भारत ने शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन (एससीओ) के अप्रैल में होने जा रहे सम्मेलन के लिए पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ़ को भी निमंत्रण भेजा है.
भारत ने अन्य सदस्य देशों को भी न्योता दिया है.
एससीओ के विदेश मंत्रियों के मई में गोवा में होने जा रहे सम्मेलन के लिए भारत ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी को न्योता दिया है.
हालांकि पाकिस्तान ने अभी तक दोनों मंत्रियों के भारत में सम्मेलन में हिस्सा लेने की पुष्टि नहीं की है.
एससीओ में भारत और पाकिस्तान के अलावा चीन, रूस, किर्गिस्तान, कज़ाख़स्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान सदस्य हैं. आठ देशों के संगठन एससीओ का मौजूदा अध्यक्ष भारत है.
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री अगर भारत आते हैं तो ये अपने आप में एक दुर्लभ मौका हो सकता है क्योंकि इससे पहले पाकिस्तान के रक्षा मंत्री एक बार ही भारत आए हैं.
सैन्य इतिहासकार मंदीप सिंह बाजवा कहते हैं, “पाकिस्तान के रक्षा मंत्री इससे पहले कभी भारत नहीं आए हैं. सिर्फ़ एक बार शिमला समझौते के वक्त जून 1972 में जुल्फ़िकार अली भुट्टो भारत आए थे, उस समय वो राष्ट्रपति थे और उनके पास रक्षा मंत्रालय भी था. इसके अलावा पाकिस्तान का कोई रक्षा मंत्री कभी भारत नहीं आया है.”
मंदीप बाजवा उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान के रक्षा मंत्री इस सम्मेलन में आ सकते हैं.
वो कहते हैं, “ये पाकिस्तान को तय करना है कि एससीओ उनके लिए कितनी अहमियत रखता है, अब तक वो एससीओ को महत्व देते रहे हैं, ऐसे में मुझे लगता है कि वो अपने रक्षा मंत्री को भारत भेजेंगे.”
पाकिस्तान और भारत के बीच कूटनीतिक रिश्ते पूरी तरह ठंडे हैं. ऐसे में ये सवाल उठ सकता है कि क्या पाकिस्तान को लेकर भारत का नज़रिया बदल रहा है?
भारत के न्योते के क्या हैं मायने?
विश्लेषकों को लगता है कि ऐसा नहीं है. मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस में यूरोप एंड यूरेशिया सेंटर की एसोसिएट फेलो डॉक्टर स्वास्ति राव कहती हैं, “भारत सरकार पाकिस्तान पर बिलकुल भी नरम नहीं पड़ रही है, भारत सिर्फ़ अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता निभा रहा है.”
स्वास्ति राव कहती हैं, “पाकिस्तान के साथ भारत के अपने मुद्दे हैं. ये द्विपक्षीय मुद्दे हैं लेकिन भारत एससीओ की अध्यक्षता कर रहा है, ऐसे में उसके बहुपक्षीय उद्देश्यों को आगे बढ़ाना भारत की प्रतिबद्धता है. इसी के तहत पाकिस्तान को न्योता भेजा गया है.”
राव कहती हैं, “शंघाई कॉर्पोरेशन ऑर्गेनाइजेशन भारत की बहुपक्षीय प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है. भले ही भारत के पाकिस्तान से अभी रिश्ते बहुत अच्छे ना हों, लेकिन एससीओ सम्मेलन के लिए पाकिस्तान को बुलाना भारत की प्रतिबद्धता है.”
एससीओ के घोषित उद्देश्यों में एक आतंकवाद के ख़िलाफ़ फ्रेमवर्क बनाना भी है. इसी के लिए एससीओ का एक स्थायी स्ट्रक्चर है जिसे रैट्स (रीजनल एंटी टेररिज़्म स्ट्रक्चर) कहते हैं. भारत ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं और पाकिस्तान ने भी.
