुख मार्ग है दया से संपन्न हो जाओ तो सुखी रहोगे लेकिन वासना जीवन को बुरी तरह जला देती हैं

मुनि श्री अजितसागर महाराज ने कहा कि वासना को कोई भयंकर नहीं मानता है अंगार को हाथ में लेने पर हाथ जल जाता है वासना आदमी को शैतान बना देती है और साधना आदमी को भगवान बना देती है। वासना अनंत काल से है और वासना जीवन को पूरी तरह जलाती है। हमें अपने गुणों को स्वयं झांकना चाहिए और दूसरों को देखो तो अच्छा देखना चाहिए आचार्य श्री कहते हैं मौन का जवाब न देना लाजवाब होता है। जवाब देने पर हम हंसते हैं हम फंस जाते हैं संसार में विकल्पों का कोई अंत नहीं है संसारी प्राणी को जब तक शरीर में श्वास है दया भाव नहीं छोड़ना चाहिए।