वार्ड चुनाव के आरक्षण के बाद राजनीतिक समीकरण इस कदर बदले कि अब दिग्गजों को भी अपनी राजनीतिक जमीन खतरे में दिखाई दे रही है। अगर चुनाव नहीं लड़े तो अगले पांच सालों के लिए वे नगर निगम की सक्रिय राजनीति से बाहर हो जाएंगे। बाहर हुए तो समझिए कि सालों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। यही वजह है कि अब ये पड़ोसी वार्डों में टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। अब सवाल यह है कि मौजूदा पार्षद को टिकट न देकर दिग्गजों को क्या पार्टियां टिकट देंगी? इतना ही नहीं, कई वार्ड ऐसे भी हैं, जहां एक ही पार्टी के कई दावेदार हैं, मगर इतना तो यह है कि इस बार टिकट वितरण पार्टियों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होने वाला।
ये कर रहे हैं दावेदारी
भाजपा नेता- वर्तमान में उप नेता प्रतिपक्ष और वामन राव लाखे वार्ड के पार्षद रमेश सिंह ठाकुर, महामाया पारा वार्ड पार्षद सालिक सिंह ठाकुर, रानी लक्ष्मी वार्ड वार्ड पार्षद गोपाल सोना प्रमुख नाम है। वहीं पूर्व भाजपा पार्षद सुभाष तिवारी, पूर्व सभापति संजय श्रीवास्तव भी दावेदारी कर रहे हैं। इन्होंने अपने वार्ड तय कर लिए हैं।
कांग्रेस नेता- श. ब्रिगेडियर उस्मान वार्ड पार्षद सतनाम सिंह पनाग, श. वीरनारायण सिंह वार्ड अजीत कुकरेजा, बालगंगाधर तिलक वार्ड पार्षद श्रीकुमार मेनन, कामरेड सुधीर मुखर्जी वार्ड पार्षद गोवर्धन शर्मा के नाम भी शामिल हैं। पूर्व महापौर डॉ. किरणमयी नायक, महापौर प्रमोद दुबे भी चुनाव लड़ सकते हैं।
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सूत्र- इन वार्डों में मौजूदा पार्षदों ने श्रीमती या मां के लिए शुरू की दावेदारी-
वार्ड का नाम- मौजूदा पार्षद- दावेदार
वीरांगना अवंति बाई वार्ड, 06- राधेश्याम विभार (कांग्रेस)- अंजली विभार (पत्नी)
गुरुघासीदास वार्ड, 49- मिथलेश कुमार ध्रुव (भाजपा)- मां
ठक्करबप्पा वार्ड, 17- डॉ. अन्नू साहू (कांग्रेस)- दिलेश्वरी साहू (पत्नी)
बालगंगाधर तिलक, 18- श्रीकुमार मेनन (कांग्रेस), राजश्री मेनन (पत्नी)
डॉ. भीमराव आंबेडकर वार्ड, 09- अनवर हुसैन (कांग्रेस) एमआइसी सदस्य- पत्नी
ब्राम्हणपारा वार्ड, 44- आकाश दुबे (भाजपा)- सरिता दुबे (पत्नी)
महापौर का अप्रत्यक्ष चुनाव ने दी ‘संजीवनी’- कांग्रेस सरकार लगभग तय कर चुकी है कि प्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव महापौर का अप्रत्यक्ष चुनाव होगा। यानी पार्षदों के बीच ही महापौर चुने जाएंगे। यह उन सभी मौजूदा पार्षदों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है जो महापौर बनने के प्रबल दावेदार खुद को कह रहे थे, लेकिन बड़े नेताओं की दावेदारी के कारण कहीं न कहीं उनके अरमानों पर पानी फिरने जा रहा था। अब अगर किसी भी बड़े कद पर पहुंच चुके नेता को महापौर बनना है या पार्टी इंटरनल उन्हें महापौर पद का दावेदार बताती है तो उन्हें पार्षद का चुनाव लड़ना होगा। जिसे लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहता. फिर वे पूर्व और वर्तमान महापौर हों या फिर विधायक ही।