जैकी श्रॉफ बॉलीवुड में एक ऐसे स्टार रहे हैं, जिन्होंने सफलता को कभी संबंधों के ऊपर नहीं आंका। वह आज भी खुद को अपने पुराने दोस्तों और खुद को गढ़ने वालों का एहसानमंद मानते हैं। उन्होंने इंडस्ट्री में निष्ठा, आपसी रिश्ते, ह्यूमन वैल्यू आदि के बारे में दैनिक भास्कर से बातचीत की।
उन्होंने बताया, “निष्ठा और लॉयल्टी मेरे लिए जिंदगी में सबसे अहम हैं। इस इंडस्ट्री में मुझे पहली फिल्म में काम करने का मौका देवानंद साहब ने दिया था। मैं जूनियर आर्टिस्ट था और शक्ति कपूर का हैंड मैन था। मैंने अपना करियर जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर शुरू किया था और हीरो बन गया। सुभाष घई ने मुझे हीरो जैसी फिल्म दी। मैंने उनके साथ राम-लखन, कर्मा, खलनायक यादें जैसी फिल्में कींं। इस वजह मेरी उनके साथ निष्ठा बनी रहेगी। मेरा मानना है कि जिन्होंने आपको बनाया है, तो आगे चलकर आप कितने भी बड़े स्टार बन जाएं, उनके सामने स्मार्ट बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। उनके सामने जाकर काम के लिए पैसे नहीं मांगने चाहिए। कहते हैं न आज के जमाने में निष्ठा जैसी कोई चीज बची ही नहीं है, लेकिन मैं चाहता हूं कि यह जो चीज मुझमें हमेशा बची रही है, वह सभी में रहे।”
जो मुझको मिला मैंने वह खाया
जैकी श्रॉफ ने बताया कि मैंने कभी इसकी उम्मीद नहीं की कि लोग मेरे प्रति निष्ठावान रहें, मुझे चाहिए भी नहीं, जो मुझको मिला मैंने वह पाया। मैंने कभी कुछ अपेक्षा नहीं की है, न मुझे जूनून था और न ही मैं ज्यादा से और ज्यादा पाने के लिए बेकरार था। मेरे पास कुछ था भी नहीं था। मैं एक साधारण सा व्यक्ति था और आज जो कुछ भी हूं, अपने आसपास के लोगों की वजह से ही बना हूं। तो मैं हमेशा संबंधों और अपनों के प्रति लॉयल बना रहना चाहता हूं।
जिससे भी प्यार करते हो उसे अभी अपनी भावनाएं जरूर बताएं
जैकी ने बताया, “मैं नौजवानों के लिए भी एक सन्देश देना चाहता हूं। संबंधों में भावनाओं का भी बहुत इंपोर्टेंस है, जिससे भी प्यार करते हो उसे अभी अपनी भावनाएं जरूर बतानी चाहिए, क्योंकि कल किसने देखा है। मुझे लगता है कि अपनी मां, बीवी, बच्चे, प्रेमिका की आंखों में देखकर बात करनी चाहिए और उन्हें बताता चाहिए कि तुम उनसे कितना प्यार करते हो। आजकल लोग अपने फोन में ही बिजी रहते हैं, उनको एक दूसरे से बात करने का समय ही नहीं होता। दुनिया में सभी लोग काम में व्यस्त होते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि हमें एक दूसरे के लिए समय जरूर निकालना चाहिए। ऐसा तय करना चाहिए कि आधा घंटा मम्मी को दूंगा, आधा घंटा बच्चों को। ऐसी प्रायोरिटी जरूर रखना चाहिए।