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दिगम्बराचार्य श्री विशुद्धसागर जी गुरुदेव ने धर्मसभा में सम्बोधन करते हुए कहा कि

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सगे ही दगा देते हैं

बड़ौत – सफल जीवन जीने के लिए नीति और रीति का ज्ञान होना आवश्यक है। नीति-रीति के अभाव में व्यक्ति असफल ही होता है। नीतिकार अपनी प्रज्ञा से विपत्ती को भी सहन कर संपत्ति प्राप्त कर लेता है। जो जीवन के मूल्य को समझता है, वह एक पत्र भी व्यर्थ नहीं व्यतीत करता । संकटों में धैर्य रखो। जो धैर्यवान होता है वह संकटों में भी विचलित नहीं होते। धैर्यवान हमेशा ऊँचाईयों को प्राप्त करता है। धैर्य सिद्धियों का दाता है। धैर्यशाली जंगल में भी अपने कर्तव्यों को नहीं छोड़ता है। धैर्य एक शक्ति है, जिसके बल पर बड़े-से-बड़े संकट को सहन किया जा सकता है । जनक-जननी को संस्कारहीन संतान और गुरु को विनयहीन शिष्य धरातल पर गिरा देता है। बड़े-बड़े योद्धाओं को जो सम्राट परास्त कर देता है, वह अपनी ही उद्दण्ड संतान से पराजित हो जाता है। जीवन में हमेशा सिर ऊँचा करके जीना है, तो अपनी संतान को सँभालकर रखो। अपने सगे ही, दगा देते हैं विश्व पर राज्य करना है, तो अपने घर के लोगों को प्रसन्न रखो। आपके निकट रहने वाले ही आपकी कमियाँ जानते हैं । तूफान भी आ जाये तो घबड़ाना नहीं, धैर्य रखना । बाढ़ आ जाए तो किसी पेड़ या चट्टान को पकड़ कर जान बचा लेना, फिर पुनः जीवन जीना। ऐसे ही जब-जब परिणाम बिगड़ें, पापों के तूफान चलें, भोगों की बाद आये, तो सच्चे गुरुओं की शरण ले लेना, प्रभु के द्वार चले जाना, तुम्हारी रक्षा हो जाएगी।