मोदी कैबिनेट का विस्तार और फेरबदल अपने साथ कई राजनीतिक दांवपेच और संदेश लाया हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में कई बड़े फेरबदल कर मंत्रियों को जिम्मेदारी से अपना काम करने और केंद्र सरकार के कामकाज को दुरुस्त करने के साफ संकेत दिए हैं। जिस प्रकार से 6 कैबिनेट मंत्रियों समेत 12 मंत्रियों को हटाया गया है और 7 राज्य मंत्रियों को पदोन्नत कर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री का हिस्सा बनाया गया है। जिससे यह संदेश मिलता है कि अच्छा काम करने वालों के बहुत मौके हैं, लेकिन यदि प्रदर्शन पर खरे नहीं उतरे तो फिर कैबिनेट में ज्यादा समय तक बने नहीं रह सकते।
वहीं अगर मोदी कैबिनेट के नेतृत्व वाली पिछली सरकार और इस सरकार के कामकाज की तुलना करें तो ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार पहले की तरह काम नहीं कर रही है। कई मंत्रालयों के ढीले-ढाले रवैये से यह चुनौती बढ़ती हुई दिख रही थी। यह भी कहा जा रहा था कि जो कार्य केंद्र में हो रहे हैं, वे उस रूप में जनता तक नहीं पहुंच पा रहे हैं, जिस प्रकार पहुंचाए जाने चाहिए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्यों के चुनावों में स्थानीय मुद्दों के अलावा केंद्र सरकार की विकास योजनाओं को भी एक प्रमुख आधार बनाए जाने के पक्ष में रहे हैं।
ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि बंगाल चुनावों में हार के बाद कोरोना महामारी की दूसरी लहर से सरकार के कार्य से लोगों कि नाराजगी साफ जाहिर होती है। जनता की इस नाराजगी को दूर करने के लिए हालांकि आने वाले दिनों में सरकार के कार्यो में सिधार के लिए कई और कदम भी उठाए जा सकते हैं, लेकिन मंत्रिमंडल में बड़े बदलाव करना और पार्टी के बड़े चेहरों एक बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है। फेरबदल में पूर्व नौकरशाहों, युवाओं एवं अनुभवी मंत्रियों को तरजीह देकर पहले से बेहतर टीम बनाने की कोशिश की गई है।