सेना के तख्तापलट के बाद से म्यांमार के आतंरिक हालात तो खराब हुए ही हैं, साथ ही भारत और म्यांमार के साझा कालाडान प्रोजेक्ट को लेकर भी सवाल खड़े होने लगे हैं. उत्तर-पूर्व के असम और मिजोरम जैसे राज्यों को मैनलैंड से जोड़ने के लिए भारत के इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट को जानने के लिए एबीपी न्यूज की टीम पहुंची है मिज़ोरम से सटे म्यांमार बॉर्डर पर. म्यांमार बॉर्डर के साथ साथ कालाडान प्रोजेक्ट की सुरक्षा में देश की सबसे पुरानी और एकमात्र पैरामिलिट्री फोर्स, असम राईफल्स तैनात है, जो आज अपना 186वां स्थापना दिवस मना रही है.
देश के सबसे दूरस्थ राज्य, मिजोरम को कोलकता से जोड़ने के लिए वर्ष 2008 में भारत ने म्यांमार के साथ कालाडान प्रोजेक्ट के लिए करार किया था. कालाडान मल्टी मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (केएमएमटीटीपी) के जरिए कोलकता के हल्दिया पोर्ट को म्यांमार के सितवे बंदरगाह से जोड़े जाने का प्रस्ताव है. उसके बाद सितवे पोर्ट को म्यांमार की कालाडान नदी के जरिए आवागमन के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. भारत में कालाडान नदी के दाखिल होने के बाद इस प्रोजेक्ट को सड़क के जरिए मिजोरम के लुंगतलई और फिर राजधानी आईजोल से गुजरने वाले एनएच-54 से जोड़ने का प्रस्ताव है. लेकिन ये प्रोजेक्ट काफी पीछे चल रहा है. पहले कोविड महामारी और अब म्यांमार में तख्तापलट से प्रोजेक्ट की रफ्तार जल्द पकड़ने की उम्मीद कम ही दिखाई पड़ती है.
कालाडान प्रोजेक्ट से उत्तर-पूर्व के राज्य तो मैनलैंड से और करीब आ ही जाएंगें, लेकिन इसका एक सामरिक महत्व भी है. दरअसल, उत्तर-पूर्व के असम, मेघालय, मणिपुर, नागालौंड और मिजोरम राज्यों तक फिलहाल सड़क के जरिए पहुंचने के लिए एक मात्र रास्ता है पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी कोरिडोर से.
इसलिए शुरू हुआ कालाडान प्रोजेक्ट
लेकिन इस सिलिगुड़ी कोरिडोर पर चीन की बुरी नजर है. वर्ष 2017 में डोकलम विवाद के दौरान दुनिया जान चुकी है कि सिलिगुड़ी की सुरक्षा किस तरह खतरे में पड़ सकती है. यही वजह है कि भारत नें उत्तर-पूर्व के राज्यों को म्यांमार और बंगाल की खाड़ी के रास्ते पश्चिम बंगाल से जोड़ने के लिए कालाडान प्रोजेक्ट को शुरू किया है.
हल्दिया (कोलकता) बंदरगाह से सितवे पोर्ट बंगाल की खाड़ी के जरिए–539 किलोमीटर (चालू हो चुका है)
सितवे पोर्ट से पलेतवा (म्यांमार) कालाडान नदी के जरिए–158 किलोमीटर
पलेतवा से ज़ोरिनपुई (भारत म्यांमार बॉर्डर) सड़क मार्ग–62 किलोमीटर
ज़ोरिनपुई से लुंगतलई (मिज़ोरम)–100 किलोमीटर
एबीपी न्यूज की टीम जब भारत म्यांमार के बॉर्डर पर पहुंची तो देखा कि कालाडान प्रोजेक्ट का जोरो-शोरो से काम चल रहा है. विदेश मंत्रालय के अधीन इस प्रोजेक्ट को दो प्राईवेट कॉन्ट्रेक्टर तैयार कर रहे हैं. ज़ोरिनपुई से लुंगतलई तक सड़क के चौड़ीकरण के साथ साथ नई पुल तैयार किए जा रहे हैं. जगह जगह बुलडोजर और जेसीवी मशीन काम कर रही हैं.
