विनायकी चतुर्थी व्रत माघ माह के ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि यानी कि आज 7 जून शुक्रवार को मनाई जा रही है. गणेशोत्सव के दौरान भक्त घर में गणपति की स्थापना करेंगे. यह चतुर्थी भगवान गणेश को ही समर्पित है.गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है. कई स्थानों पर विनायक चतुर्थी को ‘वरद विनायक चतुर्थी’ के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन गणेश की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ ज्ञान एवं बुद्धि प्राप्ति होती है.
पूजा के नियम:
1. तड़के सुबह नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें, लाल रंग के वस्त्र धारण करें.
2. दोपहर पूजन के समय अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार सोने, चांदी, पीतल, तांबा, मिट्टी अथवा सोने या चांदी से निर्मित गणेश प्रतिमा स्थापित करें.
3.श्री गणेश की मूर्ति पर सिन्दूर चढ़ाएं
4. गणेश भगवान का मंत्र- ‘ॐ गं गणपतयै नम:’ बोलते हुए 21 दूर्वा चढ़ाएं
5.श्री गणेश को बूंदी के 21 लड्डुओं का भोग लगाएं. इनमें से 5 लड्डू ब्राह्मण को दान दें और 5 गणेश के चरणों में रखें. बाकी को प्रसाद स्वरूप बांट दें.
Vinayaka Chaturthi Vrat Katha:
एक दिन स्नान करने के लिए भगवान शंकर कैलाश पर्वत से भोगावती जगह पर गए. उनके जाने के बाद मां पार्वती ने घर में स्नान करते समय अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया था. उस पुतले को मां पार्वती ने सतीव कर उसका नाम गणेश रखा. पार्वती जी ने गणेश से मुद्गर लेकर द्वार पर पहरा देने के लिए कहा. पार्वती जी ने कहा था कि जब तक मैं स्नान करके बाहर ना आ जाऊं किसी को भी भीतर मत आने देना.
भोगावती में स्नान करने के बाद जब भगवान शिव वापस घर आए तो वे घर के अंदर जाने लगे. लेकिन बाल गणेश ने उन्हें रोक दिया. इसे शिवजी ने अपना अपमान समझा और भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया और घर के अंदर चले गए.
शिवजी जब अंदर पहुंचे तो बहुत क्रोधित थे. पार्वती जी ने सोचा कि भोजन में विलम्ब के कारण महादेव क्रुद्ध हैं. इसलिए उन्होंने तुरंत 2 थालियों में भोजन परोसकर शिवजी को बुलाया और भोजन करने का आग्रह किया.
दूसरी थाली देखकर शिवजी ने पार्वती से पूछा, ‘यह दूसरी थाली किस के लिए लगाई है?’ इस पर पार्वती जी ने कहा कि पुत्र गणेश के लिए, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है. यह सुनकर भगवान शिव चौंक गए और उन्होने पार्वती जी को बताया कि, ‘जो बालक बाहर पहरा दे रहा था, मैने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया है.’
यह सुनकर पार्वती जी बहुत दुखी हुईं और विलाप करने लगीं. उन्होंने भगवान शिव से पुत्र को दोबारा जीवित करने का आग्रह किया. तब पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर उस बालक के धड़ से जोड़ दिया. पुत्र गणेश को पुन: जीवित पाकर पार्वती जी बहुत प्रसन्न हुईं.