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प्रशांत किशोर ने टीएमसी और ममता को मंजिल तक पहुंचाने में कैसे की मदद

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साल 2019 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2019) के परिणाम तृणमूल कांग्रेस और सीएम ममता बनर्जी (Mamamta Banerjee) के लिए एक बुरे सपने की तरह थे. बीजेपी ने राज्य की 42 में से 18 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि साल 2014 में बीजेपी के खाते में सिर्फ 2 सीटें ही आई थीं. ‘मां’, ‘माटी’ और ‘मानुस’ की पार्टी बंगाल में अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही थी और ‘राष्ट्रीय पार्टी’ का दर्जा खोने के डर से ममता ने प्रशांत किशोर को पार्टी का रणनीतिकार चुना. माना जाता है कि उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी ने इसकी सलाह दी. उन्होंने गुपचुप तरीके से 6 जून

2019 के दिन किशोर को पार्टी की रणनीतियां बनाने के लिए चुना ताकि टीएमसी फिर से बंगाल की राजनीति में अपना खोया हुआ वजूद हासिल कर सके.

किशोर की नियुक्ति के 54 दिनों के बाद ‘दीदी को बताएं’ कार्यक्रम 29 जुलाई, 2019 को लॉन्च किया गया था. लगभग 180 दिनों की समयावधि के भीतर टीएमसी न केवल भाजपा के पास गई सभी सातों नगरपालिकाओं को अपने वापस लाने में कामयाब रही, बल्कि जमीनी स्तर के नेताओं का विश्वास भी जीता. ‘दीदी के बोलो’ कार्यक्रम मुख्यमंत्री के साथ सिर्फ एक सीधा संवाद मंच नहीं था बल्कि इसमें कई ‘ट्रैकर्स’ और ‘बकेट्स’ (सॉफ्टवेयर) भी थे जहां त्वरित कार्रवाई के लिए समस्याएं और सुझावों की सूची बनी हुई है.

क्या है ‘दीदी को बताएं’ कार्यक्रम?
250 से अधिक पार्टी कार्यकर्ता चौबीसों घंटे लगे रहते हैं ताकि ना केवल प्रत्येक शिकायत या सुझाव मुख्यमंत्री तक पहुंच सके, बल्कि उनका समाधान भी जल्द से जल्द करने की कोशिश होती थी. किशोर ने सुझाव दिया था लोगों के लिए सभी सरकारी योजनाओं के लिए अलग-अलग ‘बकेट’ हैं और प्रत्येक के लिए अलग-अलग ‘ट्रैकर्स ’हैं ताकि इस बात पर नज़र रखी जा सके कि कितने मुद्दों को हल किया गया है और कितना समय लिया गया है. इसने वास्तव में बूथ स्तर की समितियों को मजबूत करने में जमीनी स्तर पर अच्छा काम किया.

किशोर को भाजपा, कांग्रेस और विशेष रूप से वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के साथ काम करते हुए चुनावी जीत का श्रेय दिया जाता है. साल 2011 में उनका पहला बड़ा अभियान था, जब उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात में नरेंद्र मोदी की तीसरी बार जीत हासिल करने में मदद की थी.

उपचुनाव भी हार गई बीजेपी

25 नवंबर, 2019 को नादिया जिले के उत्तरी दिनाजपुर, खड़गपुर सदर, खड़गपुर सदर, और नादिया जिले की करीमपुर विधानसभा सीटों के लिए पश्चिम बंगाल में उपचुनाव हारने के बाद भाजपा को एक और झटका लगा.अब किशोर एक बार फिर से टीएमसी को पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में और डीएमके शानदार प्रदर्शन के बाद सुर्खियों में हैं.

बंगाल में 1 दिसंबर, 2020 से शुरू किए गए ‘दुआरे सरकार’ सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक था जहां ग्राम पंचायत और नगर पालिका वार्ड स्तर पर आयोजित शिविरों के माध्यम से सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों को उनके घर-घर तक पहुंचाए जाने का लक्ष्य बनाया गया.

सरकार की पूरी मशीनरी ने इस कार्यक्रम की सफलता के लिए मिशन-मोड में काम किया था. इस शिविरों में लाभार्थियों के लिए पंजीकरण के लिए जो योजनाएं उपलब्ध कराई गई थीं, उसमें ‘स्वास्थ साथी’ (स्वास्थ्य और परिवार कल्याण), ‘अय्यश्री’ (अल्पसंख्यक कार्य और मदरसा शिक्षा), ‘कृषक बंधु’ (कृषि), ‘एमजीएनआरईजीएस’ ( पंचायत और ग्रामीण विकास), ‘खाडी जाति’ (खाद्य और आपूर्ति), ‘शिक्षाश्री’ (पिछड़ा वर्ग कल्याण और आदिवासी विकास), ‘कन्याश्री’ (महिला और बाल विकास और समाज कल्याण), ‘रूपश्री’ (महिला और बाल विकास) समाज कल्याण), जाति प्रमाण पत्र (एससी / एसटी / ओबीसी- पिछड़ा वर्ग कल्याण और आदिवासी विकास), ‘जय जोहार’ (आदिवासी विकास) और ‘टोपशिली बंधु’ (पिछड़ा वर्ग कल्याण) शामिल है. यह पूरी खबर अंग्रेजी में है. इसे पढ़ने के लिए यहां क्लिक