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नगर गौरव आचार्यश्री के चरणों में किया जतारा जैन समाज ने स्वर्णिम चातुर्मास हेतु निवेदन

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जतारा – प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण जन्म भूमि अतिशय क्षेत्र जतारा” का जाग रहा है परम सौभाग्य । जीवन है पानी की बूंद भजन के  नाम से जाने माने जैन महा संत आचार्य श्री विमर्श सागर जी महा मुनिराज की जन्मभूमि, धर्म नगरी जतारा की सकल जैन समाज एवं नगर वासियो ने नगर गौरव आचार्य श्री के पावन चरणों में श्री फल समर्पित कर वर्ष 2013 से स्वर्णिम चातुर्मास हेतु विनम्र निवेदन किया । 15 नवम्बर 1973 के पावन दिन जतारा अतिशय क्षेत्र की माटी मे जन्मे, राकेश जैन आज विश्व पटल पर प्रसिद्ध जैन आचार्य के रूप में विभिन्न समाजों, नगरों एवं देश सहित सम्पूर्ण विश्व को अपने आचार-विचार से अभि-सिन्चित कर नई चेतना प्रदान कर रहे हैं। दया, करुणा, प्रेम, वात्सल्य आदि अनंत गुणों के धारी आचार्य परमेष्ठी को उनकी ही जन्म स्थली, जन्मभूमि पर पाकर सम्पूर्ण नगरवासी हर्षित, प्रसन्नचित हैं। ऐसे श्रेष्ठ गुणों से परिपूर्ण विशाल चतुर्विध संघ का पांच माह का दीर्घकालीन प्रवास प्राप्त करने के लिए सभी समाज के वरिष्ठ श्रावकों सहित नगरवासी जनों ने अपने शुभ भावों सहित श्रीफल समर्पित किया ! सम्पूर्ण समाज के भावपूर्ण सविनय निवेदन को सुनकर जतारा नगर गौरव भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्श सागर जी महा मुनिराज ने अपना मंगल उद्बोधन देते हुए कहा-

एक निर्ग्रन्थ योगी पद बिहार करते हुए एक नदी के किनारे ध्यान लगाकर बैठ गए। नगरवासी जन उनके दर्शन हेतु आए और उन्हें अपने नगर में पधारने हेतु सविनय निवेदन किया । निर्ग्रन्थ योगिराज ने कहा- पहले यह नदी पूर्ण रूप से बहकर निकल जाए पश्चात् मैं गमन करूँगा । नगरवासी कुछ समझ नहीं पाए। योगिराज ने कहा भाई, गुरुजन आपको सद्बोध देते हैं कि कुछ धर्म ध्यान भी किया करो तो आप कहते हैं, गुरुवर कुछ जिम्मेदारियाँ हैं वे पूर्ण कर लूँ फिर तो बस धर्मध्यान ही करना है। लेकिन ध्यान रखना बन्धुओ ! आपकी गृहस्थी की जिम्मेदारियाँ कभी पूरी नहीं होगी। आपका वेटा विद्यालय जाता है तो उसकी मुख्य जिम्मेदारी पढ़कर काबिल बनना है उसी प्रकार यह मनुष्य जीवन हमने प्राप्त किया है इस मानव जीवन की हमारी मुख्य जिम्मेदारी व्यक्तिगत रूप से धर्मध्यान करने की है। आप अपने पारिवारिक जीवन में अनेक प्रकार की जिम्मेदारियों का निर्वाह किया करते हैं। उन सब जिम्मेदारियों से भी ऊपर अपने जीवन का संवारने के लिए धर्म ध्यान की जिम्मेदारी व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक मानव की हुआ करती है। आपकी व्यावहारिक जिम्मेदारियों के संबंध से भी ऊपर एक संबंध होता है वह है साधु और श्रावक के बीच, जिम्मेदारी का संबंध | आप इस संबंध को निभाना भी अपनी एक जिम्मेदारी समझे ।भारतीय जैन संगठन तहसील अध्यक्ष अशोक कुमार जैन ने बताया कि परम पूज्य आचार्य गुरुवर के सानिध्य में 1008 श्री भक्तामर महामंडल विधान करने का सौभाग्य नगर के सप्तम प्रतिमाधारी श्री मति कंचनदेवी- हरिश्चंद्र जैन श्रीमति अभिलाषा- अशोक कुमार जैन, उपाध्यक्ष- प्रबंधकारिणी समिति जतारा, श्रीमति अर्चना -इंजीनियर धीरेन्द्र कुमार,कु0 आकृति, इंजीनियर अतिशय, अनन्या, मौली, हिताक्षी (हेली) जैन समस्त चौधरी परिवार, जतारा को प्राप्त हुआ ।