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संविधान की प्रस्तावना के ‘समाजवादी’ शब्द को बदला जाए, भाजपा नेता अल्फोंस ने राज्यसभा में पेश किया बिल

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संसद में विपक्ष के विरोध के बीच राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने संविधान की प्रस्तावना में संशोधन को लेकर एक निजी सदस्य के विधेयक को प्रस्तावित करने की अनुमति देने के अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता के. जे. अल्फोंस (KJ Alphons) संविधान (संशोधन) विधेयक 2021 उच्च सदन में पेश किया है, जिसमें संविधान की प्रस्तावना (Preamble of Constitution) में सोशलिस्ट यानी समाजवादी शब्द को हटाकर इसकी जगह इक्विटेबल यानि न्यायसंगत शब्द रखने की बात की गई है.

उन्होंने विधेयक में जो अन्य बदलावों की बात कही है, उनमें प्रस्तावना में प्रतिष्ठा और अवसर की समता के स्थान पर, प्रतिष्ठा की समता और जन्म लेने, खाने, शिक्षित होने, रोज़गार पाने और सम्मानित व्यवहार पाने के अवसर देने की बात करता है. साथ ही विधेयक में कहा गया है कि प्रस्तावना में सूचना प्रौद्योगिकी तक पहुंच की बात को जोड़े जाने की बात भी कही गई है.

‘न्यायसंगत शब्द के समाजवादी से ज्यादा मायने हैं’
मनीकंट्रोल को दिए एक साक्षात्कार में केरल के राजनीतिज्ञ और पूर्व संस्कृति व पर्यटन राज्य मंत्री के. जे. अल्फोंस इस विधेयक को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा हाशिये के लोगों को सशक्त बनाने की कार्यवाही के अनुरूप बताते हैं. उनके मुताबिक न्यायसंगत शब्द के समाजवादी से ज्यादा मायने हैं. इसमें अवसरों की समानता, हर चीज में समानता मौजूद है. उनका कहना है कि यह एक ऐसा शब्द हो, जो सही मायने में यह बताता है कि भारत सभी का है और यहां के संसाधनों, विकास के नतीजों पर सभी का एक बराबर अधिकार है.

अल्फोंस ने प्रस्तावना में ‘खुशी’ शब्द को जोड़े जाने की भी बात
अल्फोंस का मानना है कि भारत गांवों में बसता है इसलिए गांव के साथ ही पंचायत और स्थानीय समुदाय भी मायने रखते हैं, इसलिए उन्होंने अपने विधेयक में राष्ट्र ही नहीं समुदाय के सम्मान को भी सुरक्षित किया जाना चाहिए. यही नहीं उन्होंने प्रस्तावना में खुशी शब्द को जोड़े जाने की बात भी कही है. यह शब्द भूटान से लिया गया है जहां पर सकल घरेलू खुशी की संकल्पना की गई है. आरजेडी सांसद मनोज झा प्रस्तावना में संशोधन को संविधान की इमारत पर हमले जैसा बताते हैं. इस पर अल्फोंस का कहना है कि जो लोग विरोध कर रहे हैं, उन्होंनें मेरा विधेयक पढ़ा ही नहीं है.