भारत में होने जा रहे एससीओ सम्मेलन में क्षेत्रीय सुरक्षा, अफ़ग़ानिस्तान के हालात और आतंकवाद से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हो सकती है.
स्वास्ति राव कहती हैं कि “अफ़ग़ानिस्तान के हालात और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए देशों का बात करना ज़रूरी है. अफ़ग़ानिस्तान में अपनी नीति फेल होने के बाद भी पाकिस्तान बड़ा स्टेकहोल्डर है और अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से भी महत्वपूर्ण है, ऐसे में अगर अफ़ग़ानिस्तान या तालिबान को लेकर कोई चर्चा होती है तो उसमें पाकिस्तान को सुना जाना चाहिए.”
स्वास्ति राव कहती हैं, “भारत बहुपक्षीय संस्थानों में विश्वास भी बहाल करना चाहता है. भारत ये भी दिखा रहा है कि पाकिस्तान से उसके जो मतभेद हैं वो अलग हैं और बहुपक्षीय संस्थानों के लिए प्रतिबद्धता अलग है.”
पाकिस्तान की राजनीति पर सेना का भी प्रभाव रहा है. पाकिस्तान में कई मामलों में सेनाध्यक्ष के फ़ैसले प्रधानमंत्री और सरकार पर भी हावी हो जाते हैं. ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि क्या पाकिस्तान के रक्षा मंत्री को बुलाना प्रतीकात्मक है?
मंदीप बाजवा कहते हैं, “पाकिस्तान में रक्षा मंत्री का बहुत प्रभाव नहीं है. वहां बड़े फैसले सेनाध्यक्ष ही करते हैं. कई मामलों में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष की प्रधानमंत्री से भी अधिक चलती है. भुट्टो के बाद कभी कोई बड़ा ताक़तवर नेता पाकिस्तान का रक्षा मंत्री नहीं रहा है. ऐसे में भारत को अगर सुरक्षा मामलों पर बात करनी है तो पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष से करनी चाहिए.”
संबंध पटरी पर लाने का मौक़ा?
इस तरह के सम्मेलन सिर्फ नेताओं के मिलने का ही नहीं बल्कि कोई मोर्चे पर बातचीत शुरू होने का भी मौका होते हैं.
स्वास्ति राव कहती हैं, “अगर पाकिस्तान के रक्षा मंत्री भारत आते हैं तो इस बैठक के दौरान कुछ और बातें भी हो सकती हैं.”
पाकिस्तान और भारत के बीच मंत्रियों का दौरा आम नहीं है. इससे पहले आख़िरी बार पाकिस्तान की तत्कालीन विदेश मंत्री हिना रब्बानी ख़र 2011 में भारत आईं थीं.
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ 2014 में नरेंद्र मोदी के शपथग्रहण में शामिल हुए थे. 2015 में तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज दो दिन के दौरे पर पाकिस्तान गईं थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दिसंबर 2015 में अचानक पाकिस्तान पहुंचे थे.
मंदीप बाजवा कहते हैं, “भारत और पाकिस्तान के बीच मंत्रियों के दौरे बहुत कम ही हुई हैं. साल 1965 में युद्ध के तुरंत बाद पाकिस्तान के तत्कालीन खाद्य मंत्री राणा अब्दुल हमीद भारत की गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि थे.वहीं भारत के तत्कालीन सेनाध्यक्ष फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने भी युद्धबंदियों के मुद्दे पर चर्चा के लिए 1971 में पाकिस्तान का दौरा किया था.”
भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध उतार चढ़ाव भरे रहे हैं. फ़रवरी 2019 में पुलवामा में हमले के बाद से दोनों देशों के बीच संबंधों में आई तल्खी भारत के जम्मू-कश्मीर का विशेष संवैधानिक दर्जा समाप्त करने के बाद और बढ़ गई है.
पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों से कश्मीर का मुद्दा उठाता रहा है जबकि भारत इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दे के बजाए दो देशों के बीच का द्विपक्षीय मुद्दा मानता है.
