रायपुर। दिगग्बर जैन समाज के दषलक्षण महापर्व उल्लासपुर्वक श्री दिगम्बर जैन खंडेलवाल मंदिर जी, सन्मति नगर, फाफाडीह, रायपुर में मनाए जा रहे हैं । प्रतिदिन प्रातःकाल से ही भक्तों का मंदिर जी में आना प्रारंभ हो जाता है । प्रातःकाल अभिशेक षांतिधारा से लेकर पर्व पूजाओं तक सभी साधर्मी बंधुजन पूर्ण लाभ ले रहे हैं।
समिति के अध्यक्ष अरविंद बड़जात्या ने बताया के तृतीय दिवस उत्तम आर्जव धर्म के अवसर पर मूलनायक महावीर भगवान की वेदी पर षांतिधारा करने का सौभाग्य श्री कन्हैयालाल जी विमल कुमार जी, संजय कुमार जी, विजय कुमार जी, रोहति, पुलकित, आर्जव गंगवाल परिवार को प्राप्त हुआ । प्रथम तल में भगवान पार्ष्वनाथ की वेदी पर यह सौभाग्य श्री विजय कुमार जी जैन, कुंरावाले परिवार को प्राप्त हुआ । भगवान मुनिसुव्रतनाथ की वेदी पर षांतिधारा श्री अरविंद जी अजय जी चिराग जी पहाड़िया परिवार द्वारा की गई ।
प्रतिदिन प्रातःकालीन पर्व पूजाएं श्रावकगण भक्ति भाव से कर रहे हैं । संध्या समय श्रीमती उशा लोहाड़िया एवं श्रीमती वर्शा सेठी के निर्देषन में श्रावक प्रतिक्रमण कराया जा रहा है ।
उत्तम मार्दव धर्म के दिन, संध्या समय षास्त्र सभा में स्थानीय विद्वान पं. नितिन जैन ‘निमित्त’ ने बताया कि मार्दव धर्म का अर्थ है मृदुता यानि कोमलता । चाहे स्वभाव की हो या वाणी की कोमलता जीवन में उच्च स्थान को पाने में सहायक होती है । जो जितना मृदु होता है, जितना अधिक झुकता है उतना ही अधिक पाता भी है । नदी के प्रवाह में हल्की घास प्रवाह की दिषा में झुक जाती है और अपना अस्तित्व बचा लेती है, वहीं दूसरी तरफ बडे़ बड़े वृक्ष जो अपनी मजबूती पर घमण्ड करते हैं जल के प्रवाह में बह जाते हैं ।
जीवन में कुछ भी पाने के लिये झुकना आवष्यक है । घमण्डी व्यक्ति सामने तो प्रषंसा पा सकता है पर पीठ पीछे लोग उसकी बुराई ही करते हैं । वास्तविक सम्मान तो वो होता है जो सामने और पीठ पीछे एक समान प्राप्त हो । कुंए से जब जल निकालना होता है तब स्वयं व्यक्ति को भी झुकना पड़ता है और बाल्टी को भी । बाल्टी जब झुकती है तो जल भरकर लाती है । उसी जल से अनेक प्राणियों की प्यास बुझती है । इसी प्रकार प्रभु चरणों में जो व्यक्ति समर्पित होता है, नतमस्तक हो जाता है वह अपना तो कल्याण करता ही है साथ ही अनेक प्राणियों के कल्याण का कारण बनता है । पंडित जी ने आगे बताया कि दीर्घ जीवन का रहस्य है कोमलता या मृदुता । मुंह में जीभ पहले आती है और मृत्यु तक साथ रहती है जबकि दांत आते बाद में हैं और टूट भी जल्दी जाते हैं । इसका कारण दोनांे का स्वभाव है । जीभ नरम रही तो अधिक समय तक साथ रही, दांत कठोर हो गए तो असमय ही चले गए । इसलिये जीवन में उच्चता को प्राप्त करने के लिये झुकना सीखना होगा । जो जितना झुकेगा उतना ही ऊपर जाएगा । घमण्ड का त्याग करें और मृदुता, विनम्रता को अपनाएं यही सच्चा मार्दव धर्म है ।