पेट्रोल और डीजल की कीमतें देश के कई राज्यों में रिकॉर्ड ऊंचाई छू रही हैं. इससे आम जनता को होने वाली परेशानी तो स्वाभाविक है. लेकिन अब केंद्र और राज्यों की सरकारों में भी इसे लेकर बेचैनी साफ नजर आ रही है. यह स्वाभाविक है. क्योंकि 100 रुपए के पेट्रोल पर जब 53 रुपए तक करों की वसूली की जा रही हो और इसकी जानकारी जनता को भी होने लगी हो, तो वह आखिर कब तक चुप रहेगी. सरकारों के खिलाफ कभी भी उसके सुर बुलंद हो सकते हैं. इसीलिए अब केंद्र और राज्यों की सरकारें एक-दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप पर उतर आई हैं.
इसी सिलसिले में महाराष्ट्र के शिवसेना सांसद संजय राउत (Sanjay Raut) ने अपने हालिया बयान में कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई थी. कोरोना की स्थिति पर चर्चा के लिए. लेकिन इसमें वे पेट्रोल-डीजल पर राज्यों को उलाहना देने लगे. खास तौर पर, गैर-भाजपा शासित राज्यों को. प्रधानमंत्री से यह उम्मीद नहीं थी. हालांकि इसके बावजूद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और पश्चिम बंगाल की उनकी समकक्ष ममता बनर्जी ने जवाब दिया है. अन्य गैरभाजपाई मुख्यमंत्रियों ने भी प्रधानमंत्री की इसके लिए आलोचना की है.
विधानसभा चुनावों के समय पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 5 रुपए की कटौती की. लेकिन चुनाव खत्म होते ही कीमतें फिर बढ़ा दीं. इससे उसकी नौटंकी साफ नजर आ गई. लोगों को पता चल गया कि कौन कीमतें बढ़ा और घटा रहा है.’ तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखराव ने कहा, ‘प्रधानमंत्री को राज्यों से टैक्स घटाने की अपील करते हुए शर्म आनी चाहिए. केंद्र खुद अपने टैक्स कम क्यों नहीं करता.’ वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने एकतरफा भाषण दिया. उन्होंने बैठक के दौरान जो तथ्य साझा किए, वे आधे-अधूरे थे.’
हरदीप पुरी जवाब- महाराष्ट्र में 32.15, राजस्थान में 20.10 रु. तक टैक्स
राज्यों की ओर से आई तीखी प्रतिक्रियाओं के बाद केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने जवाब दिया. उन्होंने गुरुवार, 28 अप्रैल की सुबह जवाबी ट्वीट कर बताया, ‘महाराष्ट्र सरकार पेट्रोल पर 32.15 रुपए प्रति लीटर तक टैक्स वसूलती है. ऐसे ही राजस्थान में 29.10 रुपए प्रति लीटर तक टैक्स लिया जाता है. जबकि भारतीय जनता पार्टी के शासन वाले उत्तराखंड में 14.51 और उत्तर प्रदेश में 16.50 रुपए प्रति लीटर टैक्स लिया जा रहा है.’ अपने इसी ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘विपक्षी दलों के शासन वाले राज्य अगर शराब के बजाय पेट्रोल पर टैक्स कम कर दें तो जनता को बहुत राहत मिल जाएगी.’
राज्यों द्वारा टैक्स में कटौती न करने को प्रधानमंत्री ने बताया था अन्याय
इससे एक दिन पहले कोरोना के मसले पर मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेट्रोल-डीजल कीमतों का मसला छेड़ा था. वीडियो कॉन्फ्रेंस के दौरान उनके भाषण का सीधा प्रसारण किया जा रहा था. उसी समय उन्होंने कहा कि बीते साल नवंबर में केंद्र ने पेट्रोल और डीजल से उत्पाद शुल्क (Excise Duty) में कटौती की थी. साथ ही राज्यों से कहा था कि वे भी मूल्यवर्धित कर (VAT) में कटौती करें. लेकिन महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, झारखंड और तमिलनाडु जैसे राज्य तैयार नहीं हुए. इसके बाद उन्होंने फिर अपील की कि राज्य अपने हिस्से का वैट कम करें ताकि जनता के साथ अन्याय न हो.
केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने अपने तर्कों के पक्ष में आंकड़े गिनाए. उन्होंने गुरुवार के ही ट्वीट में लिखा, ‘महाराष्ट्र सरकार 2018 से अब तक पेट्रोल-डीजल पर वसूले गए राज्य के करों से 79,412 करोड़ रुपए कमा चुकी है. इस साल अकेले ही 33,000 करोड़ रुपए उसे मिलने वाले हैं.’ उन्होंने इन्हीं आंकड़ों के आधार पर सवाल किया कि राज्य इतनी भारी आमदनी में से जनता को राहत देने के लिए थोड़ी कटौती क्यों नहीं कर सकते? इसके जवाब में तृणमूल कांग्रेस (TMC) के प्रवक्ता साकेत गोखले ने 28 अप्रैल को ही अपने ट्वीट में लिखा, ‘केंद्र सरकार को हर साल पेट्रोल-डीजल पर लगाए गए उत्पाद शुल्क से 8 लाख करोड़ रुपए मिलते हैं. इसके अलावा 50,000 करोड़ रुपए तेल कंपनियों से लाभांश के तौर पर भी हासिल होता है. और वह राज्यों को अपनी आमदनी में कटौती करने के लिए कह रही है, आश्चर्य है!’
दरअसल, पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर केंद्र और राज्य सरकारों को मिलने वाला यह भारी राजस्व ही दोनों के बीच झगड़े और आम जनता की समस्या की मूल में है. केंद्र और राज्य में से कोई भी अपनी कमाई छोड़ना नहीं चाहता. यही वजह है कि कई राज्यों में 100 रुपए के पेट्रोल में 53 रुपए तक हिस्सेदारी केंद्र और राज्य के करों को मिलाकर बन जाती है. हालांकि इसमें अगर मिलकर कुछ कमी की जाए तो जनता को पेट्रोल 70-80 रुपए लीटर भी मिल सकता है. पर राजनीति ऐसा होने दे तब न?