कोरोना वायरस (Coronavirus) के खिलाफ एक और देसी वैक्सीन कोर्बेवैक्स (Corbevax) को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी पर 14 फरवरी को बैठक में विचार होगा. मुख्य तौर पर बच्चों के लिए बनाई गई इस वैक्सीन को हरी झंडी देने पर ड्रग्स कंट्रोलर अथॉरिटी ऑफ इंडिया की सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी विचार करेगी. अगर मंजूरी मिलती है तो कोर्बेवैक्स वैक्सीन को फिलहाल 12 साल से ऊपर के बच्चों को लगाया जा सकेगा. सरकार ने 15 से 18 साल तक बच्चों के वैक्सीनेशन की इजाजत पहले से दे रखी है. कोर्बेवैक्स को हैदराबाद की कंपनी बायलॉजिकल-ई ने तैयार किया है. खास बात ये है कि सरकार इस वैक्सीन को मंजूरी से पहले ही इसके 5 करोड़ डोज का ऑर्डर देकर 1500 करोड़ रुपये कंपनी को दे चुकी है. सरकार ने कोर्बेवैक्स की 30 करोड़ डोज के एडवांस ऑर्डर दे रखे हैं.
यह देश में तैयार हुई पहली RBD प्रोटीन सब-यूनिट वैक्सीन है. मतलब ये कि ऐसी वैक्सीन है जो कोरोना वायरस (SARS-CoV-2) की सतह पर मौजूद प्रोटीन से तैयार की गई है. कोरोना वायरस के खूंटे जैसे स्पाइक्स पर ये प्रोटीन मौजूद होता है. इसी की बदौलत वायरस इंसानी शरीर में घुसकर ह्यूमन सेल्स पर धावा बोलता है और अपनी संख्या बढ़ाता है. लेकिन कोर्बेवैक्स के जरिए वैज्ञानिक इसी प्रोटीन को कोविड वायरस के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल करेंगे. दरअसल जब ये प्रोटीन शरीर में वायरस के बिना अकेले पहुंचता है तो खतरनाक नहीं होता. इंसानी शरीर उसके खिलाफ इम्युनिटी डेवलप कर लेता है. और जब असल में कोरोना वायरस का हमला होता है तो शरीर उसके लिए पहले से तैयार रहता है. इस लिहाज से कोर्बेवैक्स बाकी वैक्सीनों से अलग है. फाइजर व मॉडर्ना की वैक्सीन mRNA बेस्ड हैं जबकि कोविशील्ड, स्पूतनिक-वी और जॉनसन के टीके वायरल वेक्टर आधारित हैं. कोवैक्सीन इनएक्टिव वायरस को लेकर तैयार की गई है. कोर्बेवैक्स में प्रयोग की गई तकनीक वैसे तो हेपेटाइटिस-बी जैसी वैक्सीन में काफी पहले से इस्तेमाल होती आ रही है, लेकिन कोरोना के खिलाफ इसे पहली बार इस्तेमाल किया जा रहा है.
Corbevax को ड्रग्स कंट्रोलर अथॉरिटी ऑफ इंडिया से पहले ही अप्रूवल मिल चुका है. कोर्बेवैक्स बनाने वाली कंपनी बायलॉजिकल-ई की एमडी महिमा डाटला ने हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया था कि बच्चों पर इस वैक्सीन के फेज-1, 2 और 3 ट्रायल हो चुके हैं. इस दौरान 5-12 और 12-18 ऐज ग्रुप के बच्चों पर वैक्सीन की प्रभावशीलता परखी गई. लेकिन प्लेसबो कंट्रोल्ड एफिकेसी ट्रायल नहीं हुआ है क्योंकि हाल तक देश में कोरोना संक्रमण बहुत ज्यादा था और इसके फेज-3 क्लिनिकल ट्रायल शुरू होने से पहले ही दो वैक्सीन को मंजूरी मिल चुकी थी. लेकिन कंपनी ने भारत के 25 शहरों में कोविशील्ड के मुकाबले Corbevax का इम्यून रिस्पॉन्स और सेफ्टी प्रोफाइल जांचा है. महिमा का दावा है कि इस ट्रायल में ये इम्यून रिस्पॉन्स के मामले में कोविशील्ड से बेहतर पाई गई है. कई मामलों में इसकी इफेक्टिवनेस 90 पर्सेंट तक मिली है. कोरोना के डेल्टा और बीटा वेरिएंट पर भी ये कारगर साबित हुई है.
इस वैक्सीन की भी दो डोज दी जाएंगी. पहली वैक्सीन लगने के 28 दिन बाद दूसरी वैक्सीन लगवाई जा सकेगी. ये वैक्सीन सूई के जरिए दी जाएगी. केंद्र सरकार ने 145 रुपये प्रति डोज के हिसाब से इस वैक्सीन के लिए कंपनी को पेमेंट किया है. इसमें टैक्स अलग रहेंगे. मतलब ये देश की सबसे सस्ती कोरोना वैक्सीन में से एक हो सकती है. इसके निर्माण का खर्च भी काफी कम है क्योंकि इसे बनाने में काम आने वाली चीजें आसानी से उपलब्ध हैं. इसका रखरखाव भी मुश्किल नहीं है. इसे 2 से 8 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर किया जा सकता है. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, इस वैक्सीन के फरवरी के आखिर तक उपलब्ध होने की उम्मीद है. हालांकि असल डेट सरकार की ओर से वैक्सीन को मंजूरी मिलने के बाद घोषित की जाएगी.
देश में 15 से 17 साल तक के बच्चों का वैक्सीनेशन 3 जनवरी से शुरू हुआ है. स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, 13 फरवरी तक 15 से 18 साल तक के 5,21,32,053 बच्चों को पहली डोज लगाई जा चुकी है. दूसरी डोज लेने वाले बच्चों की संख्या 1,50,14,801 है. बच्चों को अभी ज्यादातर कोवैक्सीन लगाई जा रही है. वैसे सरकार जाइडस कैडिला की ZyCoV-D वैक्सीन को भी 12 साल से ऊपर के बच्चों में लगाने की मंजूरी दे चुकी है. बच्चों की वैक्सीन के कम प्रोडक्शन के कारण इसकी सप्लाई में हो रही कमी की भरपाई कोर्बेवैक्स से की जा सकेगी, ऐसा एक्सपर्ट्स का मानना है. बच्चों के स्कूल खुल चुके हैं लेकिन पैरंट्स बिना वैक्सीन लगवाए अपने बच्चों को स्कूल भेजने से हिचक रहे हैं. इसलिए भी सरकार बच्चों के तेजी से वैक्सीनेशन पर जोर दे रही है.