केंद्र सरकार (Central Government) ने राष्ट्रपति की ओर से मंजूर राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) कानून 2021 (GNCTD Act) को लागू करने के लिए गत 27 अप्रैल को अधिसूचना जारी कर दी थी. इसके बाद से यह स्पष्ट हो गया था कि दिल्ली में सरकार का मतलब उप-राज्यपाल (Lieutenant Governor) हुआ यानी एलजी की मंजूरी के बिना कोई कार्यकारी कदम नहीं उठाया जा सकेगा. इस कानून के लागू होने के बाद से ही अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की अगुवाई वाली दिल्ली सरकार (Delhi Government) इसको सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के आदेशों की अवेहलना बताते हुए विरोध करती आ रही है.
इस बीच दिल्ली के मुख्य सचिव विजय कुमार देव (Vijay Kumar Dev) की ओर से भी अब यह स्पष्ट कर दिया गया है कि बिना एलजी (LG) की सलाह और मंजूरी के कोई भी विभाग किसी भी फाइल पर कोई फैसला नहीं लेगा. सभी मामलों में विभाग प्रमुखों को दिल्ली एलजी (Delhi LG) के समक्ष फाइल को प्रस्तुत करना और उस पर अनुमति लेना अनिवार्य होगा.
दिल्ली के मुख्य सचिव विजय कुमार देव की ओर से गत दिनों निकाले गए आदेश की मानें तो उन्होंने सभी अतिरिक्त मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों, सचिवों और विभागाध्यक्षों को आदेश जारी किए हैं कि जिन विषयों में उप-राज्यपाल की अनुमति आवश्यक है, उन सभी फाइलों पर विषय को चिन्हित कर एलजी की अनुमति के लिए अवश्य भेजा जाए.
28 अप्रैल के LG ऑफिस के आदेश का भी दिया गया हवाला
मुख्य सचिव देव ने अपने आदेश में यह बात भी स्पष्ट कही है कि उप-राज्यपाल कार्यालय की ओर से इस संबंध में एक आदेश गत 28 अप्रैल, 2021 को जारी किया गया था. इसमें कहा गया कि दिल्ली सरकार (Delhi Government) अगर कोई बोर्ड, कमेटी या कमीशन गठित करती है तो इसके लिए एलजी की पूर्व अनुमति लेना भी अनिवार्य होगा.
इसके अलावा दिल्ली सरकार (Delhi Government) से संबंधित कोई भी नया नियम, रेगुलेशन, योजना या उप-नियम आदि बनाना है तो भी इस तरह के मामलों में उप-राज्यपाल की पूर्व अनुमति संबंधित विभाग को लेना जरूरी होगी. मुख्य सचिव कार्यालय की ओर से जारी किए गए आदेश में यह बात भी साफ की गई है कि दिल्ली वित्त आयोग (Delhi Finance Commission) से संबंधित विषयों पर भी दिल्ली के एलजी की पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है.
इसके साथ ही जेल आदि से पैरोल देने के मामलों में भी एलजी की पहले से अनुमति लेना अनिवार्य है. इसी तरह से दिल्ली कैबिनेट (Delhi Cabinet) की ओर से निर्णय लेने या मंत्री द्वारा निर्णय लेने के बाद इससे संबंधित आदेश जारी करने से पहले भी ऐसे मामलों में अनुमति लेना भी अनिवार्य होगा. इस तरह के सभी आदेश महीने भर पहले उप राज्यपाल सचिवालय (LG Secretariat) के द्वारा जारी किए गए थे.
बताते चलें कि केंद्र की ओर से जीएनसीटीडी अधिनियम (GNCTD Act) में संशोधन करने के बाद और इस संबंध में अधिसूचना जारी किए जाने के बाद से एलजी और सरकार में कई मामलों को लेकर टकराव पैदा हो चुका है हाल ही में किसानों का केस लड़ने के लिए नियुक्त किए जाने वाले सरकारी वकीलों के मामले को लेकर एलजी और सरकार में ठन गई थी वही ताजा मामला कोरोना से निपटने की तैयारियों को लेकर बीडीएम में और डीडीए में दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और डीएमआरसी की मीटिंग में किसी मंत्री को नहीं बुलाई जाने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है.
इस तरह के लगातार सामने आ रहे मामलाें के चलते अब दिल्ली के मुख्य सचिव की ओर से पहली बार स्थिति को स्पष्ट किया गया है. केंद्र सरकार की ओर से जीएनसीटीडी अधिनियम में संशोधन लागू किए जाने के बाद इस संबंध में पहली बार मुख्य सचिव की ओर से स्थिति स्पष्ट की गई है. हालांकि उनकी ओर से जारी किया गया आदेश नया नहीं है, यह आदेश 19 जुलाई, 2021 को जारी किया गया था. लेकिन एलजी और सरकार के बीच उपजे विवाद के चलते यह आदेश चर्चा में सामने आया है और इसके बाद स्थिति स्पष्ट की गई है.
नये कानून में यह सब किया गया है प्रावधान
केंद्र की मोदी सरकार (Modi Government) द्वारा राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) कानून 2021 (GNCTD Act) को मंजूरी दिए जाने के बाद जारी अधिसूचना के मुताबिक दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) कानून 2021 अप्रैल से प्रभाव में आ गया है. कानून में किए गए संशोधन के अनुसार, अब सरकार को उप-राज्यपाल के पास विधायी प्रस्ताव कम से कम 15 दिन पहले और प्रशासनिक प्रस्ताव कम से कम 7 दिन पहले भेजने होंगे.
गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है, ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021, 27 अप्रैल से अधिसूचित किया जाता है; अब दिल्ली में सरकार का अर्थ उपराज्यपाल है.’ बजट सत्र के दौरान 24 मार्च को यह राज्यसभा से भी पास हुआ था.
केंद्र सरकार के मुताबिक इस कानून में दिल्ली विधानसभा में पारित विधान के परिप्रेक्ष्य में ‘सरकार’ का आशय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के उप-राज्यपाल से होगा. इसमें दिल्ली की स्थिति संघराज्य क्षेत्र की होगी जिससे विधायी उपबंधों के निर्वाचन में अस्पष्टताओं पर ध्यान दिया जा सके. इस संबंध में धारा 21 में एक उपधारा अमल में आएगी.
सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनाया था फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जनता के लिए सरकार को उपलब्ध होना चाहिए और चुनी हुई सरकार ही सर्वोच्च है. मंत्रिमंडल के पास ही असली शक्ति होती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संघीय ढांचों में राज्यों को भी स्वतंत्रता मिली है. तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने कहा था कि शक्तियों में समन्वय हो. शक्ति एक जगह केंद्रित नहीं हो सकती है. बेंच ने कहा था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना मुमकिन नहीं है.
दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है और राज्य सरकार को एक्सक्लूसिव अधिकार नहीं दिए जा सकते हैं. कहा गया था कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासक हैं. कानून बनाने से पहले और बाद में उसे एलजी को दिखाना होगा. लोकतांत्रिक मूल्य सर्वोच्च हैं. संविधान का पालन होना चाहिए.