भारत के लिए कालाडान प्रोजेक्ट इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि ये भारत की एक्ट-ईस्ट पॉलिसी का हिस्सा है. म्यांमार के रास्ते भारत दक्षिण-पूर्व देशों तक सड़क मार्ग के रास्ते पहुंचना चाहता है. यही वजह है कि ज़ोरिनपुई और कालाडान प्रोजेक्ट को ‘गेटवे ऑफ साऊथ ईस्ट एशिया’ कहा जाता है.
सामरिक महत्व और उत्तर पूर्व के राज्यों कई कनेक्टेविटी के साथ साथ कालाडान प्रोजेक्ट भारत के लिए म्यांमार में चीन के बढ़ते दबदबे को ‘काउंटर’ करना भी है.
इसी साल जनवरी के महीने में चीन के विदेश मंत्री, वांग यी ने म्यांमार दौरे के दौरान करीब 14 बिलियन डॉलर के निवेश की घोषणा की थी. इस दौरान दोनों देशों के बीच आर्थिक, व्यापार और तकनीकी समझौते हुए. इसके अलावा मांडले-क्याकफो रेल लिंक पर भी चर्चा हुई. खास बात ये है कि इस दौरे के महज़ डेढ़ महीने के भीतर ही म्यांमार की सेना ने लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट कर दिया. हालांकि, भारत का म्यांमार में चीन के मुकाबले बेहद कम निवेश है– महज़ 3 बिलियन डॉलर.
कालाडान प्रोजेक्ट को लेकर भारत के लिए एक और खतरा है. और वो है आतंकी संगठन, ‘आराकान आर्मी’, जो म्यांमार में सक्रिए है. वर्ष 2012 में पाकिस्तान समर्थित आतंकी गुट, लश्कर ए तैयबा ने आराकान आर्मी को खड़ा करने में मदद की थी. ये आतंकी संगठन म्यांमार के रखिन (रखाईन) प्रांत में सक्रिए है जो मिज़ोरम से सटा हुआ है और कालाडान प्रोजोक्ट भी यहीं से निकलता है. कुछ समय पहले आराकान आर्मी ने कालाडान प्रोजेक्ट पर हमला भा किया था और इंजीनियर्स तक को अगवा कर लिया था. लेकिन पिछले साल नबम्बर में म्यांमार सेना और आराकान आर्मी के बीच समझौता हो गया था. लेकिन अब आराकान आर्मी को चीन की मदद मिल रही है. हाल ही में कई ऐसी घटनाएं सामने आई जिसमें बड़े तादाद में चीनी हथियार आराकान आर्मी को भेजे गए थे.
आराकान आर्मी के खतरे को देखते हुए ही असम राईफल्स ने कालाडान प्रोजेक्ट की सुरक्षा में एक अतिरिक्त कंपनी तैनात की है. इसके अलावा एक कंपनी पहले से ही ज़ोरिनपुई बॉर्डर पोस्ट पर तैनात रहती है.
आपको बता दें कि असम राईफल्स देश का सबसे पुराना (और एकमात्र) पैरा-मिलिट्री फोर्स है, जिसकी स्थापना वर्ष 1835 में आज ही के दिन यानि 24 मार्च को हुई थी. उस वक्त इसे ‘कचर-लेवी’ के नाम से जाना जाता था. आजादी के बाद से असम राईफल्स की जिम्मेदारी म्यांमार बॉर्डर की रखवाली और उत्तर-पूर्व के राज्यों की उग्रवाद के खिलाफ आतंरिक सुरक्षा करना है.