बड़ौत – दिगम्बराचार्य श्री गुरु विशुद्धसागर जी ने धर्मसभा में सम्बोधन करते हुए कहा कि घर-परिवार का कुशल-संचालन करना है, तो संतुलन होना चाहिए। जिसके घर में आय अधिक होगी, व्यय कम होगा, वही अशांति और कलह से बच जाता है। देश, राष्ट्र और परिवार की समृद्धि के लिए आय-व्यय का संतुलन आवश्यक है । जीवन में शांति से जीना चाहते हो तो संतुलन सीखो, संतुलन के अभाव जीवन अशांत हो जाता है। संतुलित बोलो, समय पर बोलो, काम का बोलों संतुलित भोजन करो। असंतुलित जीवन प्लास्टिक पुष्पवत् व्यर्थ है । साधुओं की सेवा भी करो। आय के साथ व्यय भी करो। जोड़ जोड़कर रखते गए तो कोई क्षीण लेगा। बोलने पहले विचार करो। प्रभु की भक्ति करो, प्रभु भक्ति से सुन्दर रूप की प्राप्ति होती है। जिसका दुनिया में नाम चल रहा है, उस व्यक्ति की वृत्ति को धारण करो। यश भी चाहिए तो गुरुओं की सेवा करो । संसार में पापियों की संख्या बहुत है, परन्तु महा-पापी वह है जो उपकारी का अपकार करता है। जिस माँ ने तुम्हे जन्म दिया है, पढ़ाया है, योग्य बनाया है, जीवन दान दिया है उस माँ का अपकार नहीं करना। उपकारीका उपकार न चुका सको तो कोई बात नहीं, पर उसके उपकारों को भूलना नहीं।