अगर आप ऑटो लोन लेकर अपने सपनों की कार खरीदना चाहते हैं तो जल्दबाजी न करें. ग्राहकों को ऑटो लोन लेते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, नहीं तो बड़ा नुकसान हो सकता है. दरअसल, ज्यादातर बैंक, वित्तीय संस्थान कार की मूल कीमत के साथ टैक्स आदि जोड़कर कार की ऑन रोड कीमत का करीब 80 से 90 फीसदी लोन देते हैं. कुछ बैंक या संस्थान 100 फीसदी भी फाइनेंस करते हैं.
यह सुविधा आपको शुरुआत में कोई डाउन पेमेंट किए बिना अपनी पसंदीदा कार घर लाने की अनुमति देगा. हालांकि, कई बार ग्राहक ऑटो लोन लेते समय कार डीलर पर निर्भर हो जाते हैं. यानी उसके जरिये ही लोन लेते हैं. ईएमआई का बोझ घटाने के लिए ऐसा करने से बचना चाहिए. बेहतर तरीका है कि आप खुद बैंकों और वित्तीय संस्थानों से संपर्क कर सकते हैं.
प्री-अप्रूव्ड लोन लेने की कोशिश करें
ग्राहकों को केवल कार डीलर पर ही लोन के लिए निर्भर रहने के बजाय कहीं और बेहतर विकल्प देखना चाहिए. जहां ज्यादा छूट मिल रही है, वहीं से ऑटो लोन लेना चाहिए. अलग-अलग बैंकों, क्रेडिट एजेंसियों और ऑनलाइन उधारदाताओं से प्री-अप्रूव्ड लोन की जांच करना हमेशा बेहतर होता है. यह कार खरीदने से पहले किया जाना चाहिए क्योंकि इससे खरीदार को अंदाजा हो जाता है कि उसे कितना लोन स्वीकृत हो सकता है और ग्राहक के लिए ब्याज दर क्या होंगी.
बेहतर क्रेडिट स्कोर दिला सकता है सस्ता लोन
ऑटो लोन के लिए आवेदन से पहले क्रेडिट स्कोर न जानना एक बड़ी गलती है. एक ग्राहक जो अपना क्रेडिट स्कोर जानता है, उसे पता होता है कि वह किन शर्तों पर लोन लेने योग्य है. इससे यह भी पता चल जाता है कि संबंधित संस्थान किस ब्याज पर लोन दे रहे हैं. लोन देते समय क्रेडिट स्कोर वेरिफाई किया जाता है. साथ ही कई बैंक इसके आधार पर ब्याज दरों की पेशकश करते हैं, इसलिए सस्ता लोन पाने के लिए आपका क्रेडिट स्कोर जरूरी है.
लंबी अवधि के लिए न लें लोन
ग्राहक के लिए लंबी अवधि के लिए लोन का विकल्प आकर्षक हो सकता है क्योंकि इसमें कम ईएमआई चुकाना पड़ता है, लेकिन इससे कुल ब्याज बढ़ जाता है. ग्राहक को लंबी अवधि तक ईएमआई चुकानी पड़ती है. लंबी अवधि के लोन का मतलब है कि कार की वैल्यू भी कम हो जाती है. आमतौर पर ऑटो लोन के लिए 60 महीने को अधिकतम अवधि माना जाता है. इसलिए ईएमआई के बोझ से बचने के लिए इससे ज्यादा अवधि के लिए लोन नहीं लेना चाहिए.