जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) में आतंकवाद अपने अंतिम दौर में है. यह कहना केंद्रीय मंत्री जीतेंद्र सिंह (Jitendra Singh) का है. न्यूज18 से खास बातचीत में सिंह ने बताया कि केंद्र शासित प्रदेश का युवा भारत (India) की मुख्यधारा के साथ बढ़ना चाहता है. साक्षात्कार के दौरान सिंह ने परिसीमन (Delimitation) को लेकर जारी विपक्ष की गतिविधियां और प्रदेश के दर्जे के मुद्दे पर भी बात की. हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने भी जम्मू-कश्मीर का दौरा किया था.
सिंह बताते हैं कि आतंकवादियों के खिलाफ सुरक्षाबलों की कड़ी कार्रवाई जा रही है और रडार पर आने के कुछ महीनों में ही उन्हें निष्क्रिय किया जा रहा है. जबकि, पहले आतंकी कमांडर इलाके में एक खास दर्जा हासिल कर लेते थे. उन्होंने कहा कि आतंकी मासूम नागरिकों को निशाना बनाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश कर रहे हैं.
बातचीत के कुछ अंश
गृहमंत्री अमित ने कहा था कि वे पाकिस्तान के बजाए जम्मू-कश्मीर के युवाओं से बात करेंगे, इस बात से क्या संकेत मिलते हैं?
अमित शाह का बयान जम्मू-कश्मीर की आम जनता और खासकर युवाओं तक पहुंचने की नीति से जुड़ा हुआ है. आबादी में ज्यादातर युवा हैं. यही सही दृष्टिकोण है. जम्मू-कश्मीर का युवा वास्तव में आगे बढ़ना चाहता है. हो सकता है कि हिंसा की सामयिक घटनाओं के चलते वह खुद को रोक रहा हो या शायद पीछे हट रहा हो. लेकिन असलियत यह है कि जम्मू-कश्मीर का युवा बहुत महत्वाकांक्षी है. यह बात एक से ज्यादा बार साबित हो चुकी है, जब उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन किया है. इस साल का NEET का टॉपर जम्मू-कश्मीर से है. सिविल सेवाओं में भी हमें जम्मू-कश्मीर से टॉपर मिल रहे हैं. उन्हें एहसास हो गया है कि उन्हें अपना महत्वाकांक्षाओं और योग्यताओं को पूरी तरह दिखाना होगा.
तो क्या पाकिस्तान से बातचीत के दरवाजे पूरी तरह बंद हो गए हैं?
इसका फैसला सरकार की तरफ से हालात को देखकर किया जाएगा. मैं इसपर इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा.
हाल ही में आम नागरिकों के साथ हुई हिंसा की घटनाओं को आप किस तरह से देखते हैं? क्या सरकार चिंतित है?
आतंकी छिपने या भागने की कोशिश कर रहे हैं, इसी के चलते इस तरह की घटनाएं हे रही हैं. वे सॉफ्ट टार्गेट्स को निशाना बनाकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश कर रहे हैं. आतंकवाद काफी नियंत्रण में है. पहले अगर आप आंकड़ों को दखें और पहले के सालों और खासतौर से 2014 के पहले से उनकी तुलना करें, तो काफी बदलाव हुआ है. और यह आतंकवाद का आखिरी दौर है.
बीते 7 सालों में हुई नागरिकों और सुरक्षा कर्मियों की हत्याओं की संख्या पहले की तुलना में काफी कम है. दूसरा, पीएम मोदी की तरफ से लिए गए सर्जिकल स्ट्राइक्स और दूसरे निर्णायक फैसलों के बाद कोई भी बड़ी घटना नहीं हुई है. ये सामयिक घटनाएं इसलिए हो रही हैं, क्योंकि वे खुद को दिखाने के लिए सॉफ्ट टार्गेट्स चुन रहे हैं. जबकि, पहले के विपरीत अब वे भाग रहे हैं और सुरक्षाकर्मी उनके खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं.
तीसरा सबूत आतंकी का औसत जीवन भी कम होकर कुछ महीनों या एक साल पर आ गया है. जैसे ही पता लगता है कि नया आतंकी कमांडर सामने आया है, फिर कुछ महीनों में ही उसका सफाया कर दिया जाता है. अब ऐसा नहीं होता जब एक कमांडर दशक का लीजेंड बन जाए. यह सभी संकेत जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खात्मे के संकेत हैं.
तो आपको लगता है कि जम्मू-कश्मीर का युवा आपके साथ है?
सबसे जरूरी बात यह है कि आम आदमी और खासकर चुवा आगे बढ़ना चाहते हैं. अब वे इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि उनका जीवन पीएम मोदी के नेतृत्व वाले भारत की मुख्यधारा के साथ है. साथ ही वे इस मौके को गंवाना नहीं चाहते, क्योंकि वे महत्वाकांक्षी युवा हैं.
विपक्ष ने अमित शाह के बयान की आलोचना की थी कि परिसीमिन चुनाव के बाद होगा.
पहले दिन से ही इस मुद्दे को लेकर गृहमंत्री का मत एक है. जब भी उनसे पूछा गया, उन्होंने संसद और बाहर एक ही बात कही. इस बात में कोई अस्पष्टता नहीं है. परिसीमन एक संवैधानिक प्रक्रिया है, तो मुझे नहीं लगता कि यह किसी अन्य चीजों से प्रभावित हो सकती है.
पीएम ने जम्मू-कश्मीर को लेकर दिल की दूरी और दिल्ली की दूरी की बात कही है. आप इस काम कितना सफल हुए?
पीएम बहुत स्पष्टवादी रहे हैं और वे पहले दिन से ही साफ बात कर रहे हैं. 2014 में उनकी सरकार के सत्ता में आने के तुरंत बाद ही पहली चुनौती कश्मीर घाटी में आई बाढ़ थी, जिस दौरान राजधानी श्रीनगर पानी के अंदर थी. पीएम तब से ही बार-बार जम्मू-कश्मीर जा रहे हैं और उन्होंने दिवाली में अपनी पहली दिवाली मनाई. तब वे बाढ़ पीढ़ितों के साथ थे और इस दिवाली जम्मू-कश्मीर में सैनिकों के साथ थे.