नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कार्यकारी नियुक्तियों में मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के शामिल होने पर सवाल उठाए हैं।
उन्होंने कहा कि सीजेआई केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक या किसी अन्य कार्यकारी नियुक्ति के चयन में कैसे हिस्सा ले सकते हैं।
धनखड़ का ये बयान ऐसे वक्त आया है, जब 17 फरवरी को देश के अगले मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) के चयन के लिए बैठक होना है।
धनखड़ भोपाल में राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में छात्रों को संबोधित कर रहे थे।
धनखड़ ने कहा, भारत जैसे देश या किसी भी लोकतंत्र में सीजेआई सीबीआई निदेशक के चयन में कैसे भाग ले सकते हैं? क्या इसके लिए कोई कानूनी तर्क हो सकता है? इस तरह की प्रक्रिया इसलिए बनी थी, क्योंकि पहले की कार्यपालिका ने न्यायिक फैसले के आगे घुटने टेक दिए थे, लेकिन अब इन पर पुनर्विचार का दौर है। यह निश्चित रूप से लोकतंत्र के साथ मेल नहीं खाता। हम सीजेआई को कार्यकारी नियुक्तियों में कैसे शामिल कर सकते हैं?
उपराष्ट्रपति ने कहा, हमारा संविधान देश की सुप्रीम कोर्ट को संविधान की व्याख्या करने की अनुमति देता है, लेकिन व्याख्या के बहाने अधिकारों का हनन नहीं हो सकता। कोर्ट की सार्वजनिक उपस्थिति मुख्य रूप से निर्णयों के माध्यम से होनी चाहिए। निर्णय अपने आप में बोलते हैं। इनका वजन होता है। निर्णयों के अलावा कोई अन्य प्रकार की अभिव्यक्ति संस्थागत गरिमा को कमजोर करती है। मैं मौजूदा स्थिति पर पुनर्विचार चाहता हूं।
अगले सीईसी के चयन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी और कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल की 3 सदस्यीय पैनल की बैठक होगी। इस मामले सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की गई है, जिसमें इस तरह की नियुक्ति में पैनल में सीजेआई को शामिल करने की मांग की गई है।
बता दें कि पहले सीजेआई सीईसी के चयन के लिए बने पैनल का हिस्सा होते थे, लेकिन 2023 में कानून बदल दिए गए।
धनखड़ ने कहा, संविधान सभा ने लोकतंत्र के लिए जो उच्च मानक तय किए थे, वे आज कमजोर पड़ रहे हैं। हम लोकतंत्र के मंदिरों (संसद) में हंगामा और बाधाएं कैसे स्वीकार कर सकते हैं? जनता के प्रतिनिधियों को अपने संवैधानिक जिम्मेदारियों का पालन करना चाहिए। राष्ट्रीय हित को दलगत राजनीति से ऊपर रखना चाहिए और टकराव के बजाय सहमति का मार्ग अपनाना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने मूल संरचना सिद्धांत पर चल रही बहस पर भी बात की।