Home धर्म - ज्योतिष सिद्धियों का साधन : सामायिक – श्री विशुद्धसागर जी महाराज

सिद्धियों का साधन : सामायिक – श्री विशुद्धसागर जी महाराज

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बड़ौत (3.प्र.) – दिगम्बराचार्य श्री गुरु विशुद्धसागर जी महाराज ने धर्म-सभा में सम्बोधन करते हुए कहा कि साधक की चर्चा और चर्या से उसकी पहचान होती है । संसार, शरीर और भोगों से विरक्ति का होना वैराग्य है। परमशांति के लिए मौन पूर्वक संयम-साधना और तप अनिवार्य है। तप शोधक है, संयम सिद्धि का साधन है, विनय मोक्ष का द्वार है, तत्त्व- चिंतन कषाय का उपशमन करता है, अध्यात्म आत्मानुभवकला शांति एवं ध्यानाभ्यास मुक्ति का साधन है। वक्तृत्वकला मानव के लिए वरदान है। पुरुष की 72 कलाओं में ‘अध्यात्म’ सर्वश्रेष्ठ कला है। श्रेष्ठ-वाचकके वंश विश्व हो जाता है। श्रेष्ठ व्यक्ति उचित समय पर, पदानुकूल, श्रेष्ठ बात ही बोलते हैं। साधु के वचन मधुर, मृदु, गंभीर, कल्याणकारी, वैराग्य- वर्धक, आनन्दकारी एवं संशय का हरण करने वाले हैं । जगत् का क्या बिगड़ेगा था नहीं बिगड़ेगा यह तो दूर की बात है, परन्तु सज्जन पुरुष कार्य करने के पूर्व यह विचार करते हैं कि – मेरा क्या होगा? मुझे क्या मिलेगा? परिणामों की विशुद्धि मूल्यवान है, एक क्षण की विशुद्धि बहुत धन व्यय करके भी प्राप्त नहीं होती है । सर्व साधनाओं में श्रेष्ठ ‘समता-भाव’ है। समता के अभाव में श्रामण्य नहीं। जिन वचनों में सर्व-प्राणियों पर मैत्री भाव की भावना हो, गुणियों का बहुमान हो, दुःखियों पर करुणा हो और दुष्टों के प्रति भी द्वेष भाव न हो, मध्यस्थता हो वही ‘जिन-प्रवचन ‘ है । गुरुओं के वचन ही प्रवचन हैं । साधना का सार सामायिक है। सामायिक करने वाला साधक ही सफल-समाधि करा सकता है। सामायिक मूल-साधना है। सामायिक आनन्द है। सामायिक जो शांति है, वह अन्यत्र नहीं।