पारसोला। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी पारसोला नगर में चातुर्मास हेतु विराजित है ।दशलक्षण पर्व की समाप्ति पर आज नगर में श्री जी की रथ यात्रा निकाली गई इस अवसर पर आयोजित धर्म सभा में आचार्य श्री ने बताया कि जैन धर्म का सबसे बड़ा दशलक्षण पर्व अनादि निधन पर्व है। इन 10 दिनों में सभी ने कुछ सीखने का प्रयत्न किया है जीवन की विकृति धर्म के प्रभाव से दूर होती है उत्तम क्षमा से उत्तम ब्रह्मचर्य 10 अंगों को आपके द्वारा समझने का प्रयास किया गया ,इससे जीवन को अच्छे से अच्छा बना सकते हैं, क्योंकि चारों गति में मनुष्य गति श्रेष्ठ है। पुण्य से प्राप्त मनुष्य भव में आत्मा का उत्थान करना चाहिए। धर्म कभी खाली नहीं जाता है ।गुरु पूजा, गुरु भक्ति से बहुत कुछ मिलता है ,जीवन भर गुरु सानिध्य के लिए नगर परिवार छोड़कर जीवन को उन्नत बना सकते हैं। धर्म से जीवन की उन्नति होती है, तभी जीवन सार्थकता को प्राप्त होता है। जन्म और मृत्यु से जीवन सार्थक नहीं होता है। इसके पूर्व आचार्य श्री वर्धमान सागर जी संघ सानिध्य में रथ यात्रा प्रारंभ हुई।
श्रीजी की रथ यात्रा में उमड़े श्रद्धालु , आचार्य श्री वर्धमान सागर ससंघ में निकली श्रीजी की रथ यात्रा
पारसोला में आज रथोत्सव के समापन पर श्रीजी की भव्य रथ यात्रा निकाली गई । पार्श्वनाथ चोक से दो प्राचीन काष्ठ के रथ में रजत पालकी में मूलनायक पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजित कर भव्य रथ यात्रा निकाली गई । युवा वर्ग सिर पर मेवाड़ी पगड़ी पहने पुरुष श्वेत वस्त्र में महिलाएं लाल साड़ी में सज धज कर श्रीजी की रथ यात्रा में नाचते झूमते श्रीजी के जयकारें लगाते चल रहे थे । रथ यात्रा सदर बाजार पुराना बस स्टैंड स्वामी विवेकानंद चोक होते हुए श्यामा वाटिका पहुँचे । रास्ते में श्रद्धालुओं ,मेलार्थियों व दुकानदार ने श्रीजी की रथ यात्रा में भेट चढ़ाकर दर्शन किये । श्यामा वाटिका में सौभाग्यशाली परिवारों द्वारा श्रीजी का अभिषेक पूजन कर प्रभावना वितरित किया । स्वामी वात्सल्य भोज के साथ रथ यात्रा संपन्न हुई । रात्रि में श्रीजी व आचार्य श्री की मंगल आरती हुई । राजेश पंचोलिया अनुसार इस अवसर पर टीकमगढ़ से अनेक यात्रियों ने आकर आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के दर्शन कर विशेष पूजन अर्चन सन्मति भवन में की।