स्वच्छता रैकिंग में बेहतर स्थान हासिल करने के बाद निगम प्रशासन ने सफाई व्यवस्था से नजर फेर लिया है। यही कारण है कि बीते कुछ महीनों से शहर की सफाई व्यवस्था पूरी तरह पटरी से उतर गई है। इसकी शिकायत भी लगातार निगम के स्वास्थ्य विभाग में पहुंच रही है। सबसे बुरी स्थिति ठेके से सफाई कराने वार्डाें की है। लेकिन इतनी शिकायतों के बावजूद निगम प्रशासन इस आेर गंभीरता नहीं दिखा रहा है।
सफाई की सबसे बुरी स्थिति पटरी पार सहित लखोली, बसंतपुर, नंदई वार्डाें में है। जहां एक बार फिर मुक्कड़ों पर कचरा पसरने लगा है। पूर्व में निगम प्रशासन के ही प्रयासों से शहर के लगभग सभी मुक्कड़ खत्म कर दिए गए थे, लेकिन एक बार फिर शहर में मुक्कड़ जन्म लेने लगे हैं। वैसे तो निगम प्रशासन डोर-टू-डोर कलेक्शन से घरों का कचरा उठाने का दावा कर रहा है, बाजवूद इसके कई हिस्सों में मुक्कड़ों पर कचरा डंप किया जा रहा है। वहीं नियमित सफाई के अभाव में फेंके गए कचरे का डंप बढ़ता जा रहा है। इसकी वजह से शहर की सूरत फिर बिगड़ने लगी है। जिसे दुरुस्त करने प्रशासन कमजोर साबित हो रहा है।
यह देखिए साहब: शिकायत के बाद भी नहीं हो रही सफाई
राजनांदगंाव. शहर में इस तरह कचरे का डंप देखने काे मिल रहा है।
सार्वजनिक शौचालयों में भी बुरा हाल
वार्डाें के अलावा शहर में बने सार्वजनिक शौचालय भी गंदगी का केंद्र बन गई है। स्वच्छता सर्वेक्षण के दौरान नगर निगम ने इन शौचालयों में वॉल पेटिंग, साफ-सफाई के साथ बकायदा एग्जास्ट फैन की भी व्यवस्था की थी। देखने पर तब सभी शौचालय एकदम दुरुस्त नजर आ रहे थे, लेकिन सर्वेक्षण खत्म होते ही स्थिति फिर बदहाल हो गई। कई शौचालयों में मेंटेनेंस खर्च के नाम पर यूजर्स चार्ज भी दोगुना कर दिया गया है। बाजवूद इसके गंदगी का आलम यहां से खत्म नहीं हो रहा है।
कमजोर माॅनिटरिंग बन रही वजह
शहर में गंदगी पसरने की सबसे बड़ी वजह निगम प्रशासन की कमजोर माॅनिटरिंग है। पूरी जिम्मेदारी सफाई कर्मचारियों के मत्थे मढ़कर अफसर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं। सफाई व्यवस्था का जायजा लेने अफसर धरातल पर नहीं उतर रहे हैं। प्रॉपर माॅनिटरिंग नहीं होने की वजह से हालात लगातार बदतर होते जा रहे हैं। लेकिन स्वास्थ्य अमले के अफसर शिकायतों का इंतजार करते बैठे रहते हैं। शिकायत अाने के बाद ही अफसर नींद से जागते हैं और कोई कदम उठाते हैं।
नए सत्र में गिर सकती है स्वच्छता की रैकिंग
इस बार स्वच्छता रैकिंग के लिए सिस्टम चेंज किया गया है। हर तीन की रिपाेर्ट के बाद फाइनल रिपोर्ट तैयार होगी और पब्लिक फीडबैक के सबसे महत्वपूर्ण अंक के बाद स्वच्छता की रैकिंग जारी होगी। लेकिन वर्तमान में जो हालात शहर में बने हुए हैं, उससे बेहतर पब्लिक फीडबैक सामने आने की संभावना कम ही है। अगर समय रहते निगम प्रशासन स्वच्छता को लेकर व्यवस्था में कड़ाई नहीं बरतती तो नए सत्र की स्वच्छता रैकिंग में शहर को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
शहर के 24 वार्डों की सफाई व्यवस्था ठेके पर
शहर के 24 वार्डाें में सफाई व्यवस्था ठेका के माध्यम से कराई जा रही है। इन हर वार्ड में हर महीने सफाई के नाम पर डेढ़ से दो लाख रुपए तक खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन सफाई की लचर व्यवस्था की शिकायत सबसे अधिक इन्ही वार्डाें में बनी हुई है। सफाई ठेका चलाने वालों की मनमानी, कर्मचारियों की कमी और नियमित रुप से नालियों और मुक्कड़ों से कचरा नहीं उठने की वजह से इन हिस्सों में सबसे अधिक गंदगी का आलम है। इसकी शिकायत भी लगातार सामने आ चुकी है। लेकिन अफसर अांखे मूंदे बैठे हुए हैं।