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26/11 की आंखों देखी: कसाब को पहचानने वाली नर्स कुलथे की आंखों में जिंदा हैं उस रात की तस्वीरें

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करीब 18 साल गुजर चुके हैं, लेकिन आज भी मुंबई (Mumbai) और पूरे भारत को मिला 26/11 आतंकी हमले का घाव ताजा है. गोलीबारी में लोगों की जान लेने वालों में आतंकी अजमल कसाब (Ajmal Kasab) का नाम भी शामिल है, लेकिन उस दिन बहादुरी से लोगों की जान बचाने वालों की सूची में नर्स अंजली कुलथे को भी गिना जाना जरूरी है. नर्स कुलथे ही थीं, जिन्होंने जेल में कसाब की पहचान की और उसे फांसी के फंदे तक भी पहुंचाया. वे बताती हैं कि इतने समय बाद भी उस रात की तस्वीरें उनके सामने घूमती हैं.

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक उस समय नर्स कुलथे कामा अस्पताल में कार्यरत थीं. भास्कर के साथ बातचीत में वे आतंकी हमले की रात को याद करती हैं. वे बताती हैं कि उस रोज रात के 8 बज रहे थे और वे जच्चा वार्ड में नाइट ड्यूटी पर तैनात थीं. उन्हें जानकारी मिली की सीएसटी स्टेशन पर फायरिंग हो रही है. कुलथे ने कहा कि करीब 9.30 बजे गोलियों की आवाज अस्पताल के बाहर भी सुनाई देने लगी और देखा, तो सड़क पर दो आतंकी गोलियां चलाते हुए भाग रहे हैं और पुलिसकर्मी उनके पीछे हैं.

नर्स ने बताया कि जब आतंकियों की नजर खिड़की पर पड़ी, तो उन लोगों ने उनपर भी गोलियां चलानी शुरू कर दी. कुलथे बताती हैं कि इस दौरान उनकी साथी के हाथ में गोली लग गई थी, जिसके चलते उनके हाथ से काफी खून बहा, लेकिन घायल नर्स हालात से इतना डर गई थीं कि पट्टी कराने जाने के लिए तैयार नहीं हुईं. कुलथे बमुश्किल घायल नर्स को अपनी जान पर खेलकर पट्टी कराने के लिए लेकर गईं.

नर्स कुलथे उस रात के दृश्य को याद करती हैं कि वार्ड में 20 गर्भवती महिलाएं थी और अचानक हुए इस हमले के बाद उन सभी का रो-रोकर बुरा हाल था. अस्पताल की छोटी दीवार फांदकर आतंकी भी परिसर में घुस आए थे. हालांकि, इतनी विकट स्थित में भी कुलथे ने हार नहीं मानी और सभी की जान बचाने का जिम्मा उठाया. उन्होंने सारी गर्भवती महिलाओं को पेंट्री में शिफ्ट किया, जहां खिड़की नहीं थी. वे बताती हैं कि इसके चलते उन तक गोली पहुंचने का खतरा कम था.

‘डर था कि किसी को लेबर पेन न हो’
नर्स कुलथे का कहना है कि औरतें रो रही थीं और ऐसे में लेबर पेन शुरू होने का डर रहता है. कई महिलाओं के ब्लड प्रेशर गिरने और बढ़ने लगे. इतने में एक महिला को लेबर पेन शुरू भी हो गया. नर्स ने कहा कि इस परेशानी का हल केवल डॉक्टर सुचिता के पास ही हो सकता है और उन्होंने दूसरे फ्लोर पर डॉक्टर से संपर्क साधा. हालांकि, यहां उन्हें निराशा हाथ लगी, क्योंकि डॉक्टर सुचिता ने फर्स्ट फ्लोर पर आने से इनकार कर दिया था.

रिपोर्ट के अनुसार, इसके बाद भी नर्स कुलथे ने हिम्मत नहीं हारी औऱ वे औरत को लेकर जैसे-तैसे ऊपरी मंजिल पर पहुंच गईं. कुलथे बताती हैं कि इतना तो पता था कि इस रात की सुबह नहीं होगी. वे सोच रही थीं कि किसकी मौत कैसे होगी, लेकिन वे किसी को भी मरने नहीं देना चाहती थीं. अस्पताल में दो घंटे तक गोलीबारी होती रही. कुछ समय बाद यह सब रुका और सुबह पुलिसवालों ने दस्तक दी. वे बताती है कि पंचनामा बनाने की कार्रवाई शुरू हुई.