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काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए दक्षिण के इस मंदिर में की जाती है पूजा, जानिए मंदिर का इतिहास…

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दक्षिण भारत में कई ऐसे मंदिर है, जिनका इतिहास और उनकी बनावट आज भी आश्चर्य बनी हुई है। कुछ ऐसा ही है कर्नाटक में स्थित कुक्के सुब्रमण्या स्वामी मंदिर। इस मंदिर के मुख्य देवता भगवान कार्तिकेय को समर्पित है, जिन्हें सुब्रमण्या स्वामी के रूप में पूजा जाता है।

कहा जाता है कि यह मंदिर करीब 5000 साल पुराना है। दक्षिण कन्नड़ जिले में स्थित सुब्रमण्य नामक एक छोटे से गांव में स्थित यह पवित्र स्थान भगवान सुब्रमण्या (कार्तिकेय) और वासुकी (नागों के राजा) का घर माना जाता है।

काल सर्प दोष के लिए प्रसिद्ध है कुक्के सुब्रमण्या मंदिर

कहा जाता है कि जिनकी कुण्डली में काल सर्प दोष होता है, उन्हें एक बार इस मंदिर में दर्शन कर लेना चाहिए, इससे उनके काल सर्प दोष खत्म हो जाते हैं। कालसर्प दोष को लेकर मध्य भारत में स्थित उज्जैन की जितनी मान्यता है, उतनी ही मान्यता दक्षिण में इस मंदिर की है। कहा जाता है कि इस मंदिर कार्तिकेय भगवान स्वयं अवतरित हुए है, उनकी मूर्ति खुद से बनी है, किसी के द्वारा बनाई नहीं गई है। दरअसल, कार्तिकेय की सवारी मोर है और मोर सांप खाता है। ऐसे में काल सर्प दोष के लिए इस मंदिर को काफी विशेष के रूप से माना जाता है।

कुमारा पर्वत पर स्थित है कुक्के सुब्रमण्या मंदिर

कार्तिक का महीना कार्तिकेय का माना जाता है, ऐसे में कार्तिक महीने में इस मंदिर काफी भीड़ भी देखने को मिलती है। यहां पास में ही नेत्रावती नदी है, मंदिर में आने वाले श्रद्धालु यहां डुबकी लगाते हैं और फिर मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं। इस मंदिर भगवान सुब्रमण्या को सांपों के देवता के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर नदियों, पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ है, कुमारा पर्वत पर स्थित यह देखने में जितना सुंदर है, यकीन मानिए उतनी ही इस मंदिर की मान्यता है।

थिपूयम की पूर्व संध्या पर कार्यक्रमों का आयोजन

कहा जाता है कि अगर किसी व्यक्ति को काल सर्प दोष है या कोई व्यक्ति श्रापित है और अगर वह यहां पूजा करा लेता है तो उसे इन सभी से मुक्ति मिल जाती है। इस मंदिर में जैसे ही आप प्रवेश करेंगे, आपको प्रवेश द्वार और गर्भगृह के बीच एक गरूड़ स्तम्भ दिखाई देगा, जो चांदी से ढका हुआ है। त्योहार की बात की जाए तो इस मंदिर का मुख्य त्योहार थिपूयम है, जिसकी पूर्व संध्या पर मंदिर में खूब साज-सज्जा की जाती है और भक्तों का काफी जमावड़ा भी देखने को मिलता है।

कुक्के सुब्रमण्या मंदिर के खुलने व बंद होने का समय

कुक्के सुब्रमण्या स्वामी मंदिर में सुबह 07:00 बजे से लेकर रात के 08:00 बजे दर्शन किया जा सकता है। वहीं, भक्तों के लिए मंदिर परिसर को दोपहर 01:00 बजे से लेकर 03:00 बजे तक बंद रखा जाता है। इस मंदिर में आने का सबसे अच्छा सर्दियों का है। दरअसल, यहां आसपास में जंगल होने के नाते सर्दियों के मौसम में यहां की हरियाली भी लोगों को खूब भांति है। हालांकि, अगर आप चाहे तो यहां मानसून के मौसम भी आ सकते हैं।

कुक्के सुब्रमण्या मंदिर में होने वाली पूजा व आरती समय

कुक्के सुब्रमण्या मंदिर वैसे तो कई पूजाएं होती है लेकिन विशेष रूप में इस मंदिर में दो पूजा होती है- अश्लेषा बाली पूजा व सर्प संस्कार पूजा। अश्लेषा बाली पूजा की बात की जाए तो इसके लिए उपर्युक्त समय जून-जुलाई और नवम्बर महीने का होता है। यह पूजा दो चरणों में होती है- एक सुबह 07:00 बजे और दूसरा सुबह 9:15 बजे। वहीं, अगर सर्प संस्कार पूजा की बात की जाए तो ये पूजा तब की जाती है जब किसी व्यक्ति से जाने-अनजाने में किसी सर्प को ठेस पहुंचाया जाए। इसके अलावा यहां नागप्रतिष्ठा पूजा, महा पूजा, सत्यनारायण कथा आदि पूजाएं की जाती हैं। वहीं, अगर रेगुलर आरती की बात की जाए तो मंदिर में तीन बार आरती की जाती है- पहली सुबह 06:00 बजे से 07:00 बजे तक, दूसरी सुबह 11:00 बजे से लेकर दोपहर 12:00 बजे तक और तीसरी शाम 07:00 बजे से लेकर 07:45 बजे तक।

कुक्के सुब्रमण्या मंदिर के आसपास घूमने की जगह

श्रृंगेरी मठ, कुमार पर्वत, बिलाडवाड़ा गुफा, मत्स्य और पंचमी तीर्थ, मुलायनगिरी चोटी, आदि सुब्रमण्या, सोमनाथ मंदिर अग्रहारा व काशीकटे गणपति।

कुक्के सुब्रमण्या मंदिर कैसे पहुंचें?

कुक्के सुब्रमण्या मंदिर तक पहुंचने के लिए यहां का नजदीकी हवाई अड्डा मैंगलोर एयरपोर्ट है, जो मंदिर परिसर से करीब 85 किमी. की दूरी पर स्थित है। वहीं, यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन सुब्रमण्या रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर परिसर से करीब 7 किमी. की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा मंदिर तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है।……..