कर्नाटक सरकार (Karnataka) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में रोहिंग्याओं (Rohingya In India) के निर्वासन पर दी गई अपनी सूचना से यूटर्न मार लिया है. कर्नाटक सरकार ने इस मामले में अब संशोधित एफिडेविट दाखिल किया है. राज्य के गृह विभाग में अपर सचिव केएन वनजा द्वारा दायर नए हलफनामे में खुलासा किया गया है कि राज्य में कुल 126 रोहिंग्याओं की पहचान की गई है जो किसी शिविर या डिटेंशन सेंटर में नहीं हैं. हलफनामे में कहा गया है, ‘ इस अदालत द्वारा जो भी आदेश पारित किया जाएगा, उसका ईमानदारी से और अक्षरश: पालन किया जाएगा.’
इससे पहले सरकार ने अदालत को बताया था कि बेंगलुरु में रह रहे रोहिंग्या समुदाय के 72 लोगों को निर्वासित करने की तत्काल उसकी कोई योजना नहीं है. हालांकि अब राज्य सरकार ने कहा है कि कोर्ट जो आदेश करेगी, उसका पालन किया जाएगा. दरअसल, भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय (Ashwini Kumar Upadhyay) ने रोहिंग्या समुदाय के लोगों की पहचान करके उन्हें निर्वासित करने के लिए याचिका दायर की थी. इसके जवाब में 26 अक्टूबर (मंगलवार) को कर्नाटक सरकार ने कहा था- यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है और इसे खारिज किया जाना चाहिए.
क्या है अश्विनी उपाध्याय की याचिका
उपाध्याय ने याचिका दायर करके केंद्र और राज्य सरकार को यह निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया है कि वे बांग्लादेशियों और रोहिंग्या समुदाय के लोगों समेत सभी अवैध प्रवासियों एवं घुसपैठियों की एक साल के भीतर पहचान करें, उन्हें हिरासत में लें और उन्हें निर्वासित करें. याचिका में कहा गया है, ‘खासकर म्यांमा और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में आए अवैध प्रवासियों ने न केवल सीमावर्ती जिलों की जनसांख्यिकीय संरचना के लिए खतरा पैदा किया है, बल्कि सुरक्षा एवं राष्ट्रीय अखंडता को भी गंभीर नुकसान पहुंचाया है.’
उपाध्याय ने याचिका में आरोप लगाया है कि कई एजेंट के माध्यम से पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और गुवाहाटी के रास्ते अवैध प्रवासी संगठित तरीके से घुस रहे हैं. मंगलवार को सुनवाई के दौरान कर्नाटक सरकार ने कहा था – ‘बेंगलुरु शहर पुलिस ने अपने अधिकार क्षेत्र में किसी शिविर या हिरासत केंद्र में किसी रोहिंग्या को नहीं रखा है. हालांकि बेंगलुरु शहर में विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत रोहिंग्या समुदाय के 72 लोगों की पहचान की गई है और बेंगलुरु शहर पुलिस ने अभी तक उनके खिलाफ बलपूर्वक कोई कार्रवाई नहीं की है और उसकी उन्हें निर्वासित करने की तत्काल कोई योजना नहीं है.’