आज अवधि ज्ञान का रहस्य विज्ञान के लिये चुनौती है
मोक्षमार्ग समझने का नहीं मानने का विषय है
डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि आत्मा को कथंचित रूपि बताते है | जबकि वह अरुपि, अमूर्त है फिर भी वह रूपि क्यों बोले ? इसके बारे में बहुत अधिक मंथन हुए है | इंसान कि प्रकृति (संरचना) कैसी है इसके लिये कोई नियम हो उसके माध्यम से कार्य किया जा रहा हो ऐसा कोई सोच सकता है | ऐसी कोई मशीन है जिसमे कोई रॉ मटेरियल डाला और निचे से मनुष्य, तिर्यंच (पशु), पक्षी बनकर निकले ऐसा देखने में नहीं आया | विज्ञान भी आश्चर्य में है वे ऐसी मशीन बनाने में असमर्थ है| इसके बारे में उनमे बहुत उलझन समस्याएं है क्योंकि इसमें मानकर के चल नहीं सकते | ये कसौटी पर कसना चाहते हैं लेकिन सालो से इसका रहस्य नहीं खोल पाए | एकदम स्तब्ध है विज्ञान यह अद्भूत है बाकी संसार में ऐसा कोई अद्भूत है ही नहीं | यह ही एक मात्र अद्भूत है | जैनाचार्यों ने भी शास्त्र के माध्यम से इसको रखने का प्रयत्न किया है | जैसे चूना होता है जिसका वर्ण सफ़ेद होता है और हल्दी होती है जिसका वर्ण पीला होता है | जब चूना और हल्दी का सम्मिश्रण करते हैं तो न चूना आपको दिखेगा और न ही हल्दी आपको दिखेगी | दोनों का मिश्रण आपके सामने है जैसे कोई जादू हो गया हो इसका तीसरा रंग हो गया लाल | न चूना लाल है न ही हल्दी लाल है सामने दिख रहा है इसे नकार भी नहीं सकते | आँखों का काम है देखना वर्ण कि पहचान करना | न चूना न हल्दी के कण दिखेंगे अब उसका नया रंग आ गया है अब उसका पूर्व रंग रूप नहीं दिखेगा | इस प्रकार परिवर्तित होकर नई वस्तु आ गयी | न ही जीव (आत्मा) दिखता है और न ही जीव को पुद्गल से अलग किया जाता है | इसका सम्मिश्रण किया जैसे चूना और हल्दी का मिश्रण आपके सामने हुए ऐसे ही जीव के परिणामो के कारण जैसी वर्गणाये है वैसे ही परिवर्तित हो जाता है | यह आश्चर्य दिखा नहीं सकते किन्तु आपको जो कुछ संवेदन होता है परिणामों के कारण कर्म का उदय होता है | ऐसा लिखा गया है इसे मानने वाले सुनने वाले सामान्य व्यक्ति अपनी जिज्ञासा सामने रखता हो तो उसे समझाना मुश्किल है | मोक्षमार्ग सम्बन्धी समझाने से उसके गले नहीं उतरता जबकि मान लेने से काम हो भी सकता है | रोटी को आप निगल लेते हैं और गइया लोग रोटी को एक साथ खा लेते हैं | आप लोग भी रोटी या बड़ी – बड़ी वस्तु को चबन करके कंठ से प्रतिदिन निगलते हो | जब तक आप लोग विश्वास नहीं करते कि इससे मेरी क्षुधा मिटेगी तब तक वह रोटी भी कंठ से निचे नहीं उतरती क्योंकि उसमे आपकी मान्यता नहीं रहती | इस मान्यता का क्या है यह धीरे – धीरे संवेदन के बाद आ सकती है | आज अवधि ज्ञान विज्ञान के सामने श्रद्धान का विषय नहीं लेकिन उनको सोचने पर बाध्य होना पड़ता है | एक लड़का कहता है में वहाँ से आय हूँ | यहाँ से लगभग १०० किलोमीटर दूर पर मै वहाँ था | मेरे पिताजी, माता जी, भाई, मित्र वहाँ विद्यमान है | तो परिवार के लोग कहते हैं तुम्हारे माता, पिता, भाई, मित्र तो हम है तो वह कहता है आप बाद में हो पहले उन्होंने जन्म दिया था | इस बात को सुनकर के वैज्ञानिको के मन में जिज्ञासा हुई इसे विज्ञान भी समझने का प्रयास करता है | उनकी टीम उससे पूछती है कि आपके पहले वाले पिता क्या कर रहे है और बाकि परिवार के सदस्य क्या कर रहे है तो वह सब बता देता है कि मेरे पहले के पिता अभी घर पर यह काम कर रहे हैं | फिर वैज्ञानिकों कि पूरी टीम उस बालक को लेकर १०० किलोमीटर दूर गाँव में जाती है तो वह बालक परिवार के सभी सदस्यों का परिचय देता है कि यह मेरे पिता जी थे, ये माता थी, ये भाई था और यह मेरा मित्र था जिसके साथ मै उस विद्यालय में पढने जाता था | इसे शास्त्रों में जाती स्मरण कहा है | यह सारा का सारा विज्ञान के सामने चुनौती है | चुनौती इसलिए है क्योंकि वह मानने के लिये तैयार नहीं और उसको नकारने का साहस नहीं हो रहा | विज्ञान आज साहस को खो रहा है तो वह विज्ञान नहीं माना जायेगा | इसके अलावा वह बालक घर के भीतर जितने दरवाजा, खिड़की, अपने पढने का कक्ष, उस कक्ष का नाम भी बता देता है | विज्ञान ने आपको पढाया, लिखाया, शोध भी कराया लेकिन जीव विज्ञान कभी नहीं पढाया या बताया | इसलिए चिकित्सा करने वाले आज उस जीव विज्ञान के बारे में खोज चल रही है और जीव को देखने का प्रयास चल रहा है | लेकिन जीव दीखता तो नहीं लेकिन बोलता है | वैज्ञानिकों के सामने हमने कहा था कि जो वचन है शब्द है यह तो पुद्गल है लेकिन यह क्यों पुद्गल है ? अपने आप शब्द बनता है क्या ? जो इसमें जीव का परिणाम जब तक निमित्त नहीं बनेगा तब तक शब्दों कि संरचना हो ही नहीं सकती | यह विज्ञान के लिये खोज का विषय है | जब तक हम भाव नहीं करेंगे बोलने का तब तक शब्द नहीं निकलता है | कुछ विधि के द्वारा चूना और हल्दी के सम्मिश्रण को अलग किया जाता है तो चूना के कण अलग और हल्दी के कण अलग दिखाई देते हैं| इसी प्रकार जीव और पुद्गल दोनों के सम्मिश्रण होने के उपरांत भी एक नहीं हो पा रहा है | वह तो चला गया इसका अर्थ क्या है ? वह चलबसे यहाँ से वहाँ जाकर बसे | चल मतलब मिट गए मृतक हो गए फिर वहाँ जाकर के बस गए | इसी को चलबसे कहते हैं | सभी को एक दिन चलना है किसी को आगे तो किसी को पीछे | समझ गए – यह समझने कि बात है ही नहीं यह तो मानने कि बात है | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य श्री राजीव जी जैन भिलाई (छत्तीसगढ़) निवासी परिवार को प्राप्त हुआ | जिसके लिये चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, सुभाष चन्द जैन,निर्मल जैन, चंद्रकांत जैन,मनोज जैन, सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की आचार्य क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है | यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है | यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी सिंघई निशांत जैन (निशु) ने दी है |