Home रायपुर जीवनरथ पर जुते, इंद्रियरूपी घोड़ों पर, मन की लगाम कसना आवष्यक है:-...

जीवनरथ पर जुते, इंद्रियरूपी घोड़ों पर, मन की लगाम कसना आवष्यक है:- पं. नितिन जैन

11
0

रायपुर। श्री दिगम्बर जैन खंडेलवाल मंदिर जी, सन्मति नगर, फाफाडीह, रायपुर में पर्वाधिराज दषलक्षण महापर्व के पावन अवसर पर सप्तम दिवस उत्तम तप धर्म की आराधना की गई । प्रातःकाल भक्तों ने मंदिर जी में इन्द्रांे की वेषभूशा में अभिशेक षांतिधारा से लेकर पर्व पूजाएं कर धर्मलाभ लिया ।
आज उत्तम तप धर्म के दिन श्री महावीर स्वामी के समक्ष मूल वेदी में षांतिधारा का सौभाग्य श्री हेमंत कुमार जी निलेष कुमार जी गर्वित कासलीवाल परिवार को प्राप्त हुआ।
समिति के अध्यक्ष अरविंद बड़जात्या ने बताया कि सप्तम दिवस में प्रथम तल में भगवान पार्ष्वनाथ की वेदी पर षांतिधारा का सौभाग्य श्री चम्पालाल जी मनोज कुमार जी जैन को प्राप्त हुआ । भगवान मुनिसुव्रतनाथ की वेदी पर षांतिधारा महावीर प्रसाद जी राजकुमार जी बाकलीवाल परिवार द्वारा की गई ।
प्रतिदिन के अनुसार संध्या समय श्रीमती उशा लोहाड़िया एवं श्रीमती वर्शा सेठी के निर्देषन में श्रावक प्रतिक्रमण कराया गया ।
षास्त्र सभा में स्थानीय विद्वान पं. नितिन जैन ‘निमित्त’ ने बताया –
सम्यक यमो वा संयमः – सम्यक् प्रकार से क्रिया, यम या पुरूशार्थ किया जाए वो संयम है ।
कलकल बहती नदी भी किनारों के संयम में बंधकर बहती है । घर में माता पिता का अनुषासन संयम है तो मंदिर में आगम निर्धारित नियम ही संयम हैं । सामाजिक जीवन में परंपराओं का व्यवस्थित रूप पालन भी संयम का ही एक प्रकार है । असंयत जीवन बिना ब्रेक की कार के समान होता है । असंयत आत्मा के लिये योग की उपलब्धि असंभव है । मन और इंद्रियां मनुष्य की दो मौलिक षक्तियां हैं । पूरे प्राणी जगत में जितना सक्षम मन और इंद्रिय मनुश्य को प्राप्त हैं उतनी संसार के किसी भी प्राणी को नहीं हैं । इनका सदुपयोग करके हम जीवन का परम विकास कर सकते हैं । ये हमें सेवक के रूप में प्राप्त हुई हैं, पर हम इनके दास बने हुए हैं । मन और इंद्रियों पर हमारा नियंत्रण नहीं है ।
इंद्रिय विशयों के प्रति आसक्ति हमारी आत्मा को भटकाती है । मन की प्यास अनन्त है इसे कोई षांत नहीं कर सकता । कोई भी इंद्रिय विशय मनुश्य को स्थाई सुख नहीं दे सकते । इन इंद्रियों पर विजय पाना आवष्यक है । इंद्रिय विजय का अर्थ इंद्रियों को नश्ट करना नहीं है बल्कि विशयों की ओर भटक रही बहिर्मुखी इन्द्रियों को अपनी ओर मोड़कर अपनी सेविका बनाकर उनका सदुपयोग करना है ।
जीवन एक रथ है जिसमें इंद्रिय रूपी घोड़े जुते हुए हैं । ये घोड़े राग और द्वेश से प्रेरित होकर जीवन रथ को पतन की ओर ले जाते हैं । अतः मन की लगाम को मजबूत करना आवष्यक है ।
बोलो कम सुनो अधिक ये है परम विवेक ।
इसी लिये विधि ने दिये दोय कान मुख एक ।।