बिलासपुर में कोरोना से भले ही बच्चे गंभीर बीमार नहीं हुए, लेकिन जिन बच्चों को कोरोना हुआ वे अब ठीक होने के बाद शरीर में बनी एंटीबॉडी से बीमार हो रहे हैं। शहर में इस बीमारी के दो नए बच्चे भर्ती हुए। दोनों का इलाज एक निजी अस्पताल में चल रहा है। गौरेला-पेंड्रा- मरवाही की 8 वर्षीय बच्ची और कोरबा की 4 साल की बच्ची को तेज बुखार, आंखों में लालपन, शरीर पर लाल चकत्ते उठ आना, सीने में दर्द, हाथ-पैरों और गर्दन में सूजन की शिकायत थी। परिजनों ने पहले डॉक्टरों की बताई गई दवाइयां दीं, जब आराम नहीं हुआ तो शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर श्री कांत गिरी के यहां पहुंचे। उन्होंने सभी टेस्ट कराए तो दोनों बच्चे कोविड एंटीबॉडी पॉजिटिव आए। फिलहाल दोनों बच्चों का इलाज चल रहा है। डेढ़ महीने में एमआईएस-सी पीड़ित 35 बच्चे शहर के अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती हो चुके हैं। इनमें से दो का इलाज चल रहा है। 33 ठीक हो चुके हैं। सबसे ज्यादा शिशु भवन में 29 बच्चे भर्ती हुए। अपोलो में भी तीन बच्चों के अंदर इसकी पुष्टि हुई।
डॉक्टरों ने इस बीमारी को पोस्ट कोविड का असर बताया। उन्होंने ये भी बताया कि कोरोना से ठीक होने वाले बच्चे इस बीमारी से ग्रसित हुए हैं। कई बच्चों को तो पैरालिसिस अटैक भी आया। कोरोना से लड़ने के लिए जो एंटीबॉडी शरीर में बनती है, वही बच्चों के लिए नुकसान का कारण बन रही है। सभी बच्चों में यह समस्या हो यह जरूरी नहीं है। लेकिन ज्यादातर केस में वही बच्चे प्रभावित हो रहे हैं, जिनमें एंटीबॉडी अधिक पाई जा रही है। राहत की बात यह है कि अभी तक एमआईएस-सी पीड़ित किसी बच्चे की मृत्यु नहीं हुई है।
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अशोक कुमार अग्रवाल ने बताया कि कोरोना से ठीक होने वाले बच्चों में एमआईएस-सी की शिकायत मिल रही है। हमारे यहां इस बीमारी से पीड़ित दो बच्चों का इलाज किया गया है। इसकी पहचान करने के लिए इंटरल्यूकिन, डी-डाइमर, फेरीटीन, सीआरपी, एल-डीएच और प्रोकैल्टीटोनिन जांच करानी पड़ती है। रीडिंग सामान्य से ज्यादा आने पर एमआईएस-सी की पुष्टि की जाती है।
बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर श्रीकांत गिरी ने बताया कि कोरोना से रिकवर होने के तीन से चार सप्ताह बाद बच्चों में एमआईएस-सी बीमारी मिल रही है। इस बीमारी में सबसे ज्यादा खतरा दिल को रहता है। क्योंकि हार्ट में सूजन पैदा करने लगता है। जब दिमाग तक यह समस्या होगी मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम का सही समय पर इलाज मिल जाय तो 99% रिकवरी हो जाती है। इस बीमारी का इलाज महंगा है।