भारत (India) में कोरोना वायरस (Coronavirus) फिर एक बार कहर बरपा रहा है. ऐसे में जानकार आशंका जता रहे हैं कि नया और शायद और ज्यादा संक्रामक वायरस लोगों को बीच पहुंच चुका है. कहा जा रहा है कि इस बार स्थिति बिगाड़ने में बड़ा हाथ डबल म्यूटेशन कहे जा रहे वायरस का है. देश में लगातार बीते 3 दिनों से 2 लाख से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं. इन आंकड़ों के चलते भारत अब ब्राजील को पीछे छोड़ दुनिया का दूसरा सबसे प्रभावित देश बन गया है. अब सवाल उठता है कि यह डबल म्यूटेशन आखिर कितना खतरनाक है और हमें इसे लेकर कितना चिंतित होना चाहिए.
कैसे सामने आया डबल म्यूटेशन वैरिएंट?
B.1.617- कहा जा रहा यह नया वैरिएंट शुरुआत में भारत में दो म्यूटेशन- E484Q और L452R के साथ सामने आया था. विश्व स्वास्थ्य संगठन की टेक्निकल लीड ऑफिसर मारिया वेन केर्कोव कहती है कि यह पहली बार भारत में बीते साल के आखिर में एक वैज्ञानिक को मिला था. उन्होंने बताया कि इसे सोमवार को WHO के सामने पेश किया गया है और अभी अधिक जानकारियों का इंतजार किया जा रहा है. मार्च के अंत में स्वास्थ्य मंत्रालय ने पहली बार ‘डबल म्यूटेंट’ की मौजूदगी की बात को माना था.
अब तक डबल म्यूटेशन किन देशों में मिल चुका है?
16 अप्रैल को भारतीय सरकार की तरफ से जारी बयान के मुताबिक, डबल म्यूटेशन, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, जर्मनी, आयरलैंड, नामीबिया, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में मिल चुका है. outbreak.info पर जारी रिपोर्ट् बताती हैं कि 16 अप्रैल तक B.1.617 लाइनेज में 408 सीक्वेंस का पता लगा लिया गया था. इनमें से 265 भारत में पाए गए थे. ब्रिटिश सरकार ने कहा था कि इंग्लैंड और स्कॉटलैंड में इसके 77 मामले दर्ज किए गए थे. रिपोर्ट में इस रूप को ‘जांच के आधीन’ रखा गया था. वहीं, न्यूजीलैंड ने फिलहाल भारत से आने वाले लोगों पर पाबंदी लगा दी है. सरकार ने कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के चलते यह फैसला लिया है.
क्या भारत में हालात बिगड़ने के लिए डबल म्यूटेशन जिम्मेदार है?
जीनोम सीक्वेंसिंग के नतीजे दिखाते हैं कि वैरिएंट गुनहगार हो सकता है. जबकि, भारत सरकार ने इस बात की पुष्टि नहीं की है. काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के जीनोमिक्स इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर अनुराग अग्रवाल कहते हैं कि महाराष्ट्र के कई जिलों और खासकर मुंबई में इस वैरिएंट का प्रसार 60 फीसदी तक है.
भारत के 10 राज्यों से मिले सैंपल्स में B.1.617 पाया गया था. अग्रवाल कहते हैं ‘इसमें दो गंभीर म्यूटेशन होते हैं, जो इसके इम्युनिटी से बचने और फैलने की संभवना बढ़ाते हैं.’ यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन में जीनोम साइंसेज और माइक्रोबायोलॉजी की प्रॉफेसर जेस ब्लूम ने बताया ‘E484 और L452 में हुए म्यूटेशन अलग-अलग देखे गए हैं, लेकिन यह पहला बड़ा वायरल लाइनेज है, जो दो को जोड़ता है.’ उन्होंने कहा ‘मुझे लगता है कि यह नया वायरल वैरिएंट निगरानी के लिए जरूरी है.’
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की अपर्णा मुखर्जी बताती हैं कि भारत ने बीते महीने में 1 फीसदी से भी कम पॉजिटिव मामलों की सीक्वेंसिंग की है. देश अब बचे हुए मामलों को कवर करने के लिए हाथ-पांव मार रहा है. उन्होंने कहा ‘हम जो भी सैंपल मौजूद हैं, उनमें से कम से कम 5 फीसदी पूरे करने की कोशिश कर रहे हैं.’ सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलेक्युलर बायोलॉजी के निदेशक राकेश मिश्रा कहते हैं ‘ऐसा लगता है कि ये पहले से मौजूद वैरिएंट्स की तुलना में ज्यादा तेजी से फैलता है.’ उन्होंने कहा कि जिस तरह से यह फैल रहा है, वैसे अभी या बाद में पूरे देश में इसका प्रसार हो जाएगा.