आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में सबसे सस्ता यदि कुछ बन गया है तो वह है “जीवन” और “जीवन” से भी यदि कुछ सस्ता है तो “जीवन का असमायिक समाप्ति” तभी तो लोगों को इस बात से फर्क नहीं पड़ता की कौन इस दुनियां में आया और कौन इस दुनियां से गया। यहाँ तक की लोगों की चिंता जाहिर करके सत्ता में आने वाली राजनैतिक पार्टियाँ भी अपने दायित्व को भूलती जा रही है। नवीनतम जारी आकड़ों ने सभी को आश्चर्यचकित किया है विगत दस वर्षो की अवधि में 15.3 लाख लोगों की सड़क दुर्घटना में मृत्यु होना इस बात का प्रमाण है की हमें सड़क सुरक्षा को लेकर बेहद संजीदा होने और नियमों की कड़ाई से पालन करने की जरूरत है। ये सभी मौतें वर्ष 2014 से लेकर वर्ष 2023 के मध्य हुई है यह भयावह है कि सड़क दुर्घटना में मृतक लोगों की संख्या चंडीगढ़ की आबादी से भी अधिक है। यह स्थिति तब है जब की केंद्र सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई बार इस बात की घोषणा की है की सड़क दुर्घटना को कम करने के लिए वो प्रतिबद्ध है। इसी विषय में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार निर्देश जारी किया है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो तो यह पता चलता है की प्रति दस हजार किलोमीटर की यात्रा पर जहाँ ऑस्ट्रेलिया में 11 लोगों, अमेरिका में 57, चाइना 119 लोगों की मृत्यु होती है वही भारत की स्थिति दयनीय है और यहाँ 250 लोगों की मृत्यु हुई है। जारी नवीनतम आकड़ों का मूल्यांकन अंतिम दस वर्षो से देखा जाए तो मृतकों की संख्या 12.01 लाख थी (वर्ष 2004 से 2013)। मृत्यु को असामयिक प्राप्त होने वाले लोग अलग-अलग उम्र के रहे है जिनमे से अधिकांश ने तो अभी जीवन शुरू भी नहीं किया हुआ था। क्या हम अपनी ही गलतियों से कुछ सीख ले पा रहें है या फिर बड़ी गलती होने का इन्तेजार कर रहें है | यदि देखा जाए तो सड़क दुर्घटना में विगत 20 वर्षो में 27.4 लाख लोगों ने अपनी जान दे दी, जिन्हें हम जागरूकता और नियमों का कड़ाई से पालन करके बचा सकतें थे। आखिर इसकी जिम्मेदारी किसकी है ?
ख़राब सड़कों का होना, अकुशल चालकों का होना, नियमों की अनदेखी करना, उत्साह और नशे में तेजी से कार, बाइक चलाना, समेत कई ऐसे कारण है जिससे इसमें तेजी से वृद्धि आई है। आगामी दस वर्षो का आकड़ा अवश्य ही भयावह होगा इसकी पुष्टि वर्तमान में तेजी से बढ़ रहे वाहनों की संख्या के आधार पर कहा जा सकता है। वर्ष 2012 में जहाँ देश में पंजीकृत वाहनों की संख्या 15.9 करोड़ थी वही वर्ष 2024 में बढ़ कर के 38.3 करोड़ पहुँच गयी है। आगामी दशक में इसमें अप्रत्याशित उछाल देखने को मिल सकता है और ऐसे में यदि हम अपने संसाधनों और व्यवस्थाओं को मजबूत नहीं करेगे तो हम असामयिक मृत्यु का शिकार होते रहेगें। अधिकांश मामलों में देखने में आ रहा है की लोग सड़क दुर्घटना का शिकार अपनी लापरवाही से नहीं बल्कि सामने वाले की लापरवाही से अधिक हो रहें है। शराब का सेवन भी एक बड़ा कारण रहा है।
सरकार ने वर्ष 2012 तक 48.6 किलोमीटर सड़क का निर्माण किया था जबकि वर्ष 2019 तक यह 63.3 किलोमीटर तक पहुँच गया था फिर भी बढ़ती सड़क दुर्घटना के पीछे कई कारण है।आज भी यातायात के नियम अधिकांश मामलों में किताबों तक ही सीमित है व्यावहारिक रूप से व्यापक कमी है। बिना मानकों और प्रशिक्षण पूरा किये लोग कार चलाने लगते है, नशे में होकर कार चलाना आम आदत बन गया है, ट्रैफिक नियमों की अनदेखी करना लोग अपनी शान मानते है, सड़कों की दयनीय स्थिति किसी से छिपी नहीं है। केंद्र सरकार, राज्य सरकार, निजी संस्थान, सामाजिक एजेंसीयों समेत तमाम उन लोगों की यह नैतिक जिम्मेदारी है जो समाज और आम लोगों के बीच कुछ जागरूकता ला सकते है, मिलकर कार्य करने और लोगों के जीवन को बचाने को | प्राकृतिक दुर्घटना से मरने वाले लोगों से भी कही अधिक लोग सड़क दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त हो रहें है। इन पर नियंत्रण करने के लिए – जिस तरह किसी के मर्डर पर केस दर्ज करके जाँच होती है और आरोपी को पकड़ा जाता है ठीक उसी तरह सड़क दुर्घटना की भी सूक्ष्मता से जाँच करके कारणों का पता लगाया जाए जिससे इसकी पुनरावृत्ति को रोका जा सकें। अब समय आ गया है की देश में सड़क सुरक्षा के नियमों का कड़ाई से पालन कराया जाय क्योंकि जीवन अनमोल है और लापरवाही में इसकी समाप्ति किसी को क्षम्य नहीं होगी।