यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध के बीच रूस ने बीते 31 मार्च को अपनी नई विदेश नीति तय की है. इस विदेश नीति के साथ ही रूस ने इससे जुड़ा एक स्ट्रैटेजिक डॉक्यूमेंट भी जारी किया है.
भारत के सबसे बड़े डिफेंस पार्टनर रूस ने अपनी नई विदेश नीति में भारत और चीन को लेकर काफ़ी कुछ कहा है.
कहा जा रहा कि इस नई विदेश नीति को वर्तमान में चल रही परिस्थिति और राष्ट्रीय सुरक्षा की रणनीति के हिसाब से बनाया गया है. हालांकि, इसमें पश्चिमी देशों को खतरा भी बताया गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस नई नीति का भारत-रूस रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा और रूस की नई विदेश नीति में पश्चिमी देशों के लिए क्या कुछ है?
नई विदेश नीति का भारत पर क्या होगा असर
रूस और भारत के रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं. दोनों देशों ने कई मौके पर एक दूसरे की मदद कर पिछले कुछ दशकों में इस रिश्ते को और मजबूत भी किया है. उदाहरण के तौर पर यूक्रेन युद्ध को ही ले लीजिए, इस युद्ध की शुरुआत से पूरी दुनिया रूस के खिलाफ हो गई थी और भारत के रूस की आलोचना का दबाव बनाया गया था. हालांकि भारत उस वक्त भी अपनी दोस्ती निभाते हुए हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर न्यूट्रल रहा.
यही सब कारण है कि रूस भारत को अपने मित्र देशों में गिनता है. और लगातार भारत को सस्ती दर पर कच्चा तेल बेच रहा है. अब शुक्रवार को रूस के राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गए विदेश नीति में कहा गया कि रूस भारत के साथ विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी का निर्माण करना जारी रखेंगे. इसके अलावा कहा गया है कि भारत के साथ रूस पारस्परिक रूप से लाभकारी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाएगा.
इसमें शंघाई कॉरपोरेशन, रूस-भारत-चीन, ब्रिक्स और दूसरे ऐसे संगठनों को प्राथमिकता देने पर जोर दिया गया है जिसमें पश्चिमी देशों की कोई भूमिका नहीं है.
रूस ने अपनी नई विदेश नीति के तहत भारत के साथ क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने और विस्तार करने के साथ साथ. द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने, निवेश और तकनीकी संबंधों को मजबूत पर जोर देने की बात कही है.
इसके अलावा रूस की नई विदेश नीति में कहा गया कि जो देश रूस के मित्र नहीं हैं उन देशों और उनसे जुड़े गठबंधनों पर भी लगाम लगाने का काम किया जाएगा. रूस ने जोर देते हुए कहा कि वह एक स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करता है. साथ ही इस देश ने ये भी कहा कि वह एक मल्टी पोलर दुनिया में विश्वास रखता है.
मल्टी पोलर दुनिया का मतलब है एक ऐसी दुनिया जहां अमेरिका के खिलाफ सुपर पावर मत हो और कई ऐसे देश हैं जो अहम मामलों में दखल देने की स्थिति में हों. इसके लिए रूस ब्रिक्स, एसइओ, आरएएस के अंतर्राष्ट्रीय भूमिका को मजबूत करना चाहता है.
इस ड्राफ्ट में पुतिन ने भारत की सदस्यता वाले तीन संगठनों, ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और आरआइसी (रूस-भारत-चीन) को और मजबूत करने का जिक्र किया है. रूस के अनुसार वह इन तीनों ही संगठन को मजबूत कर देंगे. ताकि पूरी दुनिया में किसी एक के पास ताकत न हो, बल्कि कई सारी शक्तियां हों.
रूस ने अपनी विदेश नीति में भारत को अहम सहयोगी बताया है. जिसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि दोनों देशों के बीच भविष्य में और भी कई बड़े फैसले हो सकते हैं.
चीन के साथ बढ़ते संबंध पर क्या है दास्तावेज में
चीन के साथ बढ़ते संबंध पर इस दस्तावेज में कहा गया कि मास्को का लक्ष्य बिजींग के साथ व्यापक साझेदारी, रणनीतिक सहयोग को और मजबूत करना है. यूरेशियन रीजन के विकास में भी रूस ने चीन के भूमिका को बढ़ावा देने की बात कही है. ऐसे में साफ है कि ये दोनों देश तेजी के करीब आ रहे हैं.
बता दें कि हाल ही में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस की यात्रा की थी. माना जा रहा था कि यूक्रेन के साथ युद्ध के बीच इस यात्रा से रूस का झुकाव चीन की ओर बढ़ेगा. दोनों देशों के बढ़ते रिश्तों का आलम ये है कि पुतिन ने हाल ही में कहा था कि चीनी राष्ट्रपति शी के प्लेन से ये युद्ध समाप्त हो सकता है.
अमेरिका के प्रति नया नजरिया
दरअसल पिछले साल 23 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया था. दोनों देशों के बीच अभी भी यह युद्ध जारी है. इस युद्ध के खिलाफ अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने बहुत सख्त रुख अपनाया था.
