Karnataka Election 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान होने के साथ ही सियासी रणभेरी बज चुकी है. वोटिंग के लिए एक महीने से कुछ ही ज्यादा समय बचा हुआ है, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस ने अभी तक मुख्यमंत्री उम्मीदवार के मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है.
वहीं, जेडीएस पहले से ही एचडी कुमारस्वामी को सीएम कैंडिडेट के तौर पर पेश करती रही है. यहां सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर बीजेपी और कांग्रेस की ओर से सीएम कैंडिडेट का एलान क्यों नहीं हो रहा है?
बीजेपी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले ही एलान कर दिया है कि वो सीएम बसवराज बोम्मई के नाम पर ही चुनावी मैदान में उतरेगी. हालांकि, बीजेपी की ओर से ये भी कहा गया है कि चुनाव नतीजे आने के बाद ही मुख्यमंत्री पद को लेकर फैसला लिया जाएगा. ठीक यही हाल कांग्रेस का भी है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सिद्धारमैया खुलेआम अपनी दावेदारी जता चुके हैं, लेकिन हाईकमान ने अभी तक सीएम फेस को लेकर कुछ नहीं बोला है. सवाल ये है कि आखिर बीजेपी और कांग्रेस ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार के नाम के एलान से दूरी क्यों बना रखी है?
बीजेपी के सामने क्या हैं चुनौतियां?
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, बीजेपी के पास कर्नाटक में नेतृत्व का अभाव है. पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा को हटाए जाने के बाद भले ही बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री बन गए हों, लेकिन सूबे में उनका कद येदियुरप्पा के मुकाबले कहीं नहीं टिकता है. यही वजह है कि बीजेपी सत्ता में होने के बावजूद सीएम कैंडिडेट के एलान को लेकर सतर्कता बरत रही है और किसी भी नाम की घोषणा से बच रही है.
कर्नाटक की सियासत में जातिगत राजनीति हमेशा से बड़ा मुद्दा रही है. बीजेपी को सत्ता में बने रहने के लिए लिंगायत और वोक्कालिगा दोनों समुदायों का ही समर्थन चाहिए होगा. लिंगायत बीजेपी के पारंपरिक मतदाता कहलाते हैं. वहीं, वोक्कालिगा समुदाय को जेडीएस का काडर वोट बैंक माना जाता है. बीजेपी ने संतुलन बनाए रखने के लिए बसवराज बोम्मई को पार्टी की चुनाव प्रचार समिति की अध्यक्षता देकर लिंगायत समुदाय को साधा है. वहीं, वोक्कालिगा समुदाय को साधने के लिए केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे चुनाव प्रबंधन प्रभारी बनाया है. इसी के साथ बीजेपी ने मुस्लिमों को मिलने वाले आरक्षण को खत्म कर उसे भी इन दोनों समुदायों में बांट दिया है.
बीजेपी के लिए कर्नाटक में गुटबाजी भी एक बड़ी चुनौती है. बसवराज बोम्मई, बीएस येदियुरप्पा, बीएल संतोष जैसे नेताओं के अपने-अपने खेमे बने हुए हैं. वहीं, कुछ कैबिनेट मंत्री भी खुद को सीएम पद के लिए मजबूत उम्मीदवार मानते हैं. वहीं, बसनगौड़ा पाटिल, केएस ईश्वरप्पा, एएच विश्वनाथ, सीपी योगेश्वरा जैसे वरिष्ठ बीजेपी नेताओं का अपना एक मजबूत सियासी आधार है और इनके पसंदीदा नेता भी हैं. इस स्थिति में अगर बीजेपी सीएम कैंडिडेट का एलान करती है तो उसे नुकसान होने की संभावना बढ़ जाएगी.
इतना ही नहीं, बसवराज बोम्मई सरकार पर 40 फीसदी कमीशन वाली सरकार का ठप्पा भी विपक्षी दलों ने लगाने की भरपूर कोशिश करी है. बीजेपी के खिलाफ विपक्ष ने भ्रष्टाचार को बड़ा सियासी हथियार बनाया है. वहीं, कर्नाटक चुनाव 2023 से ठीक पहले बीजेपी विधायक मदल विरूपक्षप्पा की रिश्वत मामले में गिरफ्तारी ने बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कई संस्थाओं ने पत्र लिखकर भ्रष्टाचार से अवगत भी कराया है.
