उदयपुर (विश्व परिवार)। संसार के प्राणी चलते चलते थक जाते हैं ।रास्ते में या घर पर जाकर विश्राम करते हैं ,तब उन्हें सुख का अनुभव होता है ,किंतु सभी प्राणी संसार परिभ्रमण करते हुए थकान महसूस नहीं करते।इंद्रिय विषयो में राग, परिगृह और कषाय संसार में परिभ्रमण का कारण है । यह मंगल देशना वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने श्री आदिनाथ भवन के वर्धमान ब्रह्मचारी गजू भैय्या,राजेश पंचोलिया पारस चितोड़ा अनुसार प्रवचन में आचार्य श्री ने आगे बताया कि जिस प्रकार नदी के तट पर किनारे लगकर नया रास्ता मिलता है, उसी प्रकार संसार भ्रमण करते हुए कुछ भव्य जीव किनारे पहुंच जाते हैं उसके लिए उन्होंने इंद्रीय विषयों से विरक्ति ली , परिग्रह का त्याग किया, मुनि संघ की संगति की,और कषाय का निग्रह किया ।इन रास्तों से संसार का किनारा मिलता है । संचारी प्राणी की अनंत इच्छाये होती है कोई भी इच्छा पूर्ण नहीं होती, जिन्होंने इंद्रियों का निग्रह कर लिया है उनकी इच्छाएं समाप्त हो जाती है। परिग्रह कषाय से संसार परिभ्रमण होता है ।रसना इंद्रिय के कारण नए-नए स्वाद खोजते हैं आपकी इच्छाएं बढ़ गई है शरीर थक गया किंतु मन अभी तक थका नहीं। आचार्य श्री ने बताया कि सात तत्वों के अभ्यास से आप संसार से किनारा खोज सकते हैं जीव अजीव आश्रव बंध संवर , निर्जरा और मोक्ष। इसमें जीव प्रथम तत्व है और मोक्ष अंतिम तत्व है। अर्थात आत्मा में कर्मों का आश्रव रोककर संवर और निर्जरा कर जीव को तब मोक्ष प्राप्त होगा। संसार में भ्रमण कर्मों और परिग्रह के संग्रहण कारण हो रहा है जिस प्रकार भारी पत्थर नदी में डूब जाता है उसी प्रकार कर्मों के आश्रव और बंध का वजन आत्मा पर हो जाता है इस कारण आप संसार में डूब रहे हैं, परिभ्रमण कर रहे हैं। आचार्य श्री ने धर्म सभा में बताया कि धर्म का आश्रय लेकर आप कर्मों से छूट सकते हैं जिस प्रकार धन का संचय करके आप भौतिक सुख प्राप्त करते हैं उसी प्रकार धर्म का संचय कर आप परलोकिक सुख प्राप्त कर सकते हैं धन धन संचय के लिए आपके पास समय है किंतु धर्म के संचय के लिए देव शास्त्र गुरु के पास जाने का आपके पास समय नहीं है आचार्य श्री ने बताया कि आत्मा में बहुत शक्ति है छोटे-छोटे नियम लेकर आप धर्म को धारण कर सकते हैं भीषण संसार रूपी वन में आप रास्ता भूल गए हैं जिनालय देव शास्त्र गुरु से संसार से छूटने का रास्ता मिलेगा धर्म छत्रछाया है
पाप से आत्मा भारी हो रही है पुण्य राह दिखाता है पुण्य का फल धर्म से मिलता है आचार्य श्री ने बताया कि शरीर कषाय ,परिग्रह आसक्ति के कारण आप दुख पा रहे हैं ।धर्म धारण करने वाला धर्मात्मा होता है और रत्नत्रय धारण करने वाला धर्म प्रभावना करता है। इसलिए धर्म को धारण कर मनुष्य जीवन को सार्थक करें इसके लिए कषाय और विषयों से आसक्ति कम करें । आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व पूर्वाचार्यों के चित्र समक्ष दीप प्रवज्जलन अतिथियों एवम् श्री आदिनाथ मंदिर एवम् पंच कल्याणक प्रतिष्ठा कमेटी के पदाधिकारियों ने किया।आचार्य श्री के चरण प्रक्षालन, एवम् शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य ललित, रोहित, भदावत परिवार भिंडर सूरत को प्राप्त हुआ संचालन डा राजेश देवड़ा ने किया।