Home राजस्थान आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने सन्मति भवन में केश लोचन किया

आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने सन्मति भवन में केश लोचन किया

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पारसोला। प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शांति सागर जी की मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परंपरा के पंचम पट्टाधीश आचार्य वर्धमान सागर जी सन्मति भवन पारसोला में संघ सहित विराजित होकर चातुर्मास कर रहे हैं आज अनेक श्रद्धालुओं के सामने गुरुदेव श्री वर्धमान सागर जी ने केश लोचन किया ।केश लोचन के बारे में संघ के मुनि श्री हितेंद्र सागर जी ने चर्चा में बताया कि प्रत्येक दिगंबर साधु को 2 माह से 4 माह की अवधि के भीतर के केशलोचन करना अनिवार्य है केशलोच दिगंबर साधु का मूल गुण है । केश लोचन के माध्यम से शरीर से राग और मोह दूर होता है केश लोचन की प्रक्रिया में मुनि श्री ने बताया कि केश्लोचन करते समय केवल राख का उपयोग किया जाता मुनि श्री ने बताया कि जैन धर्म अहिंसा प्रधान धर्म है बालों का लोचन अगर नहीं किए जाएं तो उसमें छोटे-छोटे जीवो की उत्पत्ति होने की संभावना होती है जैन साधु अहिंसा धर्म के महाव्रती होते हैं। बाल हाथों से इसलिए उखाड़े जाते हैं कि बालों को कटिंग करने के लिए सेविंग कराने के लिए अन्य द्रव्य की आवश्यकता होती है जैन साधु अपरिग्रही होते हैं। इसलिए जैन साधु अपने हाथ से केशलोचन करते हैं बाल सौंदर्य का प्रतीक हैं इससे राग और आकर्षण होता है। केश लोच से शरीर से ममत्व दूर होता है केश लोचन के समय तप,संयम, धैर्य के साथ धर्म की प्रभावना होती है जिस दिन जैन साधु केशलोच करते हैं उस दिन उपवास करते हैं ।केश लोचन देखकर अनुमोदना करने से पुण्य की प्राप्ति होती है कर्मों की निर्जरा होती है। इस अवसर पर अनेक समाज जन उपस्थित रहे। अनेक महिलाओ ने वैराग्य पूर्ण भजन गा कर केशलोचन की तपस्या की अनुमोदना की।राजेश पंचोलिया अनुसार इसके पूर्व आयोजित धर्म सभा में आर्यिका दिव्य मति माताजी ने धर्म देशना में बताया कि एक अगर किसी के मुंह में नमक की डली है तो उसे मिठाई का स्वाद नहीं आएगा उसी प्रकार जब तक इंसान के हृदय मन में मिथ्यात्व भरा हुआ है तब तक उसे गुरु उपदेश के रूप में सम्यक दर्शन सम्यकज्ञान, सम्यक चारित्र का लाभ नहीं मिलेगा ।आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज की देव शास्त्र गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा थी उन्होंने कुदेवो का विसर्जन कराया ,जिनालय का संरक्षण कराया और जिनवाणी को तांबे के पत्रों पर अंकित कराया‌ । आर्यिका निर्मोह मति ने भी धर्म उपदेश में बताया कि आचार्य शांति सागर जी महाराज ने साधुओं के लिए आदर्श स्थापित किया । माताजी ने साधुओं को दिए जाने वाले आहार दान की सामग्री की मर्यादा का ध्यान रखकर आहार दान देना चाहिए।