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छत्तीसगढ़ : राजा से नजराने में मिली जमीन पर 70 वर्ष बाद मिला मालिकाना हक

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हाई कोर्ट ने राजा से नजराने में मिली जमीन से बेदखली के लिए शासन द्वारा जारी आदेश को निरस्त किया है। 70 वर्ष बाद याचिकाकर्ता को जमीन पर मालिकाना हक मिला है। प्रकरण विभिन्न् राजस्व न्यायालय, सिविल न्यायालय में चलने के बाद हाई कोर्ट आया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा 1950 से घर बनाकर रहने के कारण शासन के बेदखली आदेश को निरस्त किया है। आजादी के पहले रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ निवासी बनवारी लाल को राजा चंद्रचूड़ प्रताप सिंह जूदेव द्वारा गठित सेनिटेशन कमेटी द्वारा उदयपुर रियासत(धरमजयगढ़) के बाजारपारा स्थित चबूतरा क्रमांक चार व पांच की जमीन का पट्टा प्रदान किया गया था। इसके एवज में बनवारी लाल ने 27 दिसंबर 1947 को 500 रुपये नजराना जमा किया। स्वतंत्रता के बाद रियासतों का विलय किया गया।

बनवारी लाल ने सेटलमेंट व वार्षिक लगान निर्धारण के लिए तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी राजस्व को आवेदन दिया। अनुविभागीय अधिकारी ने 60 रुपये वार्षिक लगान निर्धारित करते हुए जमीन पर बने मकान का सेटलमेंट करने की अनुशंसा कलेक्टर रायगढ़ को भेजी। कलेक्टर ने अनुविभागीय अधिकारी के अनुशंसा पत्र को फिर से विचार करने लौटा दिया। 1964 में राज्य शासन ने बेदखली आदेश जारी किया।

इसके खिलाफ मामला आयुक्त बिलासपुर, राजस्व न्यायालय, सिविल न्यायालय एवं सत्र न्यायालय में चलता रहा। रायगढ़ सत्र न्यायालय ने राज द्वारा गठित सेनिटेशन कमेटी को जमीन देने का अधिकार नहीं होने के कारण बेदखली आदेश को यथावत रखते हुए परिवाद खारिज कर दिया।

इसके बाद अधिवक्ता एएन भक्ता व विवेक भक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। जस्टिस संजय के. अग्रवाल के कोर्ट में याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने पाया कि बनवारी लाल के वारिस जमीन पर तीन अप्रैल 1950 से मकान निर्माण कर रह रहे हैं। धारा 248 (1) के तहत शासन को बेदखल करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने शासन के बेदखली आदेश को खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ता के परिवार वालों को राजा से पट्टा में मिली जमीन पर 70 वर्ष बाद मालिकाना हक मिला है।