बात जनवरी, 1932 की है. चीन (China) और जापान (Japan) के बीच तनातनी चल रही थी. 1931 के सितंबर महीने में चीनी इलाके मुकडेन (वर्तमान शेनयांग) के पास एक रेलवे ट्रैक के नीचे बेहद कमजोर बम धमाका हुआ. ये बम इतना कमजोर था कि जिस पटरी के नीचे इसे रखा गया था उस पर जरा भी इसका प्रभाव नहीं पड़ा लेकिन इस रेलवे लाइन का मालिक जापानी था. तब वर्तमान चीन ये इलाका जापानी साम्राज्य के हिस्से में आता था. जापानी आधिपत्य को लेकर चीनी विद्रोहियों ने जंग छेड़ रखी थी.
इस घटना से गुस्साए जापान ने चीनी विद्रोहियों के खिलाफ भयानक कार्रवाई की. और फिर चीन के मुकडेन इलाके पर कब्जा कर लिया. ऐसा भी कहा जाता है कि इस घटना के पीछे जापान का ही हाथ था. वह चाहता था कि मुकडेन पर पूरी तरह से आधिपत्य जमा लिया जाए लेकिन उसे कोई रास्ता नहींं सूझ रहा था. अंत में उसने ये षड्यंत्र रचा.
बौद्ध भिक्षुओं की पिटाई
इसके कुछ ही महीनों बाद यानी 18 जनवरी 1932 को शंघाई में कुछ जापानी बौद्ध भिक्षुओं को चीनी लोगों ने बुरी तरह से पीट दिया. इसमें दो बुरी तरह घायल हो गए और एक की मौत हो गई. दरअसल, मुकडेन की घटना के बाद चीनी लोगों में जापान के प्रति गुस्सा भर गया था. ये गुस्सा पहले चीन-जापान युद्ध में जापान के हाथों मिली हार की वजह से भी था.
बौद्ध भिक्षुओं को पीटे जाने की घटना का तो जैसे जापान इंतजार ही कर रहा था. हफ्ते भर के भीतर जापानी सैनिकों ने शंघाई शहर के आस-पास बड़ी संख्या में डेरा डाल दिया. उधर चीनी लोग भी जापान का जबरदस्त तरीके से विरोध कर रहे थे. शंघाई के लोगों ने जापान में बनी वस्तुओं का बॉयकॉट कर दिया.
27 जनवरी को जापानी सैनिकों से शंघाई के मुंसिपल कॉरपोरेशन को चेतावनी दी कि वो बौद्ध भिक्षुओं के मामले की लिखित भर्त्सना करें और इस घटना में अगर किसी भी बौद्ध इमारत को नुकसान हुआ हो तो उसके लिए मुआवजा दे.28 जनवरी की दोपहर तक शंघाई मुंसिपल कॉरपोरेशन इसके लिए तैयार हो गया था. लेकिन जापान को तो शंघाई के साथ कुछ और ही करना था. उसे शंघाई पर अधिकार करना था. ये सारी घटनाएं तो काफी हद तक सिर्फ एक दिखावा थीं.
शंघाई शहर पर बमबारी
रात 12 बजे शंघाई शहर पर जापानी लड़ाकू विमानों ने भयंकर बमबारी शुरू की. ये पूर्वी एशिया में किसी हवाई हमले की पहली कार्रवाई थी. इसके पहले हवाई हमले की किसी घटना का पूर्वी एशिया में कोई जिक्र नहीं मिलता है. जापानी सैनिकों ने भी हमला बोल दिया.
तकरीबन एक महीने जापानी हमलों के कहर का शिकार शंघाई और उसके आस-पास के इलाके होते रहे. चीन की सेना ने जापानी की तरफ खूब मुकाबला किया लेकिन उसकी स्थिति जापान के सामने बेहद कमजोर थी. करीब एक महीने बाद 1 मार्च को चीनी सेनाओं ने युद्ध से खुद को वापस खींच लिया और युद्ध की समाप्ति जापान की जीत के साथ हुई.