विश्लेषक मानते हैं कि अगर पाकिस्तान के मंत्री भारत आते हैं तो इससे बातचीत के नए मौके ज़रूर खुलेंगे.
स्वास्ति राव कहती हैं, “भले ही भारत अपनी अंतरराष्ट्रीय और बहुपक्षीय प्रतिबद्धताओं के चलते पाकिस्तान को आमंत्रित कर रहा है, लेकिन ये दोनों देशों के बीच बात शुरू करने का एक मौक़ा ज़रूर है. हां, भारत की इस बात को लेकर सोच हमेशा स्पष्ट रही है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद के मुद्दे का समाधान नहीं करता है, तब तक दोनों देशों के बीच कोई सार्थक वार्ता नहीं होगी.”
क्या है एससीओ?
अप्रैल 1996 में शंघाई में हुई एक बैठक में चीन, रूस, कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान आपस में एक-दूसरे के नस्लीय और धार्मिक तनावों से निपटने के लिए सहयोग करने पर राज़ी हुए थे.
तब इसे शंघाई-फ़ाइव के नाम से जाना जाता था.
वास्तविक रूप से एससीओ का जन्म 15 जून 2001 को हुआ. तब चीन, रूस और चार मध्य एशियाई देशों कज़ाख़स्तान, किर्ग़िस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के नेताओं ने शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना की और नस्लीय और धार्मिक चरमपंथ से निपटने और व्यापार और निवेश को बढ़ाने के लिए समझौता किया.
इस संगठन का उद्देश्य नस्लीय और धार्मिक चरमपंथ से निपटने और व्यापार-निवेश बढ़ाना था. एक तरह से एससीओ अमेरिकी प्रभुत्व वाले नेटो का रूस और चीन की ओर से जवाब था.
हालांकि, 1996 में जब शंघाई इनीशिएटिव के तौर पर इसकी शुरुआत हुई थी तब सिर्फ़ ये ही उद्देश्य था कि मध्य एशिया के नए आज़ाद हुए देशों के साथ लगती रूस और चीन की सीमाओं पर कैसे तनाव रोका जाए और धीरे-धीरे किस तरह से उन सीमाओं को सुधारा जाए और उनका निर्धारण किया जाए.
ये मक़सद सिर्फ़ तीन साल में ही हासिल कर लिया गया. इसकी वजह से ही इसे काफ़ी प्रभावी संगठन माना जाता है. अपने उद्देश्य पूरे करने के बाद उज़्बेकिस्तान को संगठन में जोड़ा गया और 2001 से एक नए संस्थान की तरह से शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन का गठन हुआ.
साल 2001 में नए संगठन के उद्देश्य बदले गए. अब इसका अहम मक़सद ऊर्जा पूर्ति से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देना और आतंकवाद से लड़ना बन गया है. ये दो मुद्दे आज तक बने हुए हैं. शिखर वार्ता में इन पर लगातार बातचीत होती है.
- एससीओ में भारत के आने से क्या हासिल होगा?
एससीओ और भारत
भारत साल 2017 में एससीओ का पूर्णकालिक सदस्य बना. पहले (2005 से) उसे पर्यवेक्षक देश का दर्जा प्राप्त था. 2017 में एससीओ की 17वीं शिखर बैठक में इस संगठन के विस्तार की प्रक्रिया के एक महत्वपूर्ण चरण के तहत भारत और पाकिस्तान को सदस्य देश का दर्जा दिया गया. इसके साथ ही इसके सदस्यों की संख्या आठ हो गयी.
वर्तमान में एससीओ के आठ सदस्य चीन, कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान, रूस, तज़ाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान हैं. इसके अलावा चार ऑब्जर्वर देश अफ़ग़ानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया हैं.
छह डायलॉग सहयोगी आर्मेनिया, अज़रबैजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्की हैं. एससीओ का मुख्यालय चीन की राजधानी बीजिंग में है.