अमेरिका अफग़ानिस्तान से इस साल के सितंबर महीने तक अपनी सेना को पूरी तरह से वापस बुला लेगा. अमेरिका की तरफ से इस ओर लगातार कार्रवाई भी जारी है, लेकिन बिना पाकिस्तान की मदद के ऐसा संभव नहीं है. ऐसे में अमेरिकी प्रशासन पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल बाजवा से लगातार बातचीत कर रहा है. जानकारों की मानें तो मसला ये है कि पाकिस्तान उनकी मदद के नाम पर इस मौके का फ़ायदा उठाने की फिराक में है. यानी वो मदद के नाम पर अपने बंद आर्थिक सहयोग को फिर से शुरू करा लेना चाहता है. इसीलिए पाकिस्तान अमेरिका को ब्लैकमेल करने में लगा हुआ है.
पिछले महीने ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने एक बयान दिया था, जिसमें ये कहा गया था कि अमेरिका पाकिस्तान को अफगानिस्तान के चेहरे से न देखे. अमेरिका पाकिस्तान में निवेश नहीं कर रहा है, तो द्विपक्षीय रिश्ते कैसे मज़बूत रह सकते हैं. पिछले महीने मई में जनरल बाजवा ने भी सेना मुख्यालय में अमेरिकी अधिकारियों से मुलाक़ात की थी. इससे पहले जनरल बाजवा ने पिछले कुछ समय में अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट, डिफेंस सेक्रेटरी के साथ बातचीत की थी जिसका मुद्दा अफगानिस्तान और द्विपक्षीय रिश्ते रहा. दरअसल पाकिस्तान आपदा में भी अवसर ढूंढ रहा है. आपदा अमेरिका के लिए और अवसर पाकिस्तान के लिए.
अमेरिका की इस कमी का फायदा उठाना चाहता है पाकिस्तान
वास्तव में अमेरिका अफगानिस्तान से जाने के बाद निगरानी के लिए पाकिस्तान-अफगान सीमा के पास एक एयर बेस चाहता है, जैसा कि पाकिस्तान ने 9/11 हमले के बाद दो समझौतों के तहत अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान में आतंकियों के ख़िलाफ़ हमले के लिए दिया था. ब्लूचिस्तान में शम्सी एयर बेस और सिंध के शाहबाज़ एयर बेस के इस्तेमाल के लिए 2001 में एयर लाइन ऑफ़ कम्यूनिकेशन और ग्राउंड लाइन ऑफ़ कम्यूनिकेशन समझौते हुए थे. अमेरिकी विमान और ड्रोन के ज़रिये इन्हीं एयरबेस से अफ़ग़ानिस्तान में हमले किए गए और जमीन पर मदद दी गई, लेकिन 2011 में ये दोनों करार रद्द कर दिये गये. उसके पीछे की वजह भारत के साथ अमेरिका के रिश्तों में सुधार को बताया जाता है. हालांकि अमेरिका किर्गिस्तान, तजाकिस्तान और उज़्बेकिस्तान से भी एयर बेस की मांग पर बात कर रहा है.
ये है अमेरिका की सबसे बड़ी समस्या
अमेरिका के साथ सबसे बड़ी समस्या ये है कि अगर किसी ने भी मध्य एशिया में उसे एयर बेस की जगह नहीं दी, तो अफ़ग़ानिस्तान में सेना वापस ले जाने के बाद अगर वह एरियल निगरानी करना चाहे, तो उसे फ़ारस की खाड़ी में अपने एयरक्राफ़्ट कैरियर का इस्तेमाल करना होगा जो कि बहुत महंगा सौदा होगा क्योंकि वहां से अफ़ग़ानिस्तान की दूरी 9 से 10 घंटे की है. अब पाकिस्तान खुलकर ये कहता नजर आ रहा है कि पाकिस्तान का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है और अमेरिका लेनदेन की नीति से बाहर आकर द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करे. अगर अमेरिका पाकिस्तान से दूर होगा तो कई देश उसके क़रीब आ रहे हैं
एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से निकलना चाहता है पाकिस्तान
यही नहीं दुनिया के सामने एफएटीएफ की बैठक से ठीक पहले अपनी छवि को भी दुरुस्त करने में लगा है. अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाली के नाम पर वो इस महीने में होने वाली एफएटीएफ की बैठक में ग्रे लिस्ट से बाहर हो जाना चाहता है. ख़राब आर्थिक हालातों के चलते पाकिस्तान की स्थिति ख़राब है और इसी महीने एफएटीएफ की होने वाली बैठक में इस बात का फैसला हो जाएगा कि वह ग्रे लिस्ट में बना रहेगा या नहीं. पाकिस्तान 2018 से जरूरी शर्तें पूरी न करने के चलते ग्रे लिस्ट में बना हुआ है. एफएटीएफ के एशिया पैसिफिक ग्रुप ने भी पाकिस्तान को कई मुद्दों पर फिर से कार्रवाई करने को कहा है. जानकारों की मानें तो एलओसी पर सौ से ज्यादा दिनों से जारी सीज फायर की बहाली भी इसी का एक क़दम भर है.