फ्लोराइड ग्रसित पानी से परेशान डूंगरपुर वाले अब अब अपने घर बैठे प्राकृतिक तत्वों से शुद्ध पानी प्राप्त कर सकते हैं। सागवाड़ा के अक्षय शर्मा ने चार साल के शोध में फ्लोराइड वाले पानी को शुद्ध करने के प्राकृतिक तरीके खोज निकाले हैं। उन्होंने बताया कि औषधीय महत्व वाला बिल्व पत्र सिर्फ आस्था और पूजा से नहीं जुड़ा है और कढ़ी, सब्जी, पुलाव में महक.जायका बढ़ाने के अलावा कढ़ी पत्ता यानी मीठा नीम भी बड़े काम की चीज है। पेसिफिक विश्वविद्यालय में रसायन शास्त्र के सहायक आचार्य डॉ. पारस टाक के साथ डॉ. अक्षय शर्मा ने शोध में दावा किया है कि बिल्व पत्र और कढ़ी पत्ता से पानी में फ्लोराइड की मात्रा कम की जा सकती है। इस शोध का निष्कर्ष कहता है कि जैव अधिशोषकों में बिल्व पत्र और कढ़ी पत्ता का प्रयोग फ्लोराइड निष्कासन में होता है। पादप अभिशोषकों की मदद से फ्लोराइड निष्कासन पर चार साल रिसर्च के बाद यह दावा किया है।
दक्षिण राजस्थान में विकट है फ्लोराइड की परेशानी
दक्षिण राजस्थान के डूंगरपुर, असपुर और सतूंबर में पानी में फ्लोराइड की समस्या ज्यादा है। इन इलाकों में भूमिगत जल में फ्लोराइड की मात्रा करीब 5.0 पीपीएफ तक पाई जाती है। टाक ने बताया कि अभी जिन तकनीकी और विधियों से फ्लोराइड को निष्कासित किया जा रहा है, उनमें उत्क्रम परासरण (आरओ), डिस्टिलेशन, एक्टिवेटिड एलुमीना, सोलर आसवम, अधिशोषण शामिल हैं, लेकिन सभी तकनीके महंगी हैं और आमजन को असानी से उपलब्ध भी नहीं हो पाता है। अभी कुछ समय से जैव अधिशोषकों के जरिए फ्लोराइड निष्कासन किया जा रहा है। इस विधि की खासियत यह है कि यह सस्ती और सुलभ होने के कारण आमजन की पहुँच में है।
291 ग्राम पंचायत फ्लोराइड प्रभावित, असमय बुढ़ापे, हड्डियाँ मुड़ने, दाँत पीले पड़ने की बीमारी
पिछले कई वर्षों से पानी में फ्लोराइड की उपस्थिति की समस्या कई देशों में बढ़ रही है। खासकर राजस्थान में यह समस्या प्रमुख है, क्योंकि यहाँ पेयजल का मुख्य स्रोत भूमिगत जल है, जो भूगर्भीय चट्टानों और प्रदूषण के कारण फ्लोराइड युक्त हो जाता है। कई विशेषज्ञों ने यह पाया कि इन इलाकों में फ्लोराइड का स्तर 10 पीपीएफ तक पहुँच चुका है। जो कि इंसानों और मवेशियों के लिए घातक है। फ्लोराइड की सीमित मात्रा एक पीपीएफ तक दाँतों के लिए उपयोगी है, क्योंकि यह दाँतों का पीलापन हटाती है, लेकिन जब इसका स्तर 15 पीपीएफ (डब्ल्यूएचओ के अनुसार) से धिक हो जाता है तो इससे फ्लोसिस नामक रोग हो जाते हैं। इसमें दाँत पीले होने के साथ हड्डियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं। बता दें कि उदयपुर जिले के सराड़ा क्षेत्र के कई गाँवों में ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जहाँ फ्लोराइड वाले पानी पीने के कारण ग्रामीण असमय बुढ़ापे, हड्डियाँ मुड़ने, दाँत पीले पड़ने का दंश झेल रहे हैं।
दावा एक गिलास पानी में दो ग्राम अधिशोषक कम कर देता है 75 प्रतिशत तक फ्लोराइड
शोध और विधि के अनुसार बिल्व पत्र और कढ़ी पत्तों को ओवन में सुखाने के बाद पाउडर बनाना है। सौ मिलीमीटर यानी करीब एक गिलास पानी में 2 ग्राम पादप अधिशोषक को 5.6 घंटे रखा गया। डॉ. शर्मा के अनुसार इस विधि में 5 पीपीएफ तक फ्लोराइड निष्कासित हो जाता है। यह पानी प्राकृतिक रूप से भी रसायन मुक्त रहेगा। यहाँ कम खर्च में पानी को फ्लोराइड मुक्त किया जा सकता है।