क्या कर्नाटक में लागू होगा असम मॉडल?
कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 के लिए बीजेपी ने बसवराज बोम्मई के कंधों पर जिम्मेदारी डाली है, लेकिन उन्हें सीएम कैंडिडेट नहीं बताया है. ऐसा ही कुछ मामला असम में भी हुआ था. जहां बीजेपी ने सर्वानंद सोनोवाल के नेतृत्व में चुनाव लड़ा, लेकिन जीत के बाद हिमंता बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री बनाया. दरअसल, कर्नाटक में भी बीजेपी पूरा चुनाव मोदी सरकार की योजनाओं के इर्द-गिर्द ही लड़ रही है. इसके चलते चुनाव बोम्मई बनाम कांग्रेस की जगह मोदी बनाम कांग्रेस होता दिख रहा है. दरअसल, बीजेपी सीएम चेहरे की जगह संगठित नेतृत्व के तौर पर कर्नाटक चुनाव लड़ना चाहती है.
कांग्रेस के लिए भी कम नहीं हैं मुश्किलें
बीजेपी की तरह ही कर्नाटक कांग्रेस के लिए भी समस्याओं की फेहरिस्त काफी लंबी है. कर्नाटक कांग्रेस में भी गुटबाजी अपने चरम पर है. एक ओर डीके शिवकुमार का खेमा है तो दूसरी ओर पूर्व सीएम सिद्धारमैया ताल ठोक रहे हैं. ये दोनों ही नेता सीएम उम्मीदवारी को लेकर अपनी दावेदारी पेश कर चुके हैं. इस स्थिति में सीएम चेहरे के एलान को टालते हुए कांग्रेस दोनों ही धड़ों के सियासी आधार का फायदा उठाना चाहती है.
कांग्रेस ने वोक्कालिगा समुदाय से आने वाले डीके शिवकुमार को पार्टी की कमान दे रखी है. वहीं, कर्नाटक के मजबूत ओबीसी चेहरे और कोरबा समुदाय से आने वाले सिद्धारमैया के सहारे दोनों समुदायों को साधने की कोशिश कांग्रेस कर रही है. वैसे, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भले ही सीएम कैंडिडेट न हों, लेकिन अगर पार्टी सत्ता में आती है तो सीएम कौन होगा इसका फैसला उन्हें ही करना है. वहीं, खरगे कर्नाटक में पार्टी के सबसे बड़े अनुसूचित जाति के चेहरे हैं तो पार्टी उनकी पसंद से भी किनारा नहीं कर सकती है.
क्या कांग्रेस के लिए काम करेगा राहुल गांधी कार्ड?
मल्लिकार्जुन खरगे भले ही कांग्रेस अध्यक्ष हों, लेकिन पार्टी की सियासत अभी भी गांधी परिवार और राहुल गांधी के इर्द-गिर्द ही घूमती है. कुछ दिनों पहले राहुल गांधी की सांसदी जाने के बाद पूरे देश में कांग्रेस ने प्रदर्शन किया था. इस मुद्दे पर कर्नाटक के नेता भी गुटबाजी छोड़कर एक नजर आए थे. माना जा रहा है कि राहुल के मुद्दे को लेकर भी कांग्रेस कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सहानुभूति पाना चाहेगी.
राहुल गांधी भी कर्नाटक के लिए चुनाव प्रचार की शुरुआत 5 अप्रैल को उसी कोलार से करने जा रहे हैं. जहां उन्होंने मोदी सरनेम वाली टिप्पणी की थी और मामले में दोषी करार दिए गए थे. इसके इतर राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान लंबा समय कर्नाटक में गुजारा था. पार्टी को भरोसा है कि चुनाव में उसे इसका फायदा मिलेगा. इस स्थिति में अगर कांग्रेस सीएम कैंडिडेट का एलान करती है तो राहुल की सांसदी जाने के मुद्दे को भुना नहीं पाएगी.