रूस द्वारा जारी किए गए स्ट्रैटिजिक दस्तावेज के अनुसार अमेरिका स्पष्ट तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्थायित्व के लिए खतरा है. इसके साथ ही अमेरिका को रूसी विरोधी दिशा का प्रेरक करार दिया गया है. ये भी माना गया है कि पश्चिमी देश रूस के आंतरिक राजनीति में भी दखल देना चाहते हैं. ऐसे में इस देश ने यूरोपीय यूनियन और नाटों के खतरे को बेअसर करने की भी बात कही है.
हालांकि दस्तावेज में एक मंशा भी जताई गई है कि वह अमेरिका के साथ शांतिपूर्ण अस्तित्व और हितों में संतुलन की अपेक्षा करता है. स्ट्रैटिजिक डॉक्यूमेंट में यह भी कहा गया है कि रूस अमेरिका से रणनीतिक स्थायित्व कायम करना चाहता है.
पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया
रूस ने इस नई विदेश नीति को 31 मार्च पर अपनाया है. इन नीति पर यूके के विदेश, कॉमनवेल्थ डेवलपमेंट ऑफिस ने रूसी विदेश मंत्रालय के ट्वीट को शेयर करते हुए लिखा है कि 1 अप्रैल बेवकूफ बनाने का दिन है. पश्चिमी मीडिया ने भी इस पर पश्चिमी देशों के लिए विरोधी नीति और अमेरिका विरोधी कहा है.
यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत-रूस रिश्तों में बढ़ी करीबी
भारत और रूस के अच्छे संबंध तो थे ही लेकिन माना जाता है कि रूस यूक्रेन युद्ध ने दोनों देशों को और करीब ला दिया है. उस पश्चिमी देश रूस को कूटनयिक तौर पर अलग-थलग करने की कोशिश कर रहे थे. कई पश्चिमी कंपनियों ने इस देश में अपना कारोबार बंद कर दिया और निवेश भी रोक दिया है.
यूक्रेन पर हमला करने के फैसले से नाराज कुछ देश ने अपनी कंपनिया और अंतरराष्ट्रीय ब्रांड वापस बुला लिया था लेकिन इस बीच भारत-रूस संबंध फलते-फूलते दिखें. इस दौरान दोनों देशों के नेता एक दूसरे देश में यात्राएं कर रहे थे या फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर मिल रहे हैं.
युद्ध के दौरान कब-कब मिले पीएम मोदी- राष्ट्रपति पुतिन
रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात कई बार हुई. सितंबर 2022 में पीएम नरेंद्र मोदी उज्बेकिस्तान के शहर समरक़ंद में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भाग लेने पहुंचे थे जहां उनकी मुलाकात रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से हुई थी.
पिछले साल दिसंबर यानी 2022 में रूसी राष्ट्रपति भारत के दौरे पर थे. वहीं जुलाई 2021 में विदेश मंत्री ने रूस का दौरा किया था और उसके बाद अप्रैल 2022 में भी रूसी विदेश मंत्री ने नई दिल्ली की यात्रा की थी.
आसमान छू रहा भारत रूस द्विपक्षीय व्यापार
नवंबर 2022 तक भारत और रूस के बीच हुए द्विपक्षीय व्यापार में 500 फीसदी की बढ़त हुई है. ये आंकड़ा चौंका देने वाला है. साल 2022 के अप्रैल महीने से लेकर अगस्त के बीच, यानी केवल पांच महीनों में द्विपक्षीय व्यापार 18.2 अरब डॉलर रहा. ये व्यापार पिछले साल साल में केवल आठ अरब डॉलर था. जिसकी खास वजह है रूस से भारी मात्रा में कच्चे तेल और फर्टिलाइजर का आयात.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार पांच महीने में हुए 18.2 अरब डॉलर के व्यापार में कच्चे तेल और फर्टिलाइजर का योगदान 91 प्रतिशत था. विशेषज्ञ की मानें तो आने वाले दिनों में रूस से कच्चे तेल की आयात में और भी वृद्धि हो सकती है.
क्या कहते हैं आंकड़े
भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2020-21 में रूस के साथ भारत का कुल व्यापार 8.14 अरब डॉलर और साल 2021-22 में 13 अरब डॉलर का था.
इस दौरान जहां एक तरफ जहां रूस में भारत का निर्यात स्थिर रहा, वहीं दूसरी तरफ आयात बढ़ा है. साल 2020-21 में 5.4 अरब डॉलर से बढ़कर ये 2021-22 में 9.8 अरब डॉलर हो गया है.
रूस से कच्चा तेल के आयात में 50 गुना की बढ़ोतरी
अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों के अनुसार भारत रूसी तेल के एक मुख्य खरीददार बनकर उभरा है. वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार 24 फरवरी 2022, यानी रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने रूस से कच्चे तेल के आयात में 25 गुना से ज्यादा की बढ़त की है.
वहीं अन्य मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि ये बढ़त और भी ज्यादा रही. अप्रैल 2022 से अब तक रूस से भारत के कच्चे तेल का आयात 50 गुना अधिक हो गया है.
हालांकि तेल के आयात में हुई वृद्धि को महंगाई पर अंकुश लगाने के प्रयास के रूप में देखा गया है. वहीं कुछ का तर्क है कि रूस से सस्ता तेल खरीदना, भारत की लंबे समय से चली आ रही ईंधन ज़रूरतों का एक ‘अस्थायी समाधान’ था.