रायपुर। कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में मंगलवार को “जनजाति समाज का गौरवशाली अतीत: ऐतिहासिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक योगदान” विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि वनवासी विकास समिति के प्रांताध्यक्ष उमेश कश्यप थे। अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. बलदेव भाई शर्मा ने की।
मुख्य अतिथि उमेश कश्यप ने अपने उद्बोधन में कहा कि जनजातीय समाज में अनेक महान स्वतंत्रता सेनानियों का जन्म हुआ है, जो हमें गर्वित करते हैं। उन्होंने जनजातीय संस्कृति की गहराई और आध्यात्मिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस समाज में प्रकृति को सहेजने और उसके अनुरूप जीवन जीने की परंपरा है। जनजातीय परंपराएं भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं। जनजातीय समाज का गौरवशाली इतिहास रहा है। अपने देश के लिए संघर्ष करने की परम्परा जनजातीय समाज में प्रारंभ से रही है। भगवान विरसा मुंडा, शहीद वीर नारायण सिंह जैसे अनेक महान नायकों ने अपना बलिदान दिया। जनजातीय संस्कृति में गहरी आध्यात्मिकता छिपी है। प्रकृति को सहेजकर, प्रकृति के अनुकूल जीवन जीना। बड़े-छोटे, स्त्री-पुरुष में किसी तरह का भेदभाव नहीं करना। यह मानना कि सब बराबर हैं और प्रकृति का उपहार सबके लिए है। ये बातें हमें इस समाज से सीखने की आवश्यकता है। उन्होंने युवाओं को इन परंपराओं का अध्ययन करने और इन्हें संरक्षित रखने के लिए प्रेरित किया।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बलदेव भाई शर्मा ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि इस प्रकार के आयोजन जीवन में प्रेरणा जगाने वाले होते हैं। वनवासी समाज का गौरवशाली अतीत और उनका ऐतिहासिक एवं सामाजिक ज्ञान हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है। यह आवश्यक है कि हम इस ज्ञान को समझें और समाज के साथ सहभागिता बढ़ाएं। भारतवर्ष में वैदिक काल से अब तक जनजाति समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। चाहे देश के स्वतंत्रता आंदोलन हो या धर्म-संस्कृति के संरक्षण की बात हो, जनजाति समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जनजाति गौरव की जानकारी समाज में हर एक तक पहुंचे। प्रकृति पूजा के नाम पर जनजाति भाइयों को मूल धारा से अलग करने का षड्यंत्र किया जा रहा है। जबकि हम तो प्रकृति को मां मानते हैं।
प्रो. शर्मा ने कहा कि भगवान विरसा मुंडा पूरे जनजाति समाज के प्रतीक हैं। क्षत्रपति शिवाजी महाराज ने मावलों को इकठ्ठा कर योद्धा तैयार किए। महाराणा प्रताप के साथ भील समाज कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहा। यह समाज हमारे धर्म- संस्कृति और समाज जीवन की रीढ़ है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ही यही है कि हम जनजाति समाज के महत्व और गौरव को समझें।
कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना और छत्तीसगढ़ महतारी एवं भगवान बिरसा मुंडा के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलन कर हुई। संयोजक विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. आशुतोष मांडवी ने अपने स्वागत उद्बोधन में जनजाति समाज के बहुमूल्य योगदान पर प्रकाश डाला। अंत में आभार व्यक्त करते हुए कुलसचिव सुनील कुमार शर्मा ने कहा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से जनजातीय समाज के योगदान और उनके इतिहास पर विमर्श करने का प्रयास किया गया है, जिससे नई पीढ़ी को प्रेरणा मिल सके।
कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के प्राध्यापक पंकज नयन पाण्डेय, शैलेन्द्र खंडेलवाल, डा. नृपेन्द्र कुमार शर्मा, डा. नरेन्द्र त्रिपाठी, डा. राजेन्द्र मोहंती, अतिथि प्राध्यापकगण, उप कुलसचिव सौरभ शर्मा, कार्यक्रम के सह संयोजक सुरजीत कंवर, संबद्ध महाविद्यालयों के प्राध्यापक, विद्यार्थीगण एवं कर्मचारी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन चैताली पाण्डेय ने किया।