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छत्तीसगढ़ : पहाड़ पर विराजी हैं देवी, यहां पंचमी से आरंभ होती है नवरात्रि, देखें वीडियो

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 एक मंदिर जहां पंचमी से नवरात्र शुरू होने की वर्षो पुरानी परंपरा चली आ रही है । हम बात कर रहे आदिशक्ति मां मडवारानी की । पहाड़ पर विराजमान मां मड़वारानी की आस्था कोरबा ही नहीं पूरे प्रदेश भर के लोगों में है।

यहां के लोगों का कहना है कि पिछले 200 साल से भी अधिक समय से पंचमी से नवरात्र प्ररंभ होने की परंपरा चली आ रही जिसका निर्वहन अभी भी किया जा रहा । जिला मुख्यालय से करीब 27 किलोमीटर दूर पहाड़ की चोटी पर मंदिर स्थित है, जहां पर एक ओर घने जंगल तो दूसरी ओर हसदेव नदी का मनोरम दृश्य हर किसी को आकर्षित करता है।

मां मडवारानी सेवा व जन कल्याण समिति के अध्यक्ष कन्हैयालाल कंवर ने बताया कि मां मडवारानी की कहानी गांव के बुजुर्गों द्वारा आंखों देखी मानी जाती है। बताया जाता है कि मां मडवारानी अपनी शादी के मंडप को छोडकर आ गई थी।

इसी दौरान बरपाली—मडवारानी सडक में उनके शरीर पर लगी हल्दी एक बडे पत्थर पर गिरी और वह पत्थर पीला हो गया। मां मडवारानी के मंडप से आने के कारण गांव और पर्वत को मडवारानी के नाम से जाना जाने लगा। गांव के ही कुछ और बुजुर्गों का मानना है कि मां मडवारानी भगवान शिव से कनकी में मिली और मडवारानी पर्वत पर आ गई। मां मडवारानी संस्कृत में मांडवी देवी के नाम से जानी जाती है।

मंदिर के अंदर कलमी के पेड़ में आज भी नजर आते हैं सर्प

खरहरी के ही रामदयाल उरांव की मानें तो उन्हें उनके दादा ने बताया कि गांव के लोगों ने यह देखा था कि कलमी वृक्ष और उसकी पत्तियों में हर नवरात्र को जवा उग जाता है और उसके आसपास एक सांप घूमता रहता है। ऐसा आज भी कभी—कभी देखा जाता है। वर्षों पहले कलमी पेड़ में मीठे पानी का स्त्रोत था, जो हमेशा बहता रहता था। पानी कहां से आता है यह किसी को पता नहीं चला।

सतह से 360 फीट की उंचाई पर मां का दरबार

मां मडवारानी का दरबार सडक मार्ग से 360 फीट ऊंचे पहाड़ पर स्थित है। वहां तक पहुंचने के लिए पहाड़ियों के बीच से होते हुए 5 किलोमीटर सडक से दूरी तय करनी पडती है। पहले यहां सडक नहीं होने से असुविधा होती थी, लेकिन अब कांक्रीट सड़क बनने से राहत है।

पहुंचने के ये रास्ते

मां मडवारानी के दरबार तक पहुंचने चार रास्ते हैं। पहला मार्ग चांपा रोड पर स्थित मंदिर से 5 किलोमीटर दूर सड़क से होकर। दूसरा ग्राम बरपाली से होते हुए। इस मार्ग से जाने पर एक किलोमीटर तक सीढियों से होकर जाना पडता है। जबकि ग्राम झीका—महोरा से एक किलोमीटर तो चौथा रास्ता खरहरी से शुरू होता है, जिससे चार किलोमीटर दूरी पहाड़ावाली मां मडवारानी पहुंचने तय करना पड